अजरबैजान: गतिरोध की भेंट चढ़ा COP29 का पहला सप्ताह, मतभेदों के कारण प्रमुख मुद्दों पर नहीं बनी बात

Edited By Tanuja,Updated: 17 Nov, 2024 06:13 PM

cop29 talks struggle in a year of climate stress and global

अजरबैजान (Azerbaizan) के बाकू में COP29 शिखर सम्मेलन का पहला सप्ताह बिना किसी महत्वपूर्ण सफलता के संपन्न हो गया क्योंकि विकसित और विकासशील देशों के बीच गहरे मतभेदों के कारण जलवायु...

International Desk: अजरबैजान (Azerbaizan) के बाकू में COP29 शिखर सम्मेलन का पहला सप्ताह बिना किसी महत्वपूर्ण सफलता के संपन्न हो गया क्योंकि विकसित और विकासशील देशों के बीच गहरे मतभेदों के कारण जलवायु वित्त, व्यापार उपायों और जलवायु कार्रवाई के लिए न्यायसंगत जिम्मेदारी जैसे प्रमुख मुद्दों पर प्रगति अवरुद्ध हो गई। जी-77/चीन एवं अन्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत ने अधूरी वित्तीय प्रतिबद्धताओं पर विकसित देशों से जवाबदेही की मांग की। जी-77/चीन गुट ने जलवायु वित्त पोषण के लिए प्रतिवर्ष 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर (American Dollor) की मांग दोहराई, जिसमें अनुदान और रियायती वित्तपोषण पर जोर दिया गया ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पहले से ही जूझ रही कमजोर अर्थव्यवस्थाओं पर बोझ न पड़े।

 

विकसित देशों से ऋण-प्रेरित प्रणाली से परहेज करने का आग्रह करते हुए एक भारतीय वार्ताकार ने कहा, ‘‘अब तक उपलब्ध कराए गए जलवायु वित्त का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा ऋण के रूप में है। यह अस्वीकार्य है और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर अनुचित दबाव डालता है।'' संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख साइमन स्टील ने जी-20 देशों से ‘‘साहसिक'' कदम उठाने का आग्रह किया और चेतावनी दी कि इसके बिना, समूह में कोई भी अर्थव्यवस्था जलवायु-संचालित आर्थिक नुकसान से बच नहीं पाएगी। हालांकि, एकजुटता के उनके आह्वान से गतिरोध दूर नहीं हो सका। ‘ई3जी' की जलवायु कूटनीति टीम की कोसिमा कैसल ने भू-राजनीतिक तनावों से उत्पन्न चुनौतियों को स्वीकार किया, लेकिन रियो डी जेनेरियो में आगामी जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन की संभावनाओं को रेखांकित किया। ‘ई3जी' एक इंजीनियरिंग और पर्यावरण परामर्श फर्म है।

 

कैसल ने कहा कि जी-20 देशों के पास महत्वाकांक्षी जलवायु समझौतों को मूर्त रूप देने की कुंजी है, जो वैश्विक उत्सर्जन के 80 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं और विश्व अर्थव्यवस्था में 85 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं। यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) के विवादास्पद मुद्दे ने भी तीखी बहस को बढ़ावा दिया। भारत और अन्य विकासशील देशों ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि इससे उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर अनुचित रूप से जुर्माना लगाया जा रहा है तथा इसे समता के सिद्धांतों और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) का उल्लंघन करार दिया। बोलीविया के एक वार्ताकार ने भारत की चिंताओं को दोहराते हुए चेतावनी दी, ‘‘सीबीएएम जलवायु कार्रवाई की जिम्मेदारी न्यूनतम ऐतिहासिक उत्सर्जन वाले देशों पर डालता है, जिससे विकासशील देशों में औद्योगिक विकास प्रभावित होता है।'' संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी) के पहले सप्ताह के दौरान प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एक और अनसुलझा मुद्दा बनकर उभरा। विकासशील देशों ने वित्तीय सहायता द्वारा समर्थित एक मजबूत प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन कार्यक्रम की मांग की है।  

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