मोदी का मास्टर स्ट्रोक है महबूबा को goodbye करना!

Edited By Anil dev,Updated: 20 Jun, 2018 12:18 PM

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जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती सरकार से किनाराकशी करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मास्टर स्ट्रोक चला है।  दरअसल बीजेपी या यूं कह लें कि  संघ की लम्बे रसे से  इस राज्य पर नजर है।  इसमें भी कोई दो राय नहीं कि राज्य संघ की गूढ़ गतिविधियों का गढ़ रहा...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती सरकार से किनाराकशी करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मास्टर स्ट्रोक चला है।  दरअसल बीजेपी या यूं कह लें कि  संघ की लम्बे रसे से  इस राज्य पर नजर है।  इसमें भी कोई दो राय नहीं कि राज्य संघ की गूढ़ गतिविधियों का गढ़ रहा है और एक सरसंघचालक भी यहीं से हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद सामुदायिक समीकरण जम्मू-कश्मीर में संघ के कदम रोकते रहे हैं। जबकि पाकिस्तान या राष्ट्रवाद के नजरिए से संघ इस सूबे को लेकर हमेशा से ही सक्रिय रहा है। ऐसे में जब नरेंद्र मोदी के सत्तानशीं होने के साथ संघ को जम्मू वाले हिस्से में अकूत समर्थन मिला तो संघ ने अपनी रणनीति बदली। पिछले चुनाव में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी को 25 सीटें मिली थीं जो पीडीपी से महज तीन कम थीं। हालांकि यह सभी सीटें जम्मू वाले हिस्से से आईं और पीडीपी को कश्मीर में सफलता मिली। ऐसे में संघ ने अपना प्लान बदला। 
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बीजेपी और पीडीपी के बीच समझौता उसी बदले हुए प्लान की परिणीति थी। दोनों पार्टियां विचारधारा के मामले में धुर विरोधी थीं।  लेकिन बीजेपी (वास्तव में संघ) को लगा कि यहां एकबार सरकार में हिस्सेदारी कर ली जाए ताकि चीजों पर पकड़ बनाने में भविष्य के लिहाज़ से आसानी हो सके।  इसलिए उसने नदी में रहकर मगर से बैर नहीं रखने की कहावत के विपरीत मगरमच्छ को मारने के लिए नदी में ही उतरने का फैसला लिया।  तीर निशाने पर लगा और सत्ता के लिए तड़प रही पीडीपी उसके झांसे में आ गई। हालांकि यह भी पहले दिन से ही तय था कि यह गठबंधन देर-सवेर  टूटेगा ही।लेकिन इसके लिए बीजेपी ने बड़े धैर्य से सही समय का इंतजार किया। इस बीच उसे हालंकि 370 जैसे मसलों पर चुप बैठना पड़ा लेकिन उसने सर्जिकल स्ट्राइक, टेरर फंडिंग और ऑपरेशन आलआउट जैसे कदम उठाकर एक सन्देश देने की कोशिश जरूर की।  
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दूसरे शब्दों में जहां भी मौका लगा केंद्र की सहायता से बीजेपी ने अपनी गिरफ्त मजबूत करने की कोशिश की। और इस बार सीज फायर  के जरिये बीजेपी ने  यह सन्देश भी  दे दिया कि उसने शांति बहाली के लिए पीडीपी की बात  तो रखी ,लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उसने राष्ट्रवाद को तरजीह देते हुए सत्ता का त्याग कर दिया। अब इसी त्याग को बीजेपी खासकर मोदी भुनाएंगे। तय है कि जम्मू-कश्मीर में एकदम से चुनाव नहीं होने वाले। यह काम लोकसभा चुनाव के साथ ही होगा। तब तक बीजेपी खुद को और मजबूत बनाने का प्रयास करेगी। इसकी पटकथा लगभग तैयार है।  25  जून को कार्यकाल समाप्त कर रहे राज्यपाल एन एन वोहरा को एक और टर्म मिलना भी तय है। और उनके शासन के दौरान जम्मू-कश्मीर में आतंक पर अब और जोरदार प्रहार होना भी तय है। 
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पाकिस्तान और पाकपरस्त आतंक भारत में सबसे बड़ा मुद्दा है। इसका असर कश्मीर ही नहीं बल्कि पूरे देश और उसकी सियासत पर गहरा रहता है। ऐसे में सेना की आतंकवादियों पर सख्ती बढऩे के साथ ही मोदी सरकार को उसका स्वाभाविक श्रेय भी मिलेगा।  कोई बड़ी बात नहीं कि  एक आध सर्जिकल स्ट्राइक और भी हो जाए। यानी रमजान के दौरान जो आलोचना बीजेपी की हुई उसे  अब सेना की कड़ी कार्रवाई के जरिए प्रशंसा में बदलने का  पूरा प्लान  तय हो चुका है। प्लान अगर कामयाब रहा तो उसका लाभ अन्यत्र चुनावों में भी मिलेगा।  इस तरह से फिलवक्त तो मोदी ने मास्टर स्ट्रोक चल दिया है।  

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