कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच समझौता सवालों के घेरे में तो आना ही था!

Edited By Anil dev,Updated: 01 Jul, 2020 12:22 PM

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साल 2008 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सी.पी.सी.) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच हुआ समझौता सवालों के घेरे में तो आना ही था। इसके पीछे कई वजह हैं। यह समझौता राजनीतिक, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर विचार-विमर्श के लिए...

नई दिल्ली (विशेष): साल 2008 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सी.पी.सी.) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच हुआ समझौता सवालों के घेरे में तो आना ही था। इसके पीछे कई वजह हैं। यह समझौता राजनीतिक, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर विचार-विमर्श के लिए ओलिम्पिक गेम्स के उद्घाटन से एक दिन पहले हुआ था। कांग्रेस की तरफ से तत्कालीन पार्टी महासचिव राहुल गांधी ने मैमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एम.ओ.यू.) पर हस्ताक्षर किए थे और सी.पी.सी. की तरफ से वांग चियारुई ने दस्तखत किए। यह समझौता पार्टी के स्तर पर हुआ था।

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सोनिया गांधी और तब के चीनी उपराष्ट्रपति शी जिनपिंग कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुए समझौते के गवाह बने थे। राहुल गांधी के हस्ताक्षर किए जाने से पहले उन्होंने और सोनिया ने शी जिनपिंग के साथ एक अलग बैठक भी की थी। यह समझौता उस वक्त हुआ था जब भारत की कम्युनिस्ट पार्टियां कांग्रेस सरकार से नाराज चल रही थीं। अमरीका से परमाणु करार को लेकर दोनों में काफी अनबन थी, लेकिन शी जिनपिंग और सोनिया गांधी ने इस समझौते को सहमति देकर एक नया रास्ता खोलने की उम्म्मीद जताई थी। 2008 में ही शी जिनपिंग को हु जिंताओ के बाद चीन के राष्ट्रपति का सबसे मजबूत दावेदार समझा जाने लगा था। कांग्रेस के लिए यह कोई अनोखा समझौता नहीं था। नेल्सन मंडेला की अफ्रीकी नैशनल कांग्रेस के साथ भी कांग्रेस ने समझौता किया था, लेकिन ये दोनों पार्टियां गांधीवादी विचारधारा की राजनीति की बात करती हैं जबकि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना गांधी के उलट माओ के हिंसक क्रांतिकारी आंदोलन से उपजी है। कांग्रेस और अफ्रीकी नैशनल कांग्रेस प्रजातांत्रिक व्यवस्था की पार्टियां हैं जबकि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी डिक्टेटरशिप वाली सत्ता में भरोसा करती है। शायद यही वजह है कि राहुल गांधी और कांग्रेस को भारत-चीन विवाद के बीच में कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।


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राहुल को 2008 का वाक्या दिलाया जा रहा याद
गलवान घाटी मसले पर मोदी सरकार को समर्थन और फिर अचानक विरोध को लेकर राहुल से ट्विटर पर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी सवाल पूछे जाने लगे हैं। राहुल के चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से कथित संबंधों को लेकर भी कु छ लोग सवाल कर रहे हैं और 2008 का वाक्या याद दिला रहे हैं। सवाल इसलिए कि अमूमन राहुल गांधी चीन को लेकर अलग रुख रखते रहे हैं। जब डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं आंखों में आंखें डालकर एक-दूसरे के सैनिकों की सेहत का अंदाजा लगा रही थीं, तो राहुल ने चीन के राजदूत से मिलकर राजनीतिक हड़कंप मचा दिया था। तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राहुल पर चीन के साथ गुपचुप बातचीत करके भारत का पक्ष कमजोर करने का आरोप लगाया था। फिर, पिछले साल के लोकसभा चुनाव के वक्त राहुल मानसरोवर की तीर्थयात्रा पर गए थे। वहां वह चीन के कई अधिकारियों से मिल आए थे। उनमें से सी.पी.सी. के वरिष्ठ नेता भी थे।

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ओलिम्पिक गेम्स के उद्घाटन समारोह में मनमोहन नहीं गए थे, सोनिया थीं खास मेहमान
भारत में मनमोहन सिंह की सरकार थी। यू.पी.ए. गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी जिसे लैफ्ट फ्रं ट बाहर से समर्थन दे रहा था। उधर, चीन में ओलिम्पिक गेम्स की तैयारी चल रही थी। चीन ने आधिकारिक तौर पर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को उद्घाटन समारोह में आने का न्यौता दिया था। मनमोहन सिंह तो गए नहीं लेकिन उनकी जगह तब के खेल मंत्री एम.एस. गिल शामिल हुए और वी.आई.पी. गैलरी में जॉर्ज बुश, हु जिनताओ समेत तमाम विश्व नेताओं के साथ बैठकर समारोह का मजा लिया।  कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चीनी सरकार की खास मेहमान दीर्घा में बैठी थीं। चीन के दौरे पर सोनिया के साथ तब कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी, उनकी बहन प्रियंका गांधी, उनके पति रॉबर्ट वाड्रा और दोनों बच्चे भी गए थे। 

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