केरल में शुरू हुआ कोंवालेसेंट प्लाज्मा थैरेपी का ट्रायल, जल्द हो सकेगा कोरोना का सफल इलाज!

Edited By Chandan,Updated: 13 Apr, 2020 07:48 PM

convalescent plasma therapy trial started corona treatment will be possible soon

कोरोना वायरस का भारत में सबसे पहला केस केरल से सामने आया। केरल में अब कोरोना पर काबू भी पा लिया गया है। केरल में अब तक 376 कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आए हैं लेकिन राज्य में अब तक केवल दो मौतें हुई है। जबकि संक्रमित मामलों में से आधे ठीक हो चुके हैं।

नई दिल्ली। कोरोना वायरस का भारत में सबसे पहला केस केरल से सामने आया। केरल में अब कोरोना पर काबू भी पा लिया गया है। केरल में अब तक 376 कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आए हैं लेकिन राज्य में अब तक केवल दो मौतें हुई है। जबकि संक्रमित मामलों में से आधे ठीक हो चुके हैं।

इस बीच केरल ने जिस थैरपी का इस्तेमाल शुरू किया है उससे कोरोना के मरीजों में सुधार देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि ये थैरेपी इबोला में भी काफी असरदार साबित हुई थी और अब इसे कोरोना मरीजों के लिए इस्तेमाल किया जायेगा और इस बारे में इसके लगातार ट्रायल जारी हैं। न सिर्फ भारत में बल्कि चीन में भी इसके ट्रायल किए जा रहे हैं। आईये विस्तार से जानते हैं...

क्या है ये थैरेपी
इसे कोंवालेसेंट प्लाज्मा थैरेपी कहा जाता है। बताया जा रहा है कि ये कोरोना से ठीक हुए लोगो के शरीर से लिए गये ब्लड की मदद से काम करती है। यह थैरेपी उन मरीजों की दी जाएगी जिनकी कोरोना से हालात ज्यादा खराब है। इस थैरपी में कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों से ब्लड लिया जाता है और उसमें मौजूद एंटीबॉडीज को नए कोरोना के मरीजों में चढ़ाया जाता है।

अभी इसके क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं जिनके लिए पांच मेडिकल कॉलेजों से करार हुआ। यह इबोला में भी कारगर रही थी और अब इसकी सफलता को देखने के लिए जापानी फार्मा कंपनी टाकेडा भी इस थैरेपी का ट्रायल कर रही है।

उम्मीद की जा रही है कि यदि ट्रायल सफल रहा तो जल्द ही कोरोना मरीजों का इलाज इस कोंवालेसेंट प्लाज्मा थैरेपी से किया जायेगा। फिलहाल, इंस्टीट्यूट को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने केरल के एक इंस्टीट्यूट को इसके ट्रायल करने की अनुमति दी है।

कैसे करती है ये काम
जानकारों के अनुसार, इस थैरेपी में जब कोरोना से ठीक हुए मरीजों के शरीर से एंटीबॉडी नए कोरोना संक्रमित मरीजों में पहुंचाई जाती है, जिससे उनका इम्युनिटी सिस्टम में सुधार होता है।
दरअसल, ठीक हुए कोरोना मरीजों का शरीर एंटीबॉडीज बनाता है जो उनमे फिर हमेशा रहता है। यह एंटीबॉडीज ब्लड प्लाज्मा में पाए जाते हैं। इसे शरीर से निकाल कर दवा में बदला जाता है।

इसके लिए प्लाज्मा से ब्लड को अलग किया जाता है। इसके बाद इससे एंटीबॉडीज निकाली जाती हैं और जब ये एंटीबॉडीज कोरोना के नए मरीज में डाली जाती है तब ये स्टेप प्लाज्मा डेराइव्ड थैरेपी कहलाता है। इसकी खासियत यह है कि यह मरीज के शरीर को बिमारियों से लड़ने में तब तक मदद करता है जब तक बीमार शरीर खुद इसे बनाने लायक न हो जाए।

इतना समय लेती है
डॉक्टरों की माने तो इसी बॉडी में इस एंटीबॉडी सीरम को देने के बाद यह उस शरीर में 3 से 4 दिन तक बनी रहती है। इस बीच मरीज ठीक होने लगता है, उसकी बॉडी रिकवर करने लगती है। इस बारे में चीन और अमेरिका में जो शोध किए गये हैं उनके अनुसार, इस एंटीबॉडी सीरम का बॉडी में इन्ही दिनों में दिखने लगता है।

वहीँ इस बार में विशेषज्ञों का कहना है कि ये आसान काम नहीं है। ब्लड से प्लाज्मा निकाल कर उसे दूसरे शरीर में डालना बहुत बड़ी चुनौती है।

 

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