Edited By Anil dev,Updated: 09 Apr, 2019 02:04 PM
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनाव हो और उसकी सार्वभौमिक रूप से चर्चा न हो यह संभव ही नहीं है। भारत से इतर विदेशों के तमाम अख़बार और चैनल भारतीय चुनाव पर विशेष नज़र बनाये हुए हैं।
नेशनल डेस्क(संजीव शर्मा ): विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनाव हो और उसकी सार्वभौमिक रूप से चर्चा न हो यह संभव ही नहीं है। भारत से इतर विदेशों के तमाम अख़बार और चैनल भारतीय चुनाव पर विशेष नज़र बनाये हुए हैं। खासकर चीन और पाकिस्तान की रूचि देखते ही बनती है। पाकिस्तान के अख़बारों में लगातार भारतीय चुनाव पर विश्लेषण छप रहे हैं तो चीन की सरकारी न्यूज़ एजेंसी ने एशिया -प्रशांत का सेक्शन ही हिंदुस्तान के चुनावों को समर्पित कर डाला है। आइए एक नज़र डालते हैं कौन क्या लिख रहा है ।
द डॉन
पाकिस्तान के प्रमुख मीडिया हाउस द डॉन ने बीजेपी संकल्प पत्र को लेकर छपी खबर में कश्मीर से 370 और 35 -ए हटाने को उछाला है। अख़बार लिखता है कि पुलवामा हमले के बाद बीजेपी ने राष्ट्रवाद को चुनावी हथियार बना लिया है। और अब अपने मैनिफेस्टो में बीजेपी ने कश्मीर को उसके विशेषाधिकार से वंचित करने का ऐलान किया है। हालांकि अख़बार के ही एक अन्य लेख में यह कहा गया है कि भारत में नरेंद्र मोदी दोबारा सरकार बनाने जा रहे हैं। अखबार ने अपने एक सर्वे का हवाला देते हुए कहा है कि मोदी फिर से सरकार बनाने जा रहे हैं, हालांकि इस बार उनके सांसद उतने ज्यादा नहीं होंगे जितने 2014 में थे।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून
पाकिस्तान का ही दूसरा मुख्य अख़बार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून भी हिंदुस्तान के चुनाव पर लगातार नज़र बनाए हुए है। मंगलवार के अपने अंक में अख़बार लिखता है कि चुनाव में नरेंद्र मोदी आर्थिक मोर्चे पर कड़े प्रहारों का सामना कर रहे हैं। खासकर नोटबंदी के बाद उपजे हालातों और उसके लाभ को लेकर चुनाव में विपक्ष उनकी पार्टी को निशाना बनाये हुए हैं।
द न्यूयॉर्क टाइम्स
अमेरिका का प्रमुख अख़बार द न्यूयॉर्क टाइम्स भी लगातार भारतीय चुनाव को कवरेज दे रहा है। अख़बार ने दिल्ली में इसके लिए विशेष रूप से संवाददाता तैनात किया है। अख़बार कि एक खबर के मुताबिक इस बार का चुनाव मोदी के लिए क्रूशियल टेस्ट होगा। इसके पीछे की वजह को रेखांकित करते हुए अखबार कहता है कि भारत जैसे विशाल देश में आर्थिक सुधार एक बड़ा मसला हैं जिनसे मोदी सरकार मुंह मोड़ती नज़र आई है। हालांकि अख़बार यह भी लिखता है कि पाकिस्तान के साथ तनाव से उपजी राष्ट्रवाद की हवा को मोदी भुनाने में सफल होते नज़र आ रहे हैं।
द गार्जियन
अमेरिका का ही प्रमुख अख़बार द गार्जियन भी मानता है कि मोदी की राह उतनी आसान नहीं जितनी 2014 में थी। अख़बार ने भारतीय चुनाव छपी अपनी तमाम रिपोर्ताज में यह बात कई बार लिखी है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का कमबैक महत्वपूर्ण है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने से मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान को ब्रेक लगी है और इसका असर आम चुनाव पर भी पड़ना तय है।
ग्लोबल टाइम्स
चीन के शासकीय अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने भी भारतीय चुनाव पर गहरी नज़र बना रखी है। अखबार लगातार भारतीय राजनीती पर लेख लिख रहा है। बीजेपी के संकल्प पत्र को लेकर ग्लोबल टाइम्स ने लम्बा चौड़ा लेख छापते हुए उसे वायदों के पिटारे की संज्ञा दी है। अखबार के अनुसार बीजेपी ने अगले पांच साल में भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिकी बनाने का संकल्प लिया है, जबकि कांग्रेस ने इस संकल्प पत्र को झूठा बताया है।
शिन्हुआ में विशेष कवरेज
चीन की आधिकारिक न्यूज़ एजेंसी शिन्हुआ भारतीय चुनावों पर विशेष कवरेज दे रही है। एजेंसी का एशिया-प्रशांत सेक्शन आश्चर्यजनक रूप से हिंदुस्तान के आम चुनाव की पल पल की कवरेज से भरा पड़ा है। हालांकि इसमें जो भी जा रहा है वह बड़ी ही चालाकी से चीनी एजेंडे को दर्शाता है । एजेंसी का फोकस नार्थ-ईस्ट इंडिया और कश्मीर पर है। इन ख़बरों में अक्सर एजेंसी अपने हिसाब से कुछ अर्थपूर्ण भाषा का इस्तेमाल करती है जो चीन को पसंद है। मसलन कश्मीर को भारतीय कब्जे वाला लिखा जा रहा है, जबकि अरुणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्र लिखा जा रहा है। मंगलवार को ही एजेंसी ने कश्मीर के सुचेतनगर में गृहमंत्री राजनाथ सिंह के चुनाव प्रचार की तस्वीर जारी है।
मस्त है श्रीलंका का मीडिया
दिलचस्प ढंग से पडोसी देश श्रीलंका में इस बार भारतीय चुनाव को लेकर कोई चर्चा नहीं है। वहाँ के अख़बारों ने आज बीजेपी के घोषणापत्र के बजाए भारत-श्रीलंका डिफेन्स डायलॉग को सचित्र प्रथम पन्ने पर जगह दी है। इसके विपरीत भारतीय चुनाव को लेकर कहीं कोई खबर नज़र नहीं आई। यहां तक कि श्रीलंकाई अखबार तमिल राजनीति को लेकर भी इस बार दूरी बनाये हुए हैं । याद रहे कि श्रीलंका के अख़बार तमिल राजनीती में हमेशा रूचि रखते रहे हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि जयललिता और करूणानिधि के जाने के बाद अब उसके इंट्रेस्ट बदल गए हैं। डेली मिरर, सीलोन आब्जर्वर और दिनमान टाइम्स जैसे दक्षिण भारत में उपलब्ध श्रीलंकाई अख़बार भी भारतीय इलेक्शन से दूरी बनाए हुए हैं।
गठबंधन की चर्चा नहीं
विदेशी मीडिया में जो एक ख़ास बात देखने में आ रही है वह यह है कि कहीं भी भारतीय सियासत की तीसरी शक्ति की चर्चा नहीं है। देश में भले ही एक से एक दिग्गज क्षेत्रीय दल हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता,लेकिन विदेशी मीडिया इस चुनाव को सीधे-सीधे बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबले के रूप में ही ले रहा है। कहीं किसी तीसरे दल या शक्ति या गठबंधन की चर्चा तक नहीं है। यही नहीं अधिकांश विदेशी अखबार जब भी कांग्रेस का जिक्र करते हैं तो इसे महात्मा गाँधी से जोड़ना नहीं भूलते और यह काम अर्थपूर्ण नहीं है।