Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Dec, 2017 02:33 PM
भारत के पड़ोसी देशों पर चीन के बढ़ते असर और भारत विरोधी ताकतों के और ताकतवर होने से भारतीय राजनयिक हलकों में चिंता व्याप्त है। पड़ोसी देशों की सरकारों के भारत के प्रति रूखे रवैए से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पड़ोसी पहले की कूटनीति को भी धक्का...
नई दिल्ली(रंजीत कुमार): भारत के पड़ोसी देशों पर चीन के बढ़ते असर और भारत विरोधी ताकतों के और ताकतवर होने से भारतीय राजनयिक हलकों में चिंता व्याप्त है। पड़ोसी देशों की सरकारों के भारत के प्रति रूखे रवैए से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पड़ोसी पहले की कूटनीति को भी धक्का लगेगा।
श्रीलंका में हमबनटोटा बंदरगाह चीन को 99 साल के लिए सौंपने की औपचारिकता पूरी करने के तुरंत बाद ही नेपाल में उस वामपंथी गठजोड़ का सरकार बनाने का रास्ता साफ हु्आ है जिसे चीन की सरकार ने पूरा नैतिक और वित्तीय समर्थन प्रदान किया था। इसके साथ ही भारत के एक और समुद्री पड़ोसी मालदीव पर चीन का शिकंजा कसता जाना भी भारत को चिंतित कर रहा है।
यहां राजनयिक हलकों में माना जा रहा है कि पड़ोसी देशों के अस्थिर राजनीतिक माहौल का चीन नाजायज फायदा उठा रहा है और इन देशों के राजनीतिज्ञों को विभिन्न तरीके से लुभाने में सफल रहा है जिसका नतीजा है कि इन देशों की सरकारों ने भारत को नजरअंदाज करना शुरू किया है। मालदीव ने भारतीय राजदूत से बिना अनुमति मिलने के लिए तीन जन प्रतिनिधियों को मुअत्तल किया है वह भारत का ही अपमान है और यह भारतीय राजनयिकों को हैरान कर रहा है।
भारत ने इन घटनाक्रम पर केवल यही उम्मीद की है कि नेपाल, श्रीलंका और मालदीव भारत की संवेदनशीलताओं को ध्यान में रख कर दूसरे देशों के साथ अपने रिश्ते बढ़ाएंगे। नेपाल में लम्बे अर्से से चल रहे अस्थिर राजनीतिक माहौल के खत्म होने की उम्मीद से नेपाल के राजनीतिक हलकों में सुकून मिल सकता है लेकिन मधेसी समुदाय के हितों की अनदेखी करने वाले नेपाल के भावी प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की नीतियों की वजह से तराई के इलाके में फिर राजनीतिक असंतोष पनप सकता है।
तीन साल पहले जब नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी को भारत का नैतिक समर्थन मिला था तब नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ही थे और उन्होंने भारत को ठेंगा दिखाने के लिए चीन के साथ पारगमन संधि की थी हालांकि यह आर्थिक तौर पर व्यावहारिक नहीं साबित हुआ और नेपाल को अपनी दैनिक जरूरतों के लिए भारत पर ही निर्भरता रखनी पड़ी। लेकिन नेपाल के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जगत पर चीन अपनी आर्थिक ताकत से दबदबा बढ़ाता जा रहा है वह भारत को अधिक चिंतित कर रहा है। नेपाल की वामपंधी सरकार अब पूर्ण जनादेश के साथ अगले पांच सालों के लिए सत्तासीन रहेगी इसलिए भारत को नेपाल के साथ अपने संबंधो और लेनदेन को काफी संतुलित तौर पर विकसित करना होगा। दूसरी ओर मालदीव भारत के समुद्र तट से महज तीन सौ किलोमीटर दूर है जहां चीन पर्यटन के नाम पर कुछ द्वीपों को लीज पर ले चुका है। भारत के सामरिक हलकों मेंं शंका है कि चीन वहां अपनी सैनिक सुविधाएं विकसित कर सकता है।