बंगलादेश में तैयार हो रहा मौत का सामान, 12% कैंसर के मरीज कर रहे नकली दवाइयों का सेवन

Edited By Anil dev,Updated: 21 Nov, 2019 12:00 PM

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मैडीसिन मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन से कच्चे माल के आयात कारण घरेलू फार्मास्यूटिकल्स कम्पनियों की टैंशन अभी खत्म नहीं हुई थी कि बंगलादेश के साथ अन्य देशों से विभिन्न बीमारियों की दवाओं के अवैध रूप से बाजार में आने से उनकी नींद उड़ गई है।

नई दिल्ली(विशेष): मैडीसिन मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन से कच्चे माल के आयात कारण घरेलू फार्मास्यूटिकल्स कम्पनियों की टैंशन अभी खत्म नहीं हुई थी कि बंगलादेश के साथ अन्य देशों से विभिन्न बीमारियों की दवाओं के अवैध रूप से बाजार में आने से उनकी नींद उड़ गई है। इससे न केवल घरेलू फार्मास्यूटिकल्स कम्पनियों की आय पर असर पड़ रहा है बल्कि मरीजों की जान को भी खतरा है। हालात यह हैं कि कैंसर के जिन रोगियों को इन दवाओं को लेने की सलाह दी जाती है, उनमें से 12 प्रतिशत लोगों तक ये नकली दवाएं पहुंच जाती हैं।

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सरकारी संस्थान भी खरीद रहे ये दवाएं
कैंसर रोग विशेषज्ञों अनुमान कैंसर के जिन रोगियों को इन दवाओं को लेने की सलाह दी जाती है उनमें से 12 प्रतिशत लोगों तक ये नकली दवाएं पहुंच जाती हैं। इन कैप्सूल्स की सुरक्षा और असर का कोई अता-पता नहीं है, क्योंकि वे लीगल रूट से देश में नहीं आ रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन दवाओं का क्लीनिकल ट्रायल भी नहीं हुआ है और इन्हें ड्रग कंट्रोलर्स की मंजूरी भी नहीं मिली है। हालात यह हैं कि इम्प्लाइज स्टेट इंश्योरैंस कॉर्पोरेशन (ई.एस.आई.सी.) और सैंट्रल गवर्नमैंट हैल्थ स्कीम (सी.जी.एच.एस.) जैसे सरकारी संस्थान भी अंजाने में इन दवाओं को खरीद रहे हैं।


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सरकार ने कार्रवाई का दिया भरोसा
सूत्रों का कहना है कि ऑर्गेनाइजेशन ऑफ फार्मास्यूटिकल प्रोड्यूसर्स ऑफ इंडिया (ओ.पी.पी.आई.) ने हाल ही में सरकार समक्ष इस मुद्दे को उठाया था। सरकार ने दवा कम्पनियों को भरोसा दिया है कि जल्द ही इसके खिलाफ कदम उठाए जाएंगे। एक विशेषज्ञ ने कहा, ‘‘ऐसी अधिकतर दवाएं बंगलादेश में बनती हैं। इन्हें केवल निर्यात के लिए बनाया जाता है। अगर सीमा पर कड़ी चौकसी की जाए तो इन दवाओं के देश में आने पर रोक लगाई जा सकती है।’’

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300 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार
विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन और कम्पनियों द्वारा की गई पुष्टि के मुताबिक बड़ी फार्मास्यूटिकल्स कम्पनियों के नाम पर कैंसर तथा लिवर से जुड़ी नकली और औषधि विभाग से बिना मंजूरी मिली दवाओं की ‘ग्रे मार्कीट’ बढ़ रही है। चूंकि ये दवाएं तस्करी कर देश में लाई जा रही हैं। इसलिए इसका सही आंकड़ा मौजूद नहीं है लेकिन एक अनुमान के मुताबिक केवल कैंसर की दवाओं की ‘ग्रे मार्कीट’ करीब 300 करोड़ रुपए से अधिक है।
 

डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिए बिकती हैं दवाएं
अन्य दवाओं की तरह कैंसर की दवाएं रिटेलर्स द्वारा नहीं बल्कि डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिए बेची जाती हैं। इसलिए इसका कारोबार करने वाले लोगों की पहचान करने में आसानी होगी। नोवार्टिस, जानसेन, आस्ट्रा जेनेका, ताकेडा और ईसाई जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इसका खमियाजा भुगतना पड़ रहा है। इसका बड़ा कारण यह है कि आस्ट्रा जेनेका की ऑसिमेटिनिव नामक जिस दवा की कीमत 2 लाख रुपए से अधिक है, वहीं इस दवा की कॉपी महज 4,500 रुपए में मिल जाती है। कई अन्य महंगी दवाओं का भी यही हाल है। इसी तरह जानसेन कम्पनी की दवा इब्रूटिनिब की कीमत 4,36,000 के करीब है जबकि इस दवा की कॉपी 23,550 रुपए में मिल जाती है। प्फिजर कम्पनी की दवा क्रिजोटिनिब का मार्कीट प्राइज 1,06,270 रुपए है जबकि इसकी डुप्लीकेट 22,000 रुपए में मिल रही है। अन्य दवाएं पलबोसिकलिब की कीमत 95,000 और टोफासिटिनिब की कीमत 66,344 रुपए है जबकि ये दोनों दवाएं क्रमश: 6,800 और 3200 रुपए में मिल रही हैं। 
 

जानसेन कम्पनी के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘हम रोगी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसमें अवैध रूप से आयातित दवाओं के वितरण से निपटना शामिल हैं। जब भी हमें संभावित अवैध आयातों प्रति सतर्क किया जाता है हम ऐसी गतिविधियों का सामना करने के लिए प्रासंगिक न्यायिक अधिकारियों और कानून प्रवर्तन एजैंसियों के साथ काम करते हैं। हम व्यक्तिगत उत्पाद-विशिष्ट पेटैंट उल्लंघन के आरोपों बारे विशिष्ट विवरण प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि यह एन्फोर्समैंट एजैंसियों के काम को प्रभावित कर सकता है।’’ इंडियन जर्नल ऑफ मैडीकल साइंसेज के एक अध्ययन में कहा गया है कि बंगलादेश की कुछ कम्पनियां व्हाट्सएप, ई-मेल, सोशल मीडिया का उपयोग कर सीमा पार से डॉक्टरों और मरीजों तक पहुंच बना रही हैं और कुछ मामलों में कैंसर अस्पतालों के पास स्थित कैमिस्टों के माध्यम से ये दवाइयां मरीजों तक पहुंच रही हैं।

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