अलविदा 2018: इन चुनौतियों से जूझती रही मोदी सरकार

Edited By Anil dev,Updated: 27 Dec, 2018 12:00 PM

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इस साल की शुरूआत में हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने ठोस तरीके से काम करने की चेष्टा की। इसके बावजूद मोदी सरकार के समक्ष पूरा साल कुछ ऐसी चुनौतियां रहीं जिनसे वह सारा साल जूझती रही।

नई दिल्ली: इस साल की शुरूआत में हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने ठोस तरीके से काम करने की चेष्टा की। इसके बावजूद मोदी सरकार के समक्ष पूरा साल कुछ ऐसी चुनौतियां रहीं जिनसे वह सारा साल जूझती रही। चाहे वह राफेल डील हो या किसान आंदोलन, इस तरह की करीब 10 चुनौतियों ने साल भर सरकार की नाक में दम करके रखा। वहीं विपक्ष ने इन चुनौतियों को मुद्दा बनाकर सरकार की विफलता करार दिया और लोगों के बीच इन्हें सरकार की नाकामियों के तौर पर भुनाया। 

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सी.बी.आई. विवाद
खुद को सुशासन का प्रतीक बताने वाली मोदी सरकार उस समय बैकफुट पर चली गई जब अक्तूबर माह में देश की शीर्ष संस्था सी.बी.आई. में ही घूसखोरी के आरोप-प्रत्यारोप की लड़ाई सार्वजनिक हो गई। सी.बी.आई. के 2 वरिष्ठ अधिकारियों की जंग जब बेपर्दा हो गई तो विपक्ष ने सरकार पर तीखा हमला बोला। इस विवाद से जहां सरकार की छवि धूमिल हुई वहीं मोदी पर सरकारी संस्थाओं की स्वायत्तता को खत्म करने का भी आरोप लगा। 

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मी टू 
तनुश्री दत्ता द्वारा उठाए गए मुद्दे से भी सरकार की खासी किरकिरी हुई क्योंकि इस मुहिम के चलते कई पत्रकार महिलाओं ने केंद्र में विदेश राज्यमंत्री एम.जे. अकबर पर यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाए जिससे महिलाओं की सुरक्षा के प्रति सरकार की संवेदना कटघरे में खड़ी हो गई। इसी दबाव के चलते अंतत: सरकार ने अकबर का इस्तीफा ले लिया। 

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शीर्ष अधिकारियों के त्याग पत्र 
देश की शीर्षस्थ संस्थाओं के बड़े नौकरशाहों के इस्तीफे भी पूरे साल भर मोदी सरकार के लिए चुनौती बने रहे। शीर्ष अधिकारियों के त्याग पत्र की यह शृंखला नीति आयोग के चेयरमैन अरविंद पनगढिय़ा के इस्तीफे से शुरू हुई। इसके बाद सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन व फिर आर.बी.आई. के गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे ने विपक्ष को सरकार पर यह आरोप मढऩे का मौका दे दिया कि वह अपने फायदे के लिए शीर्ष अधिकारियों को खुलकर काम करने नहीं दे रही है।

सुप्रीम कोर्ट विवाद
इस साल की शुरूआत में देश में पहली बार न्यायपालिका में असाधारण स्थिति देखी गई। जनवरी माह में सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों ने मीडिया को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि कभी-कभी लगता है कि देश के सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है। अगर ऐसा चलता रहा तो लोकतांत्रिक परिस्थिति ठीक नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि अगर हमने देश के सामने ये बातें नहीं रखीं और हम नहीं बोले तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। इस पत्रकार वार्ता के बाद सरकार में हड़कम्प मच गया था। 

राफेल डील ने साल भर किया नाक में दम
अगर साल 2018 की चुनौतियों की बात करें तो राफेल डील मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी। इस डील ने जहां करीब-करीब निहत्थे हो चुके विपक्ष को बैठे-बिठाए एक बड़ा मुद्दा दे दिया वहीं इस डील ने केंद्र की बेदाग सरकार के दामन पर भ्रष्टाचार का दाग भी लगा दिया। विपक्ष ने इस मुद्दे को इतने आक्रामक तरीके से उठाया कि पूरा साल इस मुद्दे पर मोदी सरकार बैकफुट पर रही। 

किसानों की नाराजगी
 इस साल की शुरूआत में ही किसानों की नाराजगी केंद्र सरकार के लिए चुनौती बनी रही। पहले साऊथ के किसानों का जंतर-मंतर पर धरना और उसके बाद महाराष्ट्र में किसानों की रैली ने सरकार के समक्ष तगड़ी चुनौती पेश की। उसके बाद मध्य प्रदेश मेें किसान आंदोलन ने खासी तेजी पकड़ी जिसके चलते वहां के मंदसौर जिले में फायरिंग में 5 किसान मारे गए। अभी हाल में भी वामपंथी संगठनों की अगुवाई में दिल्ली में एक बड़ी रैली का आयोजन किया गया था जिसमें देशभर के लाखों किसान और मजदूर इक्ट्टा हुए थे। 

एस.सी.एस.टी. एक्ट
केंद्र सरकार द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम में संशोधन के बाद सवर्ण समाज केंद्र सरकार से नाराज हो गया। इस एक्ट के खिलाफ  सवर्ण संगठनों ने 6 सितम्बर को देशव्यापी बंद का आयोजन किया। बंद का मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार समेत कई राज्यों में व्यापक असर देखने को मिला। इस आंदोलन की व्यापकता के चलते सरकार को इसे काबू में करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी।

गिरता रुपया 
साल 2014 से पहले नरेंद्र मोदी अपने चुनावी भाषणों में रुपए के गिरते मूल्य का बार-बार जिक्रकिया करते थे लेकिन रुपए का गिरता मूल्य उनके लिए इस साल चुनौती बना रहा। डॉलर के मुकाबले रुपए में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। 10 सितम्बर को रुपए में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली। डॉलर के मुकाबले रुपया 45 पैसे की गिरावट के साथ 72.18 पर खुला। हालांकि साल के अंत में रुपए की गिरावट कुछ हद तक थम गई है। 

भीड़ हिंसा 
पिछले साल की तरह इस साल भी देश में भीड़ ङ्क्षहसा की घटनाओं के चलते मोदी सरकार कटघरे में दिखी। हालांकि इस दिशा में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म  व्हाट्सएप को चेतावनी दी कि वह अफवाह, भड़काऊ और फेक न्यूज पर रोक लगाने के लिए कदम उठाए। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इस साल भी मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग एक बड़ी समस्या बनी रही। 

पैट्रोल-डीजल के दाम
इस साल पैट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतें मोदी के लिए लगभग पूरा साल चुनौती बनी रहीं। विपक्ष ने पैट्रोल-डीजल की आसमान छूती कीमतों को लेकर सरकार पर जबरदस्त निशाना साधा। कीमतों में हुई लगातार वृद्धि के खिलाफ  कांग्रेस ने 10 सितम्बर को भारत बंद तक बुलाया। हालांकि साल के अंत में तेल की बढ़ी कीमतें थम गई हैं लेकिन साल भर यह मसला सरकार के लिए चुनौती बना रहा है। 

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