Edited By Anil dev,Updated: 22 May, 2018 11:35 AM
आदमी के दृढ़ निश्चय के आगे उसकी विपरीत परिस्थितियां भी घुटने टेक देतीं है, उम्र के जिस पड़ाव में शरीर को आराम की जरुरत होती है। तब अपनी जिद पर जीत करने वाले 71 वर्षीय सीताराम न सिर्फ अपने गांव बल्कि आसपास के क्षेत्र में लोगो के लिए प्रेरणा स्त्रोत...
नई दिल्ली: आदमी के दृढ़ निश्चय के आगे उसकी विपरीत परिस्थितियां भी घुटने टेक देतीं है, उम्र के जिस पड़ाव में शरीर को आराम की जरुरत होती है। तब अपनी जिद पर जीत करने वाले 71 वर्षीय सीताराम न सिर्फ अपने गांव बल्कि आसपास के क्षेत्र में लोगो के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गए है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के लवकुशनगर जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत प्रतापपुराके ग्राम हडुआ निवासी 71 वर्षीय सीताराम राजपूत के परिवार के पास लगभग साठ बीघा जमीन है। यह जमीन उसे उसके ननिहाल से मिली थी। पिता की बचपन में हत्या हो गई। उस समय सीताराम की उम्र महज नौ साल थी। उसे और उसके पांच साल छोटे भाई को लेकर उसकी मां उत्तरप्रदेश के महोबा जिले के बिलबई गांव से अपने मायके हडुआ आ गई, जब सीताराम थोड़े बड़े हुए तो उन्होंने न सिर्फ सारे परिवार की जिम्मेदारी संभाली बल्कि परिवार कि खातिर उन्होंने अपनी शादी तक नही की।
पूरा इलाका पथरीला होने के कारण असिंचित जमीन में परिवार का पालन पोषण करना मुश्किल था, ऐसे में सीताराम ने अपने परिवार के साथ मिलकर एक कुआं खोदा जिसमें पानी तो निकला लेकिन इतना पर्याप्त नहीं था की खेतों में सिंचाई हो सके, इसके बाद फिर दूसरा कुआं सारे परिवार ने खोदा इसमें भी जिद सीता राम राजपूत की थी कुआं तो खोदा गया लेकिन इस बार भी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और कुंए में पत्थर निकल आया अब सीताराम के सारे परिवार ने हार मान ली थी लेकिन सीताराम कहां हार मानने वाले थे, जब उन्होंने घर वालों से कहा तो सब नाराज हो गए, क्योंकि न ही परिवार के पास मजदूरी देने को पैसा था और न ही उन्हें पानी निकलने की उम्मीद...
ऐसे में परिवार ने उनका साथ छोड़ दिया सब नाराज थे, गांव के लोग पागल कहने लगे लेकिन सीताराम अपने कर्म पथ पर अकेले ही निकल पड़े रोज अकेले जितना हो सकता खुदाई करते और खुद ही मिटटी फेंकते, मन में सिर्फ एक सहारा था खुद पर आत्मविश्वाश और ऊपर वाले पर भरोसा। वो बस छोडिय़े न हिम्मत बिसारिए न राम, इस बात को रटते रहे, गहराई होती गई और लगभग डेढ़ साल के अंतराल के दौरान आखिर लगभग 30 फिट गहराई में पानी निकाला इस 71 वर्ष के बुजुर्ग ने अपनी हिम्मत और जज्बे से वो कर दिखाया जिसपर आज न सिर्फ उनके घर वालों , गांव के लोगों बल्कि सारे इलाके को उनपर नाज है।
लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने से सीताराम उस कुएं की बंधवाई न कर सके और धीरे धीरे कुएं की मिट्टी धसकने लगी और अब ये आलम है कि सीताराम मदद की आस लगाए हुए है, उनमें आज भी वो हिम्मत है जो आज के नौजवानों के नहीं, वो कहते हैं कि आज भी मैं कुआं खोद सकता हूं, 71 वर्ष की उम्र में वो कभी भी खाली नहीं बैठते वो खेती से जुड़ा हुआ कोई भी काम करते रहते हैं,उनकी यही लग्न और मेहनत उन्हें चुस्त दुरस्त रखती है। जाहिर है जिस उम्र में लोग बिस्तर पकड़ लेते है उस वक्त बिना किसी मदद सीताराम ने वो काम कर डाला जिससे जो गांव वाले उस पर हंसते थे आज उन्हें उस गांव का निवासी होने पर गर्व का एहसास होता है ऐसे में हम भी इस आदर्श बुजुर्ग की हिम्मत और उसके जज्बे को नमन करते है और अब सारा इलाका इस बुजुर्ग को छतरपुर के मांझी नाम से पुकारता है।