Edited By Riya bawa,Updated: 02 Apr, 2020 11:45 AM
चीन के वुहान से निकला कोरोना वायरस पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रहा है। हर दिन इसके मरीजों की संख्या बढ़ रही है। परेशान करने वाली बात ये है की अभी तक इस बीमारी का कोई इलाज़...
नई दिल्ली : चीन के वुहान से निकला कोरोना वायरस पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रहा है। हर दिन इसके मरीजों की संख्या बढ़ रही है। परेशान करने वाली बात ये है की अभी तक इस बीमारी का कोई इलाज़ नहीं निकाला गया है। कोरोना वायरस से निपटने के लिए तमाम तरह के प्रयास हो रहे हैं। हालांकि, प्राथमिक इलाज लक्षणों के आधार पर किया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के मुताबिक अलग-अलग लक्षणों वाले लोगों के इलाज के लिए अलग-अलग ट्रीटमेंट और दवाओं की मात्रा बताई गई है। वहीं, दूसरी ओर इसकी वैक्सीन बनाने में भी अलग-अलग देशों के वैज्ञानिक लगे हुए हैं। इसी के साथ साथ बीसीजी और प्लेग की दवाइयों पर भी रहे हैं।
प्लेग महामारी फैलते वक़्त भी हुआ था ऐसा
ऐसे समय में प्लेग को खत्म करने वाले बैक्टीरियोलॉजिस्ट यानी जीवाणुविज्ञानी वालदेमार हाफ्फिन के टीके और उसके लिए भारत में किए गए रिसर्च को याद किया जा रहा है। कोरोना वायरस की वजह से इस शताब्दी की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रही दुनिया को हाफ्किन का अनुसंधान याद आ रहा है। रूस के रहने वाले हाफ्किन ने भारत में 22 साल बिताए थे।
बचाई थी लाखों ज़िंदगियां
भारत में 22 साल बिताने वाले हाफ्फिन ने मुंबई के सरकारी ग्रांट मेडिकल कॉलेज और सर जेजे अस्पताल की इमारत में बुबोनिक प्लेग के टीके पर अनुसंधान किया था। इस टीके ने लाखों जिंदगियां बचाई, जिससे पूरे मानवता की सेवा हुई। उन्हें कॉलरा का टीका बनाने का भी श्रेय दिया जाता है। जेजे अस्पताल के रेजीडेंट मेडिकल अधिकारी डॉक्टर रेवत कानिन्दे ने कहा कि इस इमारत को देखते हुए और इसकी समृद्ध विरासत और हाफ्किन के समृद्ध अनुसंधान याद आते हैं।