Edited By Monika Jamwal,Updated: 28 Sep, 2020 11:58 AM
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने वर्ष 2016-17 के दौरान जम्मू-कश्मीर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के उचित कार्यान्वयन को लेकर राज्य की पिछली पीडीपी-भाजपा सरकार की विफलता को उजागर किया है।
जम्मू : भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने वर्ष 2016-17 के दौरान जम्मू-कश्मीर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के उचित कार्यान्वयन को लेकर राज्य की पिछली पीडीपी-भाजपा सरकार की विफलता को उजागर किया है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उचित योजना तैयार नहीं होने के कारण सभी जिलों के लिए दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित नहीं किया जा सका। कैग ने सामाजिक, सामान्य एवं आर्थिक (गैर सार्वजनिक उपक्रम) क्षेत्र के लिए 31 मार्च 2017 को समाप्त वर्ष की अपनी रिपोर्ट में कहा कि श्रम बजट सौंपे जाने में देरी के कारण केंद्र की ओर से कोष जारी करने में देरी हुई और इसके चलते मजदूरी के भुगतान में भी देरी हुई।
मनरेगा योजना का मकसद प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले परिवार के उन वयस्क सदस्यों को कम से कम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना है जोकि अकुशल मजदूरी करने के लिए तैयार हैं। पिछले सप्ताह संसद में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कैग ने कहा, '' वित्तीय विवरणों में 1.20 करोड़ रुपये के बैंक ब्याज का गैर-लेखाकरण, धनराशि जारी करने में देरी, राज्य के हिस्से का 107.08 करोड़ रुपये कम जारी करना और प्रशासनिक शुल्कों पर 22.85 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च करना कमजोर वित्तीय प्रबंधन को दर्शाता है।'' इसमें कहा गया कि उन जॉब कार्ड धारकों को बेरोजगारी भत्ते का भुगतान नहीं किया गया, जिन्होंने काम मांगा था लेकिन उन्हें काम उपलब्ध नहीं कराया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 77 प्रतिशत मामलों में मजदूरी का भुगतान 15 दिनों के निर्धारित समय के भीतर नहीं किया गया था और 40 प्रतिशत मजदूरी भुगतान 90 दिनों से अधिक की देरी के बाद किया गया था। इसके अलावा, रिपोर्ट में धनराशि खर्च करने के प्रबंधन में भी कमियां उजागर की गई हैं।