Edited By Seema Sharma,Updated: 18 Sep, 2020 03:38 PM
बीजेपी सरकार द्वारा कृषि सुधारों का दावा करने वाले तीन बिल के विरोध में एनडीए के प्रमुख घटक- शिरोमणि अकाली दल की नेता और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को उनका इस्तीफा मंजूर...
नेशनल डेस्कः बीजेपी सरकार द्वारा कृषि सुधारों का दावा करने वाले तीन बिल के विरोध में एनडीए के प्रमुख घटक- शिरोमणि अकाली दल की नेता और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया। हरसमिरत कौर बादल खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री थीं। सूत्रों के मुताबिक, जल्द ही शिरोमणि अकाली दल एनडीए से अलग भी हो सकता है।
अपने त्याग पत्र में हरसिमरत कौर ने लिखा-शिरोमणि अकाली दल ऐसे किसी भी मुद्दे का हिस्सा नहीं हो सकता जो किसानों के हितों के विरुद्ध हो। मैंने पूरी कोशिश की कि कैबिनेट वास्तविक हितधारक यानि कि किसानों को विश्वास में ले और उनकी आशंकाओं और चिंताओं को समझे। मुझे बताया गया कि अध्यादेश अस्थाई है और बिल में मेरी चिंताओं को दूर कर दिया जायेगा। मुझे दुःख है कि मेरी लाख कोशिशों के बावजूद सरकार किसानों से संवाद स्थापित करने में नाकाम रही। शिरोमणि अकाली दल ने फैसला लिया है कि वह किसानों के हितों का ध्यान रखते हुए इन बिलों का विरोध करेगा। इसलिए मैं केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देती हूं। " हालांकि त्याग पत्र में हरसिमरत कौर बादल ने अपनी उपलब्धियां बताते हुए पंजाब के सिखों को संदेश देने की भी कोशिश की है। 2022 में पंजाब विधान सभा के चुनाव हैं।
उन्होंने लिखा
- एनडीए सरकार के कार्यकाल में सिख दंगों के आरोपियों को सजा मिली।
- आतंकी संगठनों को ब्लैक लिस्ट किया गया।
- अफगानिस्तान से आये सिखों को सहारा दिया गया।
- लंगर से जीएसटी हटाया गया।
- दरबार साहिब को विदेशी चंदे की इज़ाज़त मिली।
- करतारपुर कॉरिडोर खोलकर सिखों का कई दशकों पुराना सपना पूरा किया।
अगर मोदी सरकार पंजाब और सिखों के हितों को ध्यान में रखते हुए इतने ज़रूरी फैसले ले रही है तो क्या सिर्फ तीन बिल के कारण अकाली दल 1996 से चला आ रहा गठबंधन बीजेपी से तोड़ रहा है। जवाब है नहीं। जब से केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी है और सुखबीर सिंह बादल शिरोमणि अकाली दल के प्रधान बने हैं तब से बीजेपी और अकाली दल के रिश्तों के बीच मिठास कम होती गई है । पिछले एक दो सालों से दोनों दलों के बीच दूरियां भी दिखने लग गई थीं।
- जनवरी 2019 में अकाली दल ने बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया कि वे आरएसएस के निर्देश पर हुज़ूर साहिब , पटना साहिब गुरुद्वारों पर कब्ज़ा करना चाहती है।
- अकाली दल ने बीजेपी महत्वकांक्षी कानून CAA का विरोध भी किया था और कहा था कि बीजेपी सरकार को इस कानून में मुसलमानों को भी शामिल करना चाहिए ।
- पिछले साल हरियाणा और फिर इस साल दिल्ली विधानसभा चुनाव में अकाली दल ने बीजेपी के साथ चुनाव न लड़ने का फैसला किया ।
- इस साल जबसे अश्विनी शर्मा पंजाब बीजेपी के अध्यक्ष बने हैं तब से कई सीनियर पार्टी नेताओं ने 2022 के विधानसभा चुनाव को बिना गठबंधन के लड़ने की इच्छा जाहिर की है।
- हाल ही में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए नई भाषाओं के बिल में पंजाबी को शामिल ना करने पर भी अकाली दल ने आपत्ति जताई है।
हरसिमरत कौर बादल का केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना, अकाली दल का बीजेपी को संकेत है कि अब दोनों दलों के रास्ते अलग-अलग हैं। बेअदबी और पार्टी में फूट से जूझ रहे अकाली दल के लिए ये तीन कृषि सुधारक बिल गले की फांस बन गए थे। अगले चुनाव में डेढ़ साल ही बचा है। ऐसे में अकाली दल का पंजाब के किसानों के बड़े वोट बैंक को अपने खिलाफ करना अपनी राजनीति की कब्र खोदने जैसा होता।
पंजाब केसरी के लिए मनीष शर्मा की रिपोर्ट