ये ‘पत्थर’ की बस्तियां हैं..जहां रह-रहकर आती है रोने की आवाज...

Edited By Anil dev,Updated: 04 Mar, 2020 10:18 AM

delhi akbari salma constable ratan lal

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में अब तक 49 लोगों की जानें जा चुकी हैं। सैकड़ों लापता हैं। आशंका है कि मौतों की संख्या का आंकड़ा अभी और बढ़ेगा। हालांकि, अब हालात सामान्य हैं, लेकिन दिलों में दशहत इस कदर है कि लोग इस उलझन में हैं कि वे अपने घरों...

नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में अब तक 49 लोगों की जानें जा चुकी हैं। सैकड़ों लापता हैं। आशंका है कि मौतों की संख्या का आंकड़ा अभी और बढ़ेगा। हालांकि, अब हालात सामान्य हैं, लेकिन दिलों में दशहत इस कदर है कि लोग इस उलझन में हैं कि वे अपने घरों के बुझे चिरागों का मातम मनाएं या अपनी सुरक्षा करें। इसी पर ‘नवोदय टाइम्स’ संवाददाता ने अब तक मारे गए करीब 20 लोगों के परिजनों से बात की और ये समझा कि कैसे वे मौत का शिकार हो गए और क्या हुआ था उनके साथ जिसके चलते उनके घरों के चिराग बुझ गए। उनकी आपबीती बता रहे हैं संजीव यादव...

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चाय पीने निकला तो कभी नहीं लौटा मेहताब
शाम 4 बजे मेहताब अक्सर चाय की जिद करता था, दुकान नीचे ही थी, इसलिए उसे कहा गया कि घर में दूध नहीं है, जिस पर मेहताब ने कहा कि वह दूध लेकर आता है, मां अकबरी ने उसे रोकने के लिए नीचे उतरी, लेकिन तब तक वह अपनी गली से बाहर जा चुका था। इसी बीच ब्रजपुरी की गली न. 3 का गेट सुलेमान ने बंद कर दिया, क्योंकि अचानक एक पेट्रोल बम आकर गली में गिरा। मां और बहन सलमा गली का गेट खोलने को पहुंची, लेकिन तब तक उपद्रवी मेहताब को अपनी तरफ खींच चुके थे। उसे सरेआम पीटा जाने लगा और फिर वह भीड़ में गायब हो गया। सुलेमान ने मां और उसकी बहन को गेट से खींच लिया और अपने घर ले गए। सुलेमान ने बताया हमारे साथ कुछ लोगों ने एकजुट होकर उसे बचाने के लिए गेट खोलने की कोशिश की, लेकिन उपद्रवियों की संख्याओं को देख वे डर गए, क्योंकि वे लोग पत्थर के साथ पेट्रोल बम फेंक रहे थे, हाथों में तलवारें थीं। मेहताब का शव उन्हें जली हालत में 29 फरवरी को जीटीबी अस्पताल में मिला। सुलेमान के मुताबिक उसे सीआरपीएफ ने अस्पताल में भर्ती कराया था। 2 मार्च को उसे दफन किया गया है। 
 

 जिंदा जल गई अकबरी अम्मा... 
गामड़ी गांव में ङ्क्षहसा का तांडव तेज हो चुका था, यहां पर अधिकांश घरों में उपद्रवियों ने आग लगा दी थी और सामानों को लूट रहे थे। अकबरी अपने परिवार के साथ घर में ही थीं, चूंकि वे परिवार में सबसे बड़ी थीं, इसलिए दोनों बेटों और बहुओं समेत बच्चों को उन्होंने घर की छत पर भेज दिया। उपद्रवी उनके घर में सिलेंडर बलास्ट कर चुके थे और पेट्रोल बब भी फेंक रहे थे। अकबरी के घर में मजदूर भी काम कर रहे थे, उनसे सिर्फ ये कहा, मैं तो जी ली, अब तुम सब परिवार और अपने को बचाओ। इसी बीच आग ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया और वे उसी घर में जिंदा जल गईं। परिजनों ने पड़ोसियों की मदद से अपनी जान बचाई। मेरठ जिले से आने वाली अकबरी के पति की मौत करीब 40 साल पहले हो गई थी। उन्होंने मजदूरी करके अपने सात बच्चों को पाला था।

दंगा देखने निकले राहुल को लगी सीने में गोली...
भजनपुरा में 25 फरवरी को हालात खराब हो चुके थे, राहुल अपने घर में खाना खा रहे थे जब उन्होंने बाहर गोली चलने और पथराव की आवाजें सुनी। वो उस मंजर को देखने के लिए बाहर निकले ही थे तभी उनके सीने पर दो गोलियां लगीं और वे गश खाकर गिर पड़े। परिजनों ने उन्हें अंदर खींचा और एबूलेंस को फोन किया, जब एबूलेंस नहीं आई तो बाइक पर उन्हें असप्ताल ले गए, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। राहुल सिविल सॢवस की तैयारी कर रहा था। 

डीसीपी के बने ढाल..15 महिलाओं को बचाया
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हेड कांस्टेबल रतन लाल दूसरे व्यक्ति थे, जो दंगों की भेट चढ़ चुके थे। उनके सिर पर तीन पत्थर और शरीर में एक गोली लगी थी। बाबरपुर-मौजपुर चौक पर जिस समय दंगे की शुरुआत हुई, उस दौरान डीसीपी अमित कुमार समेत करीब 30 पुलिसकर्मी दोनों तरफ से घिर चुके थे। डीसीपी के सिर पर भी एक पत्थर लग चुका था और तीन पुलिसकर्मी सड़क पर गिर चुके थे, इसी बीच हेड कांस्टेबल रतन लाल ने अपने शरीर को आगे करते हुए डीसीपी को भीड़ के बीच से निकाला और कार की तरफ ढकेला। इसके बाद वे फिर उसी भीड़ में घुस गए और महिलाओं को निकालने लगे, लेकिन उपद्रवियों ने पकड़ लिया और उन पर पथराव कर दिया, वे लहूलुहान हो गए। बाद में उन्हें एक गोली लगी और उनकी मौत हो गई।  
 

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