Edited By Anil dev,Updated: 14 Mar, 2019 05:38 PM
कांग्रेस ने सुरक्षा परिषद् में मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने में चीन के अड़ंगे को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि यह आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई के लिए बड़ा झटका है और इससे साफ हो गया है कि चीन पाकिस्तान में पोषित आतंकवाद के...
नई दिल्ली: कांग्रेस ने सुरक्षा परिषद् में मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने में चीन के अड़ंगे को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि यह आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई के लिए बड़ा झटका है और इससे साफ हो गया है कि चीन पाकिस्तान में आतंकवाद के साथ खड़ा है। कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख रणदीपसिंह सुरजेवाला ने गुरुवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित नहीं करा पाना कूटनीतिक विफलता है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार की विदेश नीति ढुलमुल तथा बहुत कमजोर रही है और इसी का परिणाम है कि जैश सरगना को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने में चीन ने फिर अडंगा लगा दिया।
विफल होने पर भाजपा को याद आते हैं नेहरू
अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के समर्थन के बावजूद चीन के वीटो के कारण मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित नहीं करा पाने पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा चीन को शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बतौर ‘उपहार’ स्थान दिलाने संबंधी आरोप पर सुरजेवाला ने कहा कि भाजपा जब भी अपनी नीतियों के कारण विफल होती है तो उसे पंडित नेहरू याद आ जाते हैं। अपनी विफलता को वह पंडित नेहरू के आवरण में छिपाने का प्रयास शुरू कर देती है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का गठन 1945 में हुआ था और तब तक भारत आजाद भी नहीं हुआ था। उसके बाद अब तक इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है।
हाल में चीन ने मोदी की अरुणाचल यात्रा का किया था विरोध
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में चीन ने डोकलाम में सैन्य कॉम्पलेक्स बना दिया। चीन ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का निर्माण कर दिया है। अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर सुरंग बना दी है और सिक्किम के नजदीक उसने अपना एयर बेस बना लिया है लेकिन मोदी सरकार उसकी इन सब गतिविधियों से बेखबर है। उन्होंने कहा कि यहीं नहीं हाल में चीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अरुणाचल यात्रा का भी विरोध किया था। इससे पहले उसने उत्तराखंड तथा हिमालच में पिछले पांच साल के दौरान कई बार हवाई सीमा का उल्लंघन किया है लेकिन मोदी सरकार ने इस पर कोई सख्त कदम नहीं उठाये और वह ‘झूला झूलने तथा गले लगने’ की कूटनीति में ही जुटी रही।