Edited By Riya bawa,Updated: 01 Apr, 2020 04:15 PM
कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच अमेरिका में हुई स्टडी में एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। टीबी (यक्ष्मा/तपेदिक) जैसी गंभीर बीमारी से बचाव के लिए नवजात शिशु को दिया जाने वाला बीसीजी का टीका...
नई दिल्ली : कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच अमेरिका में हुई स्टडी में एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। टीबी (यक्ष्मा/तपेदिक) जैसी गंभीर बीमारी से बचाव के लिए नवजात शिशु को दिया जाने वाला बीसीजी का टीका कोरोना वायरस संक्रमण में सुरक्षा के तौर पर काफी सहायक हो सकता है। इस स्टडी के मुताबिक कोरोना संक्रमण और उससे हुई मौत के मामले उन देशों में अधिक हैं, जहां बीसीजी टीकाकरण की पॉलिसी या तो नहीं है या फिर बंद हो गई है। वहीं, जिन देशों में बीसीजी टीकाकरण अभियान चल रहा है, वहां कोरोना संक्रमण और मौत के मामले अपेक्षाकृत कम हैं।
ये सामने आया अध्यन में
न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल साइंसेस की ओर से बीसीजी टीकाकरण वाली आबादी पर कोरोना संक्रमण के असर का विश्लेषण करने के लिए यह स्टडी की गई। इसमें पाया गया कि बिना बीसीजी टीकाकरण वाले देशों जैसे इटली, अमेरिका, लेबनान, नीदरलैंड और बेल्जियम की तुलना में भारत, जापान, ब्राजील जैसे बीसीजी टीकाकरण वाले देशों में कोरोना संक्रमण और उससे हुई मौत के मामले कम हैं। हालांकि चीन में भी बीसीजी टीकाकरण पॉलिसी है, लेकिन चूंकि कोरोना वायरस की शुरुआत वहीं से हुई, इसलिए इस स्टडी में चीन को अपवाद माना गया।
भारत में कम है बढ़ने के आसार
वैज्ञानिकों का मानना है कि चीन, इटली या अमेरिका की तुलना में भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण ज्यादा बढ़ नहीं सकता। सभी देशों में पाए गए इस वायरस के स्ट्रेन यानी जेनेटिक वैरिएंट में अंतर पाया गया है। भारत में वैज्ञानिकों ने कोरोना के स्ट्रेन को अलग करने में कई देशों से पहले कामयाबी पा ली थी। ऐसा करने वाला यह दुनिया का पांचवां देश है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना के 12 नमूनों की जांच कर जिनोम की जो क्रम तैयार किया है, उसकी प्राथमिक रिपोर्ट के मुताबिक देश में मिला वायरस सिंगल स्पाइक है, जबकि इटली चीन और अमेरिका में मिले वायरस ट्रिपल स्पाइक हैं। इस आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में फैला वायरस इंसानी कोशिकाओं को ट्रिपल स्पाइक वाले वायरस की अपेक्षा कम मजबूती से पकड़ पाता है।
जल्द शुरू होगा ट्रायल
हालांकि वैज्ञानिकों यह बात भी जोड़ते हैं कि यह एक प्राथमिक स्टडी है और इस आधार पर बिना ट्रायल के इसके परिणाम पर बहुत निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। फिर भी इस स्टडी ने कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में एक उम्मीद दिखाई है।