कोरोना को लेकर चौंकाने वाली बात आई सामने!

Edited By Anil dev,Updated: 26 Sep, 2020 10:59 AM

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कोरोना संक्रमण केवल स्वास्थ्य के लिए ही चुनौती नहीं है बल्कि यह अपने आप में कई रहस्य भी समेटे हुए है। रोजाना कोरोना को लेकर नई और हैरान करने वाली जानकारी सामने आ रही है। इस बार जो ताजा जानकारी निकलकर सामने आई है वह ओरल हेल्थ के लिहाज से तो...

नई दिल्ली(नवोदय टाइम्स): कोरोना संक्रमण केवल स्वास्थ्य के लिए ही चुनौती नहीं है बल्कि यह अपने आप में कई रहस्य भी समेटे हुए है। रोजाना कोरोना को लेकर नई और हैरान करने वाली जानकारी सामने आ रही है। इस बार जो ताजा जानकारी निकलकर सामने आई है वह ओरल हेल्थ के लिहाज से तो महत्वपूर्ण है। चौंकाने वाली यह भी जानकारी सामने आई है कि अगर किसी व्यक्ति को बैक्टीरियल संक्रमण है तो कोरोना जैसे वायरस जनित संक्रमण का खतरा बेहद बढ़ जाता है। 

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एम्स में सेंटर फॉर डेंटल एंड रिसर्च (सीडीईआर) विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर (डॉ.) अमृता चावला के मुताबिक यात्रा की लंबी अवधि के दौरान सभी यात्रियों को एक ही हवा में सांस लेना होता है। इस दौरान लोग लापरवाह भी हो जाते हैं। ओरल हाइजीन का भी ख्याल नहीं करते। लंबी यात्रा के दौरान नियमित अंतराल पर भोजन भी करना होता है और भोजन करते वक्त हानिकारक जीवाणु या विषाणु का मुंह के माध्यम से शरीर के अंदर पहुंचने का खतरा बढ़ जाता है। कोरोनाकाल में लोग लंबी यात्रा के दौरान एहतिहातन काफी समय तक मुंह बंद रखते हैं। इस वजह से मुंह में लार की मात्रा कम हो जाती है। ऐसे में दांतों के बीच बहुत सारे खाद्य कणों के टुकड़े फंसे होते हैं। जिससे मुंह के अंदर बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है।  बैक्टीरिया बेहद तेजी के साथ खुद को विभाजित कर लेते हैं। नतीजतन, उनकी संख्या बढ़ती चली जाती है और शीघ्र मुंह के अंदर असंख्य बैक्टीरिया फैल जाते हैं।  

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बैक्टीरिया के माध्यम से भी शरीर में दाखिल हो सकता है वायरस
प्रो. अमृता के मुताबिक वर्ष 2020 में ही किए गए वैज्ञानिक अध्ययन से यह प्रमाणित हो चुका है कि वायरस न सिर्फ बैक्टीरिया के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं बल्कि निचले और ऊपरी श्वसन पथ के लार से भी वायरस के शरीर के अंदर प्रवेश करने की संभावना बनी रहती है। जो व्यक्ति बैक्टीरियल संक्रमण से पीड़ित हैं उसके श्वसन संबंधी वायरल संक्रमणों से पीड़ित होने की सम्भवना आम व्यक्तिओं से ज्यादा होती है। ऐसे में बीमारी की गंभीरता और मृत्यु दर भी बढ़ जाती है। वर्ष 1918 में इन्फ्लूएंजा महामारी के मामले में ऐसा हो चुका है। 


 

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