नासूर बन सकता है यह अग्निकांड, जिंदा रहे तो बढ़ेगा कैंसर का जोखिम

Edited By Anil dev,Updated: 11 Dec, 2019 12:29 PM

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अनाज मंडी अग्निकांड में घायल और बर्न विभाग में भर्ती 9 पीड़ितों की जिंदगी के लिए 72 घंटे बेहद अहम हैं। चिकित्सकों के मुताबिक सभी के फेफड़ों में धुंआ चला गया है। वहीं कुछ के फेफड़े तो अंदर से जल भी गए हैं।

नई दिल्ली: अनाज मंडी अग्निकांड में घायल और बर्न विभाग में भर्ती 9 पीड़ितों की जिंदगी के लिए 72 घंटे बेहद अहम हैं। चिकित्सकों के मुताबिक सभी के फेफड़ों में धुंआ चला गया है। वहीं कुछ के फेफड़े तो अंदर से जल भी गए हैं। इन्हीं में से एक मरीज 55 प्रतिशत तक झुलस गया है। मरीज की स्थिति नाजुक बनी हुई है। यहां बता दें कि लोकनायक अस्पताल में अग्निकांड पीड़ित करीब 15 मरीज भर्ती हैं, जिनका उपचार किया जा रहा है। 


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गंभीर मगर मरीजों की हालत स्थिर 
चिकित्सक दवाओं के जरिए मरीजों के शरीर से धुएं का प्रभाव खत्म करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। आगे किस प्रकार से इनका उपचार किया जाएगा, यह निर्णय चिकित्सक अगले 72 घंटों के बाद करेंगे। लोकनायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. किशोर सिंह के मुताबिक बर्न विभाग में भर्ती 9 मरीजों की हालत नाजुक है लेकिन उनकी स्थिति स्थिर है। इस तरह के मामले में यह कहना मुश्किल होता है कि मरीज बचेगा या नहीं क्योंकि मरीजों की स्थिति किसी भी वक्त बिगड़ सकती है। 

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चेन स्मोकर की तरह हो चुकी है फेफड़े की स्थिति  
चिकित्सा निदेशक के मुताबिक मरीजों के फेफड़े में धुआं और गैस प्रवेश करने की वजह से अंदर कण जमी हुई है। जिस तरह लंबे समय तक धूम्रपान करने वालों का फेफड़ा काला होकर सिकुडऩे लगता है, ठीक मरीजों के फेफड़ों की भी यही स्थिति है। फेफड़ों में कई तरह के कण और बैक्टीरिया की भी मौजूदगी पाई गई है। बताया गया है कि मरीजों के फेफड़े सिकुडऩे का भी जोखिम बेहद बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में मरीजों को सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है।  72 घंटे इसलिए भी अहम हैं क्योंकि इस दौरान मरीज पर हो रहे उपचार का असर दिखना शुरू हो जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो उसकी जिंदगी खतरे में भी पड़ सकती है। डॉ. किशोर सिंह के मुताबिक इस तरह के मामले में अगर मरीज बच भी जाता है तो आगे चलकर उसे कैंसर से प्रभवित होने का जोखिम काफी बढ़ जाता है। इस तरह की स्थिति पैदा होने में 10-15 वर्ष का समय भी लग सकता है। इस तरह के मरीजों की जिंदगी आगे लंबी होगी, इसे भी पूरे यकीन से कहना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि अगर मरीजों की स्थिति आगे भी कुछ दिनों तक स्थिर रही तो विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी भी दी जा सकती है। 

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दिल्ली सरकार के 500 स्कूलों में आग से बचाव के उपाए नहीं
राजधानी में दिल्ली सरकार के करीब 500 स्कूलों में आग से बचाव के उपाए अभी नहीं किए गए हैं और 600 निजी अस्पताल भी दमकल विभाग की एनओसी के बगैर चल रहे हैं। वहीं, दिल्ली के करीब 10 हजार होटलों में से अधिकांश में फायर सुरक्षा