सीबीआई विवादः वर्मा और अस्थाना को छुट्टी भेजे जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की जनहित याचिका

Edited By Yaspal,Updated: 26 Oct, 2018 07:25 PM

cbi plea pil filed against hc for sending leave to verma and asthana

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को अवकाश पर भेजने तथा भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी एम नागेश्वर राव को जांच एजेंसी...

नई दिल्लीः केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को अवकाश पर भेजने तथा भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी एम नागेश्वर राव को जांच एजेंसी के अंतरिम प्रमुख के तौर पर नियुक्ति के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की गयी है और इसमें सरकार के इस निर्णय को ‘‘पूरी तरह अवैध’’ बताया गया है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस पर कोई भी फैसला देने से इंकार कर दिया और कहा कि यह मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है ।

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अदालत ने कहा कि जनहित याचिका पर सुनवाई किया जाये अथवा नहीं इस पर विचार करने से पहले यह अदालत शीर्ष न्यायालय के फैसले का इंतजार करेगी। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने मामले को 14 नवंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा, ‘‘ऐसा ही मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है । देखते हैं कि इस पर शीर्ष न्यायालय का फैसला क्या होता है। न्यायिक औचित्य यह है कि मामला अगर उच्चतम न्यायालय में है तो उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।’’
 

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उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को वर्मा के खिलाफ जांच पूरा करने के लिए दो हफ्ते की समय सीमा निर्धारित किया है। जांच एजेंसी के विशेष निदेशक अस्थाना के साथ वर्मा का झगड़ा होने के बाद उनसे काम काज वापस लेकर केंद्र सरकार ने उन्हें छुट्टी पर भेज दिया है। शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की देख रेख में जांच कराया जाए। इसके अलावा न्यायालय ने सीबीआई का काम काज देखने के लिए अंतरिम निदेशक बनाये गए राव को किसी बड़े अथवा नीतिगत निर्णय करने से मना कर दिया है।

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उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने वाले एस पोरवाल ने कहा है कि 23 अक्टूबर का केंद्र सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के फैसले तथा दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम का उल्लंघन है। इस अधिनियम के तहत एजेंसी की स्थापना की गई थी और इसलिए केंद्र सरकार के इस फैसले को रद्द कर दिया जाना चाहिए। पेशे से अधिवक्ता पोरवाल ने 23 अक्टूबर को कार्मिक विभाग और सीवीसी की ओर से किये गए अंतरिम व्यवस्था को भी चुनौती दी है। 

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