Edited By Riya bawa,Updated: 03 Apr, 2020 01:58 PM
कोरोना वायरस से दुनिया के तमाम बड़े डॉक्टर और वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे है परन्तु इसकी चर्चा के बीच इसके वायरल डोज यानी संक्रमण की...
नई दिल्ली: कोरोना वायरस से दुनिया के तमाम बड़े डॉक्टर और वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे है परन्तु इसकी चर्चा के बीच इसके वायरल डोज यानी संक्रमण की मात्रा को अनदेखा किया जा रहा है। अन्य विषाक्त पदार्थों की तरह ही अधिक संख्या वाले वायरस ज्यादा खतरनाक होते हैं। कम वायरसों के संपर्क में आने से हल्के लक्षण या कोई लक्षण नहीं दिखते हैं जबकि ज्यादा मात्रा में वायरसों के संपर्क में आना घातक हो सकता है।
एक तरीके का नहीं है कोरोना
कोरोना वायरस के सभी एक्सपोजर एक तरीके के नहीं होते हैं। उदाहरण के तौर पर, किसी ऐसी बिल्डिंग में जहां से संक्रमित व्यक्ति होकर गुजरा हो, जाना उतना खतरनाक नहीं है जितना कि ट्रेन में किसी कोरोना के संक्रमित व्यक्ति के बगल में बैठकर सफर करना है। हाई डोज के संक्रमण को रोकने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
इस तरह करता है कोरोना अटैक
कम और ज्यादा दोनों मात्रा के वायरस हमारी कोशिकाओं के भीतर अपनी संख्या बढ़ा सकते हैं और जिन लोगों की इम्यून पावर कमजोर है, उनमें गंभीर बीमारियां पैदा कर सकते हैं। हालांकि, स्वस्थ लोगों का इम्यून सिस्टम वायरस की भनक लगते ही तेजी से अपना काम शुरू कर देता है। विशेषज्ञ इस बात को जानते हैं कि वायरसों की संख्या बीमारी की गंभीरता को और बढ़ा सकती है।
हाई डोज़ में दिखे गंभीर लक्षण
मनुष्यों पर भी वायरल डोज का उतना ही असर होता है। कुछ वॉलंटियर्स प्रयोग के लिए सर्दी और डायरिया जैसी बीमारी पैदा करने वाले वायरसों के संपर्क में आए। जिन लोगों को वायरल डोज की कम मात्रा दी गई उनमें इंफेक्शन की लक्षण बहुत कम दिखे जबकि हाई डोज वाले लोगों में ज्यादा और गंभीर संक्रमण के लक्षण दिखे।
अनदेखी पड़ सकती है भारी
कई प्रमाण होने के बावजूद, कोरोना वायरस महामारी के दौरान वायरल डोज के महत्व और गंभीरता की अनदेखी की जा रही है। लोगों को हाई-डोज एक्सपोजर को लेकर विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। हाई डोज एक्सपोजर की संभावना उन लोगों में ज्यादा होती है जो लोगों के बहुत करीब जा कर मिलते हैं ये कॉफी मीटिंग, बार या किसी बुजुर्ग के साथ एक कमरे में रहने से भी फैल सकता है।