Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 Jul, 2019 08:02 AM
सूर्य सब ग्रहों का राजा है और उसकी रथ यात्रा एक राशि में संक्रांति के आधार पर एक मास में पूरी कर ली जाती है। सूर्य नारायण सम्पूर्ण बारह राशियों को एक वर्ष में पूरा कर लेते हैं, चंद्रमा है जो सवा दो
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सूर्य सब ग्रहों का राजा है और उसकी रथ यात्रा एक राशि में संक्रांति के आधार पर एक मास में पूरी कर ली जाती है। सूर्य नारायण सम्पूर्ण बारह राशियों को एक वर्ष में पूरा कर लेते हैं, चंद्रमा है जो सवा दो दिन में एक राशि को पूरी करता है, जब सूर्य और चंद्र आमने-सामने होते हैं तो पूर्णिमा तिथि उनके मिलन की प्यास को बढ़ा देती है लेकिन सूर्य चंद्रमा जब एक राशि में प्रवेश कर जाते हैं तो उनका मिलन अंधेरे की अमावस्या को सामने ला देता है और यही अमावस्या मानव मात्र को अनेक पुण्य फल प्रदान करती है।
चंद्रमा इस दिन शून्य डिग्री पर होता है और शास्त्रों में कहा गया है कि चंद्रमा मन के ऊपर प्रभाव डालता है क्योंकि अमावस्या चंद्रमा-सूर्य की मिलन की रात्रि है इसलिए ज्योतिषियों को फलित विवेचना नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसके फल शत-प्रतिशत सही नहीं उतरते, न ही जातक को ज्योतिषी के पास प्रश्र पूछने जाना चाहिए, इससे उसे प्रश्र का लाभ नहीं मिल पाता। सभी तिथि, वार, नक्षत्र, पर्व, त्यौहार की उत्पत्ति ज्योतिष शास्त्र की ही देन है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य की गति चालन से ही विभिन्न योग संयोग बनते हैं इसलिए ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ज्योतिष अधिपतये नम: ज् कहा गया है।
पितृ दोष में अवश्य करें श्राद्ध
ज्योतिषीय दृष्टि से यदि कुंडली में पितृ दोष है तो ये परिणाम देखने को मिलते हैं संतान न होना, धन हानि, गृह क्लेश, दरिद्रता, मुकद्दमे, कन्या का विवाह न होना, घर में हर समय बीमारी, नुक्सान पर नुक्सान, धोखे, दुर्घटनाएं और शुभ कार्यों में विघ्न।
कैसे करें श्राद्ध ?
इसे ब्राह्मण या किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाया जा सकता है। आप स्वयं भी कर सकते हैं।
ये सामग्री ले लें
सर्प-सर्पणी का जोड़ा, चावल, काले तिल, सफेद वस्त्र,11 सुपारी, दूध, जल, तथा माला। पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें। सफेद कपड़े पर सामग्री रखें। 108 बार माला से जाप करें या सुख शांति, समद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की क्षमा याचना सहित पितरों से प्रार्थना करें। जल में तिल डाल कर 7 बार अंजलि दें। शेष सामग्री को पोटली में बांध कर प्रवाहित कर दें। हलवा, खीर, भोजन आदि ब्राह्मण, निर्धन, गाय, कुत्ते, पक्षी को दें।
जिनके पास समय अथवा धन का अभाव है, वे आकाश की ओर मुख करके दोनों हाथों द्वारा आवाहन करके पितृगणों को नमस्कार कर सकते हैं।