...जब चरण-स्पर्श की अभिलाषी वृद्धा से महात्मा गांधी ने मांगा था एक रुपया

Edited By Anil dev,Updated: 02 Oct, 2019 12:58 PM

chhattisgarh mahatma gandhi bilaspur railway station

छत्तीसगढ़ की किवदंतियों में शबरी के भगवान राम के दर्शन की आस और उन्हें जूठे बेर खिलाए जाने जैसा एक प्रसंग यहां महात्मा गांधी के साथ भी चरितार्थ हुआ था जब गांधी जी ने अपने चरण-स्पर्श की अभिलाषी वृद्धा की चाह तो पूरी की लेकिन इसके लिए एक रुपए भी मांगे।

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ की किवदंतियों में शबरी के भगवान राम के दर्शन की आस और उन्हें जूठे बेर खिलाए जाने जैसा एक प्रसंग यहां महात्मा गांधी के साथ भी चरितार्थ हुआ था जब गांधी जी ने अपने चरण-स्पर्श की अभिलाषी वृद्धा की चाह तो पूरी की लेकिन इसके लिए एक रुपए भी मांगे। चौबीस नवंबर 1933 वह ऐतिहासिक दिन था , जब गांधीजी बिलासपुर आए थे। इससे पहले वह रायपुर से बिलासपुर के लिए कार से रवाना हुए थे। रायपुर-बिलासपुर के बीच नांदघाट के पास एक बुजुर्ग महिला गांधीजी के दर्शन के लिए सड़क के बीच ही फूलमाला लेकर खड़ी थी। यह देखकर गांधीजी ने कार रुकवाई और पूछा - क्या बात है? महिला ने कहा कि वह एक हरिजन महिला है तथा मरने से पहले एक बार गांधी जी के चरण धोकर फूल चढ़ाना चाहती है। 
 

सात बजते-बजते सड़कों पर उमड़ पड़ा जनसैलाब 
गांधीजी ने हंसते हुए कहा , उसके लिए तो एक रुपया लूंगा।  महिला हताश हो गई , लेकिन उसने कहा ,  तैं इहें ठहर बाबा, मंय घर मं खोज के आवत हौं। गांधीजी को और मजाक सूझा और कहा,  मेरे पास तो रुकने का समय नहीं है। यह सुनकर वृद्धा फफक कर रो पड़ी। इतने में ही गांधीजी ने अपना एक पांव आगे बढ़ा दिया और वृद्धा की आस पूरी हो गई। छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं पुरातत्व निदेशालय की ओर से राज्य की सांस्कृतिक विरासतों के संकलित दस्तावेजों में गांधीजी की बिलासपुर यात्रा की विस्तृत जानकारी दी गई है। गांधीजी के बिलासपुर पहुंचने से पहले तड़के से ही नगर में भीड़ जुटनी शुरु हो गई थी। सात बजते-बजते सड़कों पर जनसैलाब सा उमड़ पड़ा। गांधीजी सुबह करीब आठ बजे बिलासपुर पहुंचे। मुख्य मार्ग पर तो पैदल चलने की भी जगह नहीं थी। गांधीजी की कार एक तरह से रेंग ही रही थी। सड़कों और घरों की छतों पर खड़े लोग लोग सिक्कों की बौछार कर रहे थे। 


 गांधी जी की कार को घेरे हुए था स्वयंसेवकों का जत्था 
बेतहाशा भीड़ के कारण स्वयंसेवकों का जत्था गांधी जी की कार को घेरे हुए था। जनसमूह का जोश और गांधीजी के चरण स्पर्श की ललक देखते बनती थी। भीड़ की धक्का-मुक्की में काफी संख्या में स्वयंसेवक जख्मी भी हुए। गांधीजी को भोजन-विश्राम के बाद महिलाओं की सभा को संबोधित करने जाना था। जैसे ही गांधीजी कार की ओर बढ़े, उनका एक पैर कार की पायदान पर था और दूसरा जमीन पर था , तभी किसी ने उनका पैर पकड़ लिया। यह देखकर गांधीजी की सभा की रिपोटिंर्ग की जिम्मेदारी संभाल रहे यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव ने अपने पैर से उस व्यक्ति का हाथ दबा दिया। 

बाद में श्रीवास्तव ने अपनी रिपोर्ट में इस वाकये का उल्लेख करते हुए कहा , यह काम क्रूरता का था, लेकिन गांधीजी का पैर छूट गया। यहां से गांधीजी शनिचरी पड़ाव पहुंचे , जहां उनकी सभा थी। सभास्थल पर मानो तिल धरने की भी जगह नहीं थी। गांधीजी के प्रति लगाव का आलम ऐसा था कि वह जिस चबूतरे पर बैठे थे , उसके ईंट-पत्थरों को भी स्मृति के रूप में रखने के लिए बाद में लोग उखाड़ कर ले गए। शनिचरी पड़ाव में सभा को संबोधित करने के बाद गांधी जी रेलवे स्टेशन पहुंचे , जहां से वह रायपुर के लिए रवाना हो गये। 

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