ये कैसा बाल दिवस? 290 बच्चे रोजाना हो रहे अपराध का शिकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Nov, 2017 05:32 AM

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आज पूरा देश बाल दिवस मना रहा है लेकिन जिनके लिए हम यह दिवस मना रहे हैं क्या वे हमारे देश में सुरक्षित हैं। आपराधिक रिकॉर्ड के मुताबिक भारत में बच्चे तस्करी, यौन हिंसा, बाल श्रम और बाल विवाह से लेकर कई खतरों का सामना करते हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि...

नई दिल्ली: आज पूरा देश बाल दिवस मना रहा है लेकिन जिनके लिए हम यह दिवस मना रहे हैं क्या वे हमारे देश में सुरक्षित हैं। आपराधिक रिकॉर्ड के मुताबिक भारत में बच्चे तस्करी, यौन हिंसा, बाल श्रम और बाल विवाह से लेकर कई खतरों का सामना करते हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक दिन 290 बच्चे अपराध का शिकार होते हैं। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार बच्चों के खिलाफ  अपराध 2 साल के अंतराल में 4 गुना बढ़ा है।एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि बच्चे देश के सबसे कमजोर समूहों में शामिल हैं। यौन उत्पीडऩ, अपहरण या हत्या के शिकार होने वालों में 12 साल से कम उम्र के बच्चों का शोषण अधिक होता है। इनके साथ दुव्र्यवहार ज्यादा होता है, क्योंकि वे अधिक संवेदनशील हैं। 

राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के सूत्रों ने बताया कि सर्वेक्षण में 53 फीसदी बच्चों ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में किसी न किसी रूप में यौन उत्पीडऩ का सामना किया है। डाटा से पता चलता है कि बच्चों के साथ अप्राकृतिक अपराधों में भी भारी वृद्धि हुई है। इस बीच दिल्ली पुलिस अपराध रिकॉर्ड से पता चलता है कि हर हफ्ते 2 से अधिक बच्चे यौन उत्पीडऩ की रिपोर्ट दर्ज हुई। 31 अक्तूबर तक राजधानी पुलिस के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में पी.ओ.सी.एस.ओ. अधिनियम के तहत 73 मामले दर्ज किए गए हैं। मानवतावादी सहायता संगठन द्वारा किए गए हाल के सर्वेक्षण के अनुसार विश्व विजन इंडिया ने यह बताया कि हर 2 बच्चों में से एक यौन शोषण का शिकार है। यह सर्वेक्षण देश के 26 राज्यों में आयोजित किया गया था।

डी.सी.डब्ल्यू. का सत्याग्रह  
दिल्ली का महिला आयोग (डी.सी.डब्ल्यू.) पिछले 8 दिनों से ‘सत्याग्रह’ कर रहा है। डी.सी.डब्ल्यू. की अध्यक्षा स्वाती मालीवाल का कहना है कि हम चाहते हैं केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि 6 महीने के भीतर अपराधी को मौत की सजा दी जाए।

बच्चे अपराधियों का सबसे ज्यादा आसान निशाना
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि अपराधियों के लिए बच्चे सबसे ज्यादा आसान निशाना होते हैं, क्योंकि पीड़ित आमतौर पर अभियुक्तों की पहचान करने में विफल रहते हैं और वे आसानी से बच सकते हैं। आपराधिक विश्लेषण से पता चला है कि ज्यादातर मामलों में अपराधियों को अपराध करने से पहले बच्चों का विश्वास हासिल करने में कामयाब रहा था।

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