Edited By Monika Jamwal,Updated: 27 Jul, 2021 10:59 PM
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यहां कश्मीर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन की शुरुआत स्थानीय भाषा में कर श्रोताओं को अपना मुरीद बना लिया और कहा कि कश्मीर के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव की छाप पूरे भारत में है।
श्रीनगर : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यहां कश्मीर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन की शुरुआत स्थानीय भाषा में कर श्रोताओं को अपना मुरीद बना लिया और कहा कि कश्मीर के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव की छाप पूरे भारत में है। कोविंद ने एसकेआईसीसी सभागार में उपस्थित हस्तियों से कहा, क्या मैं कश्मीरी में कुछ शब्द कह सकता हूं।"
उन्होंने इसके बाद मुस्कराते हुए कहा, "मेंई सापाज खुशी तुही मीलिथ' यानी "आपसे मिलकर खुशी हुई।" स्टेडियम में मौजूद छात्रों सहित अन्य श्रोताओं ने इसपर तालियां बजाकर राष्ट्रपति का स्वागत किया। कोविंद ने कहा कि कश्मीर आए लगभग सभी धर्मों ने इसकी खास विशेषता 'कश्मीरियत' को अपनाया जिससे रूढि़वादिता खत्म हुई और समुदायों के बीच सहिष्णुता तथा पारस्परिक स्वीकृति को प्रोत्साहन मिला।
राष्ट्रपति ने कहा," मैं इस अवसर का उपयोग कश्मीर की युवा पीढ़ी से यह आग्रह करने के लिए करना चाहता हूं कि वह अपनी समृद्ध विरासत से सीखे। उनके पास यह जानने का प्रत्येक कारण है कि कश्मीर सदैव शेष भारत के लिए उम्मीद की किरण रहा है।" उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि कश्मीर के युवा और नारी शक्ति लोकतंत्र का इस्तेमाल शांतिपूर्ण एवं समृद्ध भविष्य के निर्माण के लिए करेंगे।
पिछले वर्षों में कई प्रधानमंत्री स्थानीय लोगों से जुडऩे के लिए अपने संबोधनों में कश्मीरी शब्दों का इस्तेमाल कर चुके हैं। फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एसकेआईसीसी में कश्मीरी बोलकर श्रोताओं को आश्चर्यचकित कर दिया था।
अप्रैल 2003 में यहां एक रैली में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीरी कवि मेहजूर की पंक्तियां बोलकर श्रोताओं की वाहवाही बटोरी थी।