Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Feb, 2018 11:06 AM
प्रमुख थिंक टैंक की वार्षिक रिपोर्ट में अमरीका के लिए एक बड़ी चुनौती सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन और रूस जिस तरीके से लगातार अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहे हैं, वह अमरीका और उसके सहयोगियों के सैन्य वर्चस्व के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।
बीजिंगः प्रमुख थिंक टैंक की वार्षिक रिपोर्ट में अमरीका के लिए एक बड़ी चुनौती सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन और रूस जिस तरीके से लगातार अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहे हैं, वह अमरीका और उसके सहयोगियों के सैन्य वर्चस्व के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। थिंक टैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी ताकतों को पहले जो रणनीतिक फायदा मिला करता था, वे अब उसके भरोसे नहीं रह सकतीं। रिपोर्ट में खास तौर पर चीन के बढ़ती ताकत का बखान किया गया है, जो भारत की टैंशन भी बढ़ा सकती है।
इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्ट्रैटिजिक स्टडीज (IISS) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट- मिलिटरी बैलेंस, 2018 में चेतावनी दी गई है कि इन महाशक्तियों के बीच युद्ध की आशंका निश्चित तो नहीं, लेकिन रूस और चीन किसी भी संघर्ष की आशंका से निपटने के लिए व्यवस्थित रूप से तैयारियों में जुटे हुए हैं। रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि चीन का नेतृत्व किस तरह शक्तिशाली हथियारों का जखीरा बढ़ा रहा है।
चीन जमीन से लेकर हवा और पानी में भी अपनी ताकत लगातार बढ़ा रहा है। चीन ने हाल ही में घोषणा की है कि वह J-20 लड़ाकू विमानों को अपने बेड़े में शामिल करने जा रहा है। ये लड़ाकू विमान 2020 तक सर्विस में आ जाएंगे। J-20 स्टेल्थ विमान है जो रेडार की पकड़ में नहीं आता। इस तरह चीन ने स्टेल्थ विमानों के मामले में अमेरिका के एकाधिकार को तोड़ दिया है। अभी तक स्टेल्थ विमान सिर्फ अमेरिका के पास है। इसके अलावा चीन का एयर-टु-एयर PL-15 मिसाइल सिस्टम भी इलेक्ट्रॉनिक स्कैन्ड रेडार से लैस होने जा रहा है। यह तकनीक भी कुछ ही देशों के पास है।
इसी तरह चीन अपनी नौसेना की क्षमता को भी बढ़ा रहा है। इस दिशा में चीन की अाक्रामकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 15 सालों में उसने इतने लड़ाकू जलपोत, युद्ध-पोत और पनडुब्बियां का निर्माण किया है कि अगर जापान, भारत और साउथ कोरिया के निर्माणों को मिला भी दिया जाए, तब भी चीन का आंकड़ा ज्यादा होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर युद्ध-पोतों और सहायक-सेना को चीन ने पिछले चार सालों के दौरान लॉन्च किया है, जो फ्रांस की पूरी नेवी से कहीं ज्यादा है। इसके अलावा चीन अफ्रीकी महाद्वीप स्थित जिबूती में अपनी नौसेना का बेस तैयार कर चुका है। दूसरी तरफ फंडिग और व्यवसायिक वजहों से रूस के सैन्यीकरण का काम भले कुछ धीमा है, लेकिन सीरिया और यूक्रेन में युद्ध से मिल रहे अनुभव का रूस का पूरा फायदा मिल रहा है। रूस साइबर हमलों से निपटने की क्षमता भी काफी बढ़ा चुका है।