विपक्ष में दरार!, क्या कांग्रेस अकेले भेद पाएगी 2024 का किला

Edited By Yaspal,Updated: 30 Jan, 2023 05:19 PM

crack in opposition will congress alone be able to break the fort of 2024

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ही विपक्ष में दरार पड़ चुकी है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के समापन के मौके पर विपक्ष नदारद रहा। कांग्रेस ने 21 बड़े दलों के नेताओं को भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति पर शामिल होने के लिए पत्र लिखा था

नेशनल डेस्कः लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ही विपक्ष में दरार पड़ चुकी है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के समापन के मौके पर विपक्ष नदारद रहा। कांग्रेस ने 21 बड़े दलों के नेताओं को भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति पर शामिल होने के लिए पत्र लिखा था। लेकिन जम्मू-कश्मीर के नेताओं के अलावा किसी भी बड़े दल का नेता मंच पर नहीं पहुंचा। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी, एनसीपी, टीएमसी, बीआरएस, जेडीयू, आरजेडी समेत कई दलों को इस यात्रा में शामिल होने के लिए बुलाया लेकिन न तो इनके नेता वहां पहुंचे और ना ही पार्टी का कोई नुमाइंदा। कांग्रेस के लिए यह एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। दरअसल, कांग्रेस के सामने 2024 में सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष को एकजुट रखना है। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। उधर, केसीआर के मंच पर कई दलों के नेता नजर आए थे।

भारत जोड़ो यात्रा से होगा कांग्रेस को फायदा
करीब 145 दिनों तक चली भारत जोड़ो यात्रा का 30 जनवरी को जम्मू-कश्मीर में तिरंगा फहराने के साथ ही अंत हो गया। इस यात्रा में राहुल गांधी ने करीब 4000 किमी तक पदयात्रा की। पिछले साल सितंबर में कन्याकुमारी से शुरू हुई यात्रा को केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान में जमकर समर्थन मिला। केरल में तो मानो पूरा जनसैलाब यात्रा में उमड़ आया हो। यात्रा की शुरूआत में भीड़ बेकाबू हो रही थी। केरल में कांग्रेस एलडीएफ के साथ विपक्ष में है और तमिलनाडु में डीएमके नीति स्टालिन सरकार में सहयोगी है। दक्षिण में राहुल गांधी ने लोगों के बीच जाकर समस्याएं सुनीं। हालांकि, इस दौरान कुछ विवाद भी सामने आए। जिसपर कांग्रेस को सफाई देनी पड़ी। कर्नाटक के रास्ते दक्षिण से निकलकर महाराष्ट्र में प्रवेश करते हुए मध्य प्रदेश के रास्ते राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और फिर हरियाणा से होते हुए पंजाब की सड़कों से गुजरते हुए जम्मू-कश्मीर पहुंची राहुल गांधी की इस यात्रा में महाराष्ट्र में आदित्य ठाकरे और सुप्रिया सुले यात्रा में शामिल हुईं। दिल्ली में डीएमके सांसद कनिमोझी ने यात्रा का समर्थन किया। राहुल गांधी ने इस यात्रा के जरिए लोगों के दिलों में तो जगह बनाई है लेकिन यह वोट में कितनी तब्दील होती है। यह तो आने वाला चुनाव ही तय करेंगे।

विपक्ष का नहीं मिला साथ
कांग्रेस को इस यात्रा में उम्मीद थी कि विपक्ष के बड़े दल उसके साथ आएंगे। लेकिन उसकी उम्मीदों को झटका तब लगा जब 21 दलों को भेजे गए न्योते में से एक भी दल का नेता शामिल नहीं हुआ। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कोई भी दल राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा मानने को तैयार नहीं है। तेलंगाना के सीएम केसीआर, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, बिहार में नीतीश कुमार अपनी-अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं। इधर, दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी ने घोषणा कर ही है कि 2024 का चुनाव केजरीवाल बनाम नरेंद्र मोदी होगा। यानी कि राहुल गांधी और कांग्रेस अलग-थलग पड़ जाएंगे।

केसीआर की रैली में पहुंचे ये नेता
जबकि, कुछ दिन पहले ही तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव ने एक रैली का आयोजन किया था। इस आयोजन में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और सपा प्रमुख अखिलेश यादव, पंजाब के सीएम भगवंत मान शामिल हुए। आने वाले समय में बताया जा रहा है कि केसीआर की पार्टी बीआरएस और कुछ अन्य दल मिलकर तीसरे फ्रंट की घोषणा कर सकते हैं। इसमें नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और लालू यादव की पार्टी आरजेडी भी शामिल हो सकती है। हालांकि नीतीश कुमार कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की बात को नकार चुके हैं। नीतीश का कहना है कि कोई ऐसा फ्रंट नहीं बनेगा जिसमें कांग्रेस शामिल न हो।

क्षेत्रीय पार्टियां दे सकती हैं भाजपा को टक्कर
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि क्षेत्रीय दल भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में कड़ी टक्कर दे सकते हैं। बशर्ते कांग्रेस उन्हें राज्यों में समर्थन करे तो। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा और बसपा एकसाथ आ जाएं तो भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होंगे क्योंकि कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में जनाधार कम है और समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का अपना-अपना वोट बैंक है। अगर तीनों राजनीतिक पार्टियों के बीच गठबंधन होता है तो भाजपा के लिए मुकाबला कड़ा हो जाएगा। ऐसे ही बिहार में जेडीयू का साथ छूटने से भाजपा कमजोर हुई है और महागठबंधन मजबूत हुआ है। अगर बिहार में सीटों के बंटवारे पर पेंच फंसा तो इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। बिहार में छोटी-बड़ी पार्टियों को मिलाकर भाजपा के खिलाफ एक महागठबंधन बना है और इस महागठबंधन की धुरी आरजेडी है। बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। आरजेडी, जेडीयू, सीपीआई, सीपीआईएम समेत क्षेत्रीय दल भी इन सीटों पर दावेदारी ठोकेंगे। ऐसे में कांग्रेस के सामने यहां भी अपना अस्तित्व बचाने की सबसे बड़ी चुनौती होगी।

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