उपचुनाव रिजल्टः भाजपा सोचे, कहां हो रही है चूक

Edited By Seema Sharma,Updated: 01 Jun, 2018 10:06 AM

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लोककसभा चुनावों में अब एक साल से भी कम का वक्त बचा है, ऐसे में उपचुनावों के जरिए भाजपा के दरकते जनसमर्थन का जो संदेश निकल रहा है वह सत्तारूढ़ दल के लिए बड़ी चिंता की बात है। इससे निपटने के लिए भाजपा को गंभीरता से सोचना होगा कि कहां चूक हो रही है।

नई दिल्ली(रंजीव) : लोककसभा चुनावों में अब एक साल से भी कम का वक्त बचा है, ऐसे में उपचुनावों के जरिए भाजपा के दरकते जनसमर्थन का जो संदेश निकल रहा है वह सत्तारूढ़ दल के लिए बड़ी चिंता की बात है। इससे निपटने के लिए भाजपा को गंभीरता से सोचना होगा कि कहां चूक हो रही है। फूलपुर और गोरखपुर के बाद अब कैराना व नूरपुर में भी एकजुट होकर विपक्षी दलों ने भाजपा को हराने में कामयाबी पा ली। यू.पी. के विपक्षी पाले में जीत के इस जश्न ने इन दलों की जिम्मेदारी भी बढ़ा दी है। उनके लिए संदेश साफ  है कि यू.पी. का गैर-भाजपा वोटर विपक्षी दलों का एका चाहता है। लिहाजा 2019 के चुनाव में भी एका कर चुनाव लडऩे की विपक्षी दलों की जिम्मेदारी इन उपचुनावों के नतीजों से बढ़ गई है। उपचुनावों की एक या दो सीटों पर आपसी सहमति एक बात है और लोकसभा के चुनाव में 80 सीटों पर तालमेल कुछ और बात है।
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विपक्षी दल कैसे आपसी सहमति बना पाते हैं उसका बड़ा दारोमदार एस.पी,. बी.एस.पी., आर.एल.डी. और कांग्रेस के नेतृत्व पर रहेगा। बी.एस.पी. प्रमुख मायावती पहले ही कह चुकी हैं कि सीटों का सम्मानजनक बंटवारा होना चाहिए। कैराना और नूरपुर में भाजपा की हार गोरखपुर और फूलपुर की तुलना में अलग मायने रखती है। ये दोनों सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हैं, जहां भाजपा ने 2014 के लोकसभा और फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में यू.पी. फतह करने के बीज बोए थे। यह इलाका धार्मिक ध्रुवीकरण की सियासत की प्रयोगशाला रहा है। उपचुनावों में जिस तरह मुस्लिमों, जाटों, दलितों और अन्य कुछ जातियों ने मिलकर भाजपा के खिलाफ  वोट किया, वह संकेत है कि गए दो चुनावों में गैर-मुस्लिम वोटरों के जिस तबके को धार्मिक पहचान के आधार पर भाजपा खुद से जोडऩे में कामयाब रही थी, वे अब जाति और मुद्दों के आधार पर सियासी प्राथमिकताएं तय करने लगे हैं। ‘जिन्ना नहीं गन्ना’ का विपक्ष का नारा कैराना के वोटरों को पसंद आया। भाजपा की हार का एक अहम पहलू यह है कि केन्द्र के बाद यू.पी. में भी उसकी सरकार बनने के बावजूद प्रदेश में उसे लगातार हार मिल रही है।
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गन्ना किसानों की नाराजगी पश्चिम में यूपी के खिलाफ  बड़ा मुद्दा बना। खुद गन्ना मंत्री सुरेश राणा के विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा हार गई। गन्ना किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए यू.पी. के कई मंत्री लगातार कैराना और नूरपुर में डेरा डाले रहे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई सभाएं कीं। मतदान के एक दिन पहले कैराना के पड़ोस बागपत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक्सप्रैस-वे के उद्घाटन के मौके पर जनसभा में गन्ना किसानों के लिए तमाम बातें कहीं लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि उसका भी असर नहीं हो सका। भाजपा चूंकि सत्ता में है लिहाजा चुनावों में जीत के लिए सरकार और संगठन में जो जरूरी तालमेल होना चाहिए उसमें कमी का मुद्दा भी उपचुनावों के नतीजों के बाद फिर उभर कर सामने आया है। सरकार के जो बड़े चेहरे हाल तक बड़े वोट कैचर माने जाते थे, उनका लोगों पर असर नहीं पड़ रहा और संगठन के जो दिमाग चुनाव जीतने का अचूक फॉर्मूला बनाते रहे थे, अब उनका गणित भी काम नहीं कर रहा। लोकसभा चुनाव के ऐन पहले 80 सीटों वाले यू.पी. में ऐसे हालात सत्तारूढ़ भाजपा के लिए वाकई फिक्रमंद होने वाली बात है।

 

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