कांग्रेस-बसपा मिले तो बिगड़ेगा भाजपा का खेल!

Edited By Naresh Kumar,Updated: 21 Aug, 2018 03:09 PM

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बहुजन समाज पार्टी को भले ही पिछले लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं मिली हो लेकिन देश के 10 राज्यों में उसका वोट बैंक नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। खासतौर पर इस वर्ष जिन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से 3 बड़े राज्यों...

जालंधर(नरेश कुमार): बहुजन समाज पार्टी को भले ही पिछले लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं मिली हो लेकिन देश के 10 राज्यों में उसका वोट बैंक नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। खासतौर पर इस वर्ष जिन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से 3 बड़े राज्यों में बसपा का वोट कांग्रेस के वोट से जुड़ जाए तो चुनावों के नतीजे पलट सकते हैं। पूर्व में हुए चुनावों के आंकड़े भी इस बात के गवाह हैं। लोकसभा चुनाव में बसपा भले अन्य राज्यों में नतीजे प्रभावित न करे लेकिन विधानसभा चुनाव में वह कई सीटों पर नतीजे पलटने की क्षमता रखती है। यदि विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन आशा के  अनुरूप नतीजे लाने में सफल रहा तो 2019 राष्ट्रीय स्तर पर भी महागठबंधन भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
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छत्तीसगढ़ में 3 बार बिगाड़ा कांग्रेस का खेल 
छत्तीसगढ़ में बसपा के अकेले चुनाव लड़ने के कारण ही भाजपा को 3 बार वहां सरकार बनाने का मौका मिला है। राज्य के गठन के बाद यहां 3 बार चुनाव हुए हैं और तीनों बार भाजपा यहां मात्र 4 फीसदी वोट के अंतर से जीती है और तीनों बार यहां बसपा को 6 फीसदी के करीब वोट हासिल हुए हैं। पिछले चुनाव में भाजपा को यहां 41.04 फीसदी वोटों के साथ 49 सीटें हासिल हुईं जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 40.29 प्रतिशत था लेकिन वोट शेयर में एक फीसदी से कम का अंतर होने के बावजूद सीटों की संख्या 39 रह गई जबकि बसपा ने 4.27 फीसदी वोट हासिल कर सीट तो महज एक हासिल की लेकिन कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया।
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इसी प्रकार 2008 में भाजपा को छत्तीसगढ़ में 40.33 फीसदी वोटों के साथ 50 सीटें हासिल हुईं और कांग्रेस का वोट शेयर 38.63 फीसदी था। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर तो महज डेढ़ फीसदी कम था लेकिन उसकी 12 सीटें कम हो गईं जबकि इस चुनाव में भी बसपा ने 6.11 फीसदी वोट हासिल करके 2 सीटें हासिल कीं लेकिन वोटों का विभाजन करके भाजपा की जीत सुनिश्चित की। इसी प्रकार 2003 के चुनाव में भी भाजपा ने 39.26 फीसदी वोटों के साथ 50 सीटों पर जीत हासिल की जबकि कांग्रेस 36.71 वोटों के साथ महज अढ़ाई फीसदी के अंतर के बावजूद 37 सीटें ही जीत पाई। इस चुनाव में बसपा को 4.45 फीसदी वोटों के साथ 2 सीटें हासिल हुईं।
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राजस्थान 2 चुनावों में गणित बिगाड़ चुकी है बसपा 
