बंबई उच्च न्यायालय ने शिवसेना के बागी विधायकों के खिलाफ याचिका को ‘राजनीति से प्रेरित' बताया

Edited By Anil dev,Updated: 30 Jun, 2022 01:51 PM

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बंबई उच्च न्यायालय ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे और पार्टी के अन्य असंतुष्ट विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हुए सात नागरिकों द्वारा दायर जनहित याचिका को बृहस्पतिवार को ‘‘राजनीतिक रूप से प्रेरित मुकदमा'''' बताया और कहा कि अगर...

नेशनल डेस्क: बंबई उच्च न्यायालय ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे और पार्टी के अन्य असंतुष्ट विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हुए सात नागरिकों द्वारा दायर जनहित याचिका को बृहस्पतिवार को ‘‘राजनीतिक रूप से प्रेरित मुकदमा'' बताया और कहा कि अगर याचिकाकर्ता जमानत राशि के तौर पर एक लाख रुपये जमा कराते हैं तो वह याचिका पर सुनवाई करेगा।

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की पीठ ने ‘‘राजद्रोह और सार्वजनिक शांति भंग'' करने के लिए शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, उनके बेटे आदित्य ठाकरे और पार्टी नेता संजय राउत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने का अनुरोध करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत पाटिल द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका भी खारिज कर दी। दोनों याचिकाएं इस हफ्ते की शुरुआत में दायर की गयी थीं। सात नागरिकों द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि शिंदे और अन्य बागी विधायकों ने राजनीतिक उथल-पुथल पैदा की और आंतरिक अव्यवस्था को भड़काया। 

पाटिल ने अपनी जनहित याचिका में ठाकरे पिता-पुत्र और राउत को बागी विधायकों के खिलाफ कोई और बयान देने से रोकने का अनुरोध किया। उच्च न्यायालय ने पाटिल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के पास एक निजी शिकायत के साथ मजिस्ट्रेट की अदालत का रुख करने का कानूनी उपाय था। सात नागरिकों द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने उनके वकील आसिम सरोडे से पूछा कि क्या बुधवार को हुए घटनाक्रम (उद्धव ठाकरे के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने) के मद्देनजर अब भी याचिकाओं पर सुनवाई की जानी चाहिए।

 सरोडे ने कहा कि अदालत को काम से दूर रहने और अपने कर्तव्यों की अनदेखी करने के लिए बागी विधायकों के खिलाफ संज्ञान लेना चाहिए। इस पर पीठ ने पूछा कि अदालत को इसका संज्ञान क्यों लेना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आपने मंत्रियों को चुना, आप कार्रवाई करिए। हमें क्यों संज्ञान लेना चाहिए?'' इसके बाद अदालत ने सरोडे ने पूछा कि कौन-सा नियम कहता है कि विधायकों या मंत्रियों को हर वक्त शहर या राज्य में रहना होगा। अदालत ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया हमारा यह मानना है कि यह पूरी तरह राजनीति से प्रेरित मुकदमा है। याचिकाकर्ताओं ने आवश्यक शोध नहीं किया। हम याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर जमानत राशि के तौर पर एक लाख रुपये जमा कराने का निर्देश देते हैं।'' पीठ ने कहा कि अगर पैसे जमा करा दिए जाते हैं तो जनहित याचिका पर तीन सप्ताह बाद सुनवाई की जा सकती है और अगर पैसे जमा नहीं कराए जाते तो इसका निस्तारण समझा जाए। 

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