तो क्या कांग्रेस अकेले बूते दिल्ली में चुनाव लड़ेगी?

Edited By Anil dev,Updated: 11 Jan, 2019 11:25 AM

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कांग्रेस हाईकमान राहुल गांधी ने एक बार फिर से दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कमान दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सौंपकर उनपर पूरा भरोसा जताया है। दूसरी ओर उनके अनुभवों को देखते हुए संगठन को और मजबूत बनाने का भी दायित्व दिया है।

नई दिल्ली(नवोदय टाइम्स): कांग्रेस हाईकमान राहुल गांधी ने एक बार फिर से दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कमान दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सौंपकर उनपर पूरा भरोसा जताया है। दूसरी ओर उनके अनुभवों को देखते हुए संगठन को और मजबूत बनाने का भी दायित्व दिया है। अब देखना होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और ‘आप’ के बीच गठजोड़ होगा या कांग्रेस अपने दम पर दिल्ली की सातों सीटों पर चुनाव लड़ेगी। प्रदेश अध्यक्ष पद से अजय माकन के इस्तीफे के बाद से ही यह अनुमान था कि शीला दीक्षित को अध्यक्ष बनाया जा सकता है। साथ ही योगानंद शास्त्री और देवेन्द्र यादव भी अध्यक्ष पद की रेस में तो थे लेकिन शीला दीक्षित की विकास वाली छवि और अनुभव के सामने सभी पीछे छूट गए। उनके साथ ही अब दिल्ली के पूर्व मंत्री हारून यूसुफ, युवा नेता देवेन्द्र यादव और राजेश लिलोथिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। 

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कांग्रेस पहुंची तीसरे नम्बर पर... कहा, आगे-आगे देखिए होता है क्या
वैसे राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा थी कि अजय माकन ने केजरीवाल के साथ गठबंधन की संभावना को देखते हुए इस्तीफा दिया। लेकिन गत माह हुए विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पार्टी हाईकमान ने युवाओं और अनुभव को वरीयता दी। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी ने अनुभवी शीला दीक्षित पर भरोसा जताना उचित समझा। उनकी उम्र को ध्यान में रखते हुए ही प्रदेश संगठन में तीन कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए हैं। संभवत: इस तरह की नियुक्ति संगठन में पहली बार की गई है। पार्टी ने एक तरीके से यह माना कि जिस तरह पार्टी में अंदरूनी कलह है उसे बहुत हद तक पाटने का काम शीला दीक्षित कर सकती हैं। इसीलिए उन्हें वरीयता दी गई है। 

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20 लोगों ने किया था अध्यक्ष बनने के लिए दावा
अजय माकन द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद से ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए पहले तो 4-5 नाम ही चल रहे थे लेकिन दावेदारी 15 से 20 वरिष्ठ नेता ठोक चुके थे। इनमें कई पूर्व अध्यक्ष, सांसद, मंंत्री और विधायक शामिल थे। जितने अधिक नाम थे, उतना ही उन्हें लेकर विरोधाभास भी था। आपस में ही एक दूसरे की काट करने का दौर भी जोरों पर चल रहा था। लेकिन आखिरकार बाजी शीला दीक्षित के हाथ लगी। 

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इसलिए था शीला का  नाम सबसे आगे
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर शीला दीक्षित का नाम सबसे आगे होने की कई वजहें थीं। जहां दलित नेता के तौर पर राजेश लिलोठिया, पंजाबी चेहरे के तौर पर प्रह्लाद सिंह साहनी और अरविंदर सिंह लवली थे तो जाट चेहरे में योगानंद शास्त्री का नाम भी था। इसके अलावा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी की काट के लिए पूर्वांचली चेहरे के तौर पर महाबल मिश्रा भी खुद की दावेदारी ठोक रहे थे। इस सबके बीच शीला दीक्षित का 15 साल तक दिल्ली में सफल सरकार चलाने का अनुभव सब पर भारी पड़ गया। खास बात यह है कि शीला दीक्षित ऐसी कद्दावर नेता हैं जिनका लोहा विरोधी दल आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी भी मानती है। शीला दीक्षित देश की ऐसी पहली महिला मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लगातार तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला है। इसके अलावा वे केरल की पूर्व राज्यपाल भी रह चुकीं हैं। यह अलग बात है कि जब उन्हें उत्तर प्रदेश में पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया और चुनाव प्रचार की कमान दी गई, तो वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं थीं। 

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