छत्तीसगढ़ की तरह राजस्थान में भी बसपा का अच्छा आधार रहा है। 2008 के चुनाव में बसपा को राजस्थान में 6 सीटें हासिल हुई थीं जबकि 1993 और 2003 के चुनाव में बसपा के वोट विभाजित करने के कारण भाजपा चुनाव जीत गई थी। 1993 में राजस्थान में भाजपा को 38.60 फीसदी वोटों के साथ 95 सीटें हासिल हुई थीं जबकि कांग्रेस को भी 38.27 फीसदी वोट हासिल हुए और उसका वोट शेयर भाजपा के मुकाबले महज 0.33 फीसदी कम था लेकिन उसकी सीटें महज 76 रह गईं। इस चुनाव में बसपा को 0.56 फीसदी वोट हासिल हुए थे। ये वोट कांग्रेस के साथ मिलते तो नतीजा कुछ और भी हो सकता था। इसी प्रकार 2003 के चुनाव में भी बसपा द्वारा हासिल किए गए 3.97 फीसदी वोटों ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया था। भाजपा को इस चुनाव में 39.20 फीसदी वोट शेयर के साथ 120 सीटें हासिल हुई थीं जबकि कांग्रेस को 35.65 फीसदी वोट तो हासिल हुएलेकिन उसे 56 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस चुनाव में बसपा को 3.97 फीसदी वोटों के साथ 2 सीटें हासिल हुईं। यदि इन दोनों चुनावों के लिए कांग्रेस और बसपा का गठबंधन होता तो नतीजे अलग हो सकते थे।
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राजस्थान में अन्य के वोट अहम 
राजस्थान में 2 प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा को हर चुनाव में करीब 75 से 80  फीसदी वोट हासिल होते हैं और 20 से 25 फीसदी वोटों पर अन्य छोटी पार्टियों का कब्ज़ा होता है। यदि ये वोट एकजुट हो जाते हैं तो नतीजे प्रभावित हो सकते हैं। कांग्रेस-बसपा के अलावा अन्य छोटी पार्टियों के साथ राजस्थान में तालमेल करे तो राज्य में विधानसभा चुनाव की तस्वीर बदल सकती है। पिछले चुनाव में यहां एन.पी.ई.पी. को 4.25 फीसदी वोट हासिल हुए थे जबकि आजाद उम्मीदवार को 8.21 फीसदी और बसपा को 3.37 फीसदी वोट हासिल हुए थे। ये वोट कुल मिलाकर 16 फीसदी बनते हैं और राजस्थान में  हार-जीत का अंतर 5 फीसदी रहता है। हालांकि पिछले चुनाव में इस मामले में अपवाद था।
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मध्य प्रदेश में बसपा ने 2 बार कांग्रेस का खेल बिगाड़ा, 2 बार भाजपा का 
छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तरह मध्य प्रदेश में भी बहुजन समाज पार्टी का अच्छा-खासा आधार है। पार्टी को यहां 6 से 9 फीसदी वोट हासिल होते रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी ने 2008 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में 8.97 फीसदी वोटों के साथ 7 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में कांग्रेस महज 5 फीसदी वोट के अंतर से हार गई थी, यानि बसपा को मिले वोट कांग्रेस की हार के अंतर से भी 4 फीसदी ज्यादा थे। यदि कांग्रेस और बसपा का वोट विभाजित न होता तो चुनाव में बाजी पलट सकती थी। इस चुनाव में भाजपा को 37.64 फीसदी वोटों के साथ 143 और कांग्रेस को 32.39 फीसदी वोटों के साथ 71 सीटें हासिल हुई थीं। इसी प्रकार पिछले चुनाव दौरान कांग्रेस और भाजपा के चुनाव में 8.50 फीसदी वोटों का अंतर था जबकि बसपा को इस चुनाव में 6.29 फीसदी वोट हासिल हुए थे, यानी दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ती तो स्थिति कुछ और होती। इस चुनाव में भाजपा को 44.88 फीसदी वोटों के साथ 165 और कांग्रेस को 36.38 फीसदी वोटों के साथ 58 सीटें हासिल हुईं जबकि बसपा 6.29 फीसदी वोटों के साथ 4 सीटों पर कामयाब रही। इससे पहले संयुक्त मध्य प्रदेश में हुए चुनाव में 1993 और 1998 के चुनाव में बसपा ने 2 बार 7 फीसदी वोट हासिल करके कांग्रेस को जीत दिलाने में भी अहम भूमिका अदा की थी।

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