Edited By Anu Malhotra,Updated: 07 Dec, 2024 09:47 AM
बढ़ती इनपुट लागत और महंगाई के दबाव के चलते भारत की प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनियों जैसे मारुति सुजुकी, महिंद्रा एंड महिंद्रा (M&M) और MG मोटर ने अपने सभी मॉडलों की कीमतों में वृद्धि की घोषणा की है, जो 1 जनवरी 2025 से प्रभावी होगी।
नेशनल डेस्क: बढ़ती इनपुट लागत और महंगाई के दबाव के चलते भारत की प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनियों जैसे मारुति सुजुकी, महिंद्रा एंड महिंद्रा (M&M) और MG मोटर ने अपने सभी मॉडलों की कीमतों में वृद्धि की घोषणा की है, जो 1 जनवरी 2025 से प्रभावी होगी।
यह निर्णय ह्युंडई मोटर इंडिया और ऑडी, मर्सिडीज-बेंज और बीएमडब्ल्यू जैसे लग्जरी ब्रांड्स की हालिया घोषणाओं के बाद लिया गया है। इन कंपनियों ने भी अपने वाहनों की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए समान कारण बताए हैं।
कीमतों में बढ़ोतरी की सीमा
Maruti Suzuki: मॉडल्स की कीमतें 4% तक बढ़ेंगी।
Mahindra & Mahindra और MG Motor: कीमतें 3% तक बढ़ेंगी।
Hyundai Motor India: कीमतों में ₹1.25 लाख तक की वृद्धि।
Audi, Mercedes-Benz और BMW: सभी मॉडलों पर 3% का इजाफा।
मूल्य वृद्धि के पीछे के कारण
कीमतों में वृद्धि का मुख्य कारण कमोडिटी प्राइस में बढ़ोतरी और लॉजिस्टिक खर्चों में इजाफा है:
एल्युमीनियम और जिंक जैसी कच्ची सामग्री की कीमतें तेज़ी से बढ़ी हैं।
एल्युमीनियम: सालाना आधार पर 106% वृद्धि।
रबर: 26.8% की बढ़त।
ग्लोबल शिपिंग रूट्स में रुकावट से लॉजिस्टिक लागत में बढ़ोतरी।
विदेशी मुद्रा में उतार-चढ़ाव से आयातित पार्ट्स की कीमतें बढ़ी हैं।
कंपनियों का बयान
मारुति सुजुकी: "हम लागत को कम करने के लिए लगातार प्रयास करते हैं, लेकिन इनपुट कॉस्ट के कुछ हिस्से को ग्राहकों पर डालना अनिवार्य हो जाता है।"
MG Motor India: "हम गुणवत्तापूर्ण वाहनों के प्रति प्रतिबद्ध हैं, लेकिन कीमत में मामूली वृद्धि आवश्यक है ताकि बढ़ते खर्चों की भरपाई हो सके।"
महिंद्रा एंड महिंद्रा: "अतिरिक्त लागत का बड़ा हिस्सा हम खुद वहन कर रहे हैं, लेकिन कुछ हिस्से को ग्राहकों तक पहुंचाना आवश्यक है।"
ग्राहकों पर असर
लगातार बढ़ती इनपुट कॉस्ट और लॉजिस्टिक समस्याओं के कारण कीमतों में वृद्धि से ग्राहकों पर सीधा असर पड़ेगा। नई कीमतें जनवरी 2025 से लागू होंगी। वहीं, कार कंपनियां ग्राहकों को गुणवत्ता बनाए रखने का आश्वासन दे रही हैं। कीमतों में यह बढ़ोतरी ऑटोमोबाइल उद्योग में बढ़ते खर्चों को संभालने का एक तरीका है। हालांकि, यह कदम ग्राहकों के लिए वित्तीय बोझ बढ़ा सकता है, खासकर जब वाहन खरीदने का फैसला जनवरी 2025 के बाद लिया जाएगा।