Edited By Seema Sharma,Updated: 01 Dec, 2020 02:35 PM
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कोरोना मरीजों के मकान के बाहर एक बार पोस्टर लग जाने पर उनके साथ ‘अछूतों'' जैसा व्यवहार हो रहा है और यह जमीनी स्तर पर एक अलग हकीकत बयान करता है। इस पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हालांकि उसने यह नियम नहीं...
नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कोरोना मरीजों के मकान के बाहर एक बार पोस्टर लग जाने पर उनके साथ ‘अछूतों' जैसा व्यवहार हो रहा है और यह जमीनी स्तर पर एक अलग हकीकत बयान करता है। इस पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हालांकि उसने यह नियम नहीं बनाया है लेकिन इसकी covid-19 मरीजों को ‘कलंकित' करने की मंशा नहीं है, इसका लक्ष्य अन्य लोगों की सुरक्षा करना है। जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम. आर. शाह की पीठ ने कहा कि जमीनी स्तर की हकीकत ‘कुछ अलग है' और उनके मकानों पर ऐसा पोस्टर लगने के बाद उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है।
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कुछ राज्य संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर पर ऐसा कर रहे हैं। मेहता ने कहा कि covid-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए देशव्यापी दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर न्यायालय के आदेश पर केंद्र अपना जवाब दे चुका है। पीठ ने कहा कि केंद्र द्वारा दाखिल जवाब को रिकॉर्ड पर आने दें, उसके बाद गुरुवार को हम इसपर सुनवाई करेंगे।
शीर्ष अदालत ने 5 नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह covid-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करे। न्यायालय ने कुश कालरा की अर्जी पर सुनवाई करते हुए केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी किए बिना जवाब मांगा था। पीठ ने कहा था कि जब दिल्ली हाईकोर्ट में शहर की सरकार मरीजों के मकानों पर पोस्टर नहीं लगाने पर राजी हो सकती है तो इस संबंध में केंद्र सरकार पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी क्यों नहीं कर सकती।