"लोकतंत्र के लिए घातक..": सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कानून मंत्री को याद दिलाया 'कर्तव्य'

Edited By Yaspal,Updated: 28 Jan, 2023 06:06 PM

deadly for democracy   former sc judge reminds law minister of  duty

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू के ‘‘आक्षेप'' के लिए उनकी निंदा की

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू के ‘‘आक्षेप'' के लिए उनकी निंदा की और कहा कि कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित न्यायाधीशों के नामों पर फैसला नहीं लेना लोकतंत्र के लिए ‘‘घातक'' है। नरीमन ने कहा कि अगर स्वतंत्र न्यायपालिका का आखिरी स्तंभ गिर जाता है, तो देश रसातल में चला जायेगा और ‘‘एक नए अंधकार युग'' की शुरुआत होगी। उन्होंने शुक्रवार को मुंबई विश्वविद्यालय में सातवें मुख्य न्यायाधीश एम सी छागला स्मृति व्याख्यान में कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्या है जब स्वतंत्र और निडर न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की जा रही है।

शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश ने विशेष पांच-न्यायाधीशों की एक पीठ के गठन का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि एक बार कॉलेजियम द्वारा किसी न्यायाधीश के नाम की सिफारिश करने के बाद सरकार को 30 दिनों के निश्चित समय के भीतर जवाब देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘नामों पर फैसला नहीं लेना लोकतंत्र के लिए घातक है। क्योंकि आप केवल यह कर रहे हैं कि आप एक विशेष कॉलेजियम की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि अगला कॉलेजियम अपना विचार बदलेगा। नियुक्ति एक उचित समय अवधि के भीतर की जानी चाहिए।'' उन्होंने कहा, ‘‘संविधान इसी तरह काम करता है, और यदि आपके पास स्वतंत्र और निडर न्यायाधीश नहीं हैं, तो कुछ नहीं बचा है।

वास्तव में, मेरे अनुसार, यदि लोकतंत्र का यह स्तंभ गिर जाता है, तो हम एक नए अंधकार युग में चले जायेंगे।'' अगस्त 2021 में सेवानिवृत्त होने तक नरीमन उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम का हिस्सा थे। रीजीजू ने न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी कॉलेजियम प्रणाली पर बार-बार सवाल उठाया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल में कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को रद्द करना संसदीय संप्रभुता के साथ एक गंभीर समझौता था।

नरीमन ने कहा, ‘‘हमने इस प्रक्रिया (न्यायाधीशों की नियुक्ति) के खिलाफ केंद्रीय कानून मंत्री की निंदा सुनी है। मैं कानून मंत्री को आश्वस्त करता हूं कि दो बहुत ही बुनियादी संवैधानिक मूलभूत बातें हैं जिन्हें उन्हें जानना चाहिए।'' उन्होंने कहा, ‘‘एक मौलिक बात यह है कि अमेरिका के विपरीत, भारत में कम से कम पांच न्यायाधीशों पर संविधान की व्याख्या के लिए भरोसा किया जाता है। इसलिए, संविधान की व्याख्या करने के लिए इस संविधान पीठ पर भरोसा किया जाता है और एक बार जब वे ऐसा कर लेते हैं, तो एक प्राधिकारी के रूप में यह आपका कर्तव्य है कि आप उस निर्णय का पालन करें।'' उन्होंने कहा, ‘‘आप इसकी आलोचना कर सकते हैं...एक नागरिक के तौर पर मैं इसकी आलोचना कर सकता हूं...कोई समस्या नहीं...लेकिन यह कभी न भूलें कि आप एक प्राधिकारी (अथॉरिटी) हैं और एक प्राधिकारी के तौर पर आप सही या गलत के फैसले से बंधे हैं।''

नरीमन ने बुनियादी संरचना के मुद्दे पर कहा कि इसे 40 साल से अधिक समय पहले दो बार समाप्त करने की कोशिश की गई लेकिन उसके बाद तब से अब तक हालिया घटना को छोड़कर किसी ने भी एक शब्द नहीं कहा। उन्होंने कहा कि भारत ने अमेरिका की तुलना में एक अलग दृष्टिकोण अपनाया जहां न्यायपालिका न्यायाधीशों की नियुक्ति में शामिल नहीं है। उन्होंने कहा कि यहां संवैधानिक सिद्धांत न्यायपालिका की स्वतंत्रता है और यह लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। नरीमन ने कहा, ‘‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्या है अगर स्वतंत्र और निडर न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की जा रही है। भारत के प्रधान न्यायाधीश से बेहतर कौन जानता होगा कि न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए या नहीं।'' उन्होंने कहा कि बाद में यह फैसला किया गया कि प्रधान न्यायाधीश के अलावा वरिष्ठ न्यायाधीशों से भी सलाह ली जाएगी और न्यायपालिका ने नियुक्ति प्रक्रिया को अपने हाथों में ले लिया।

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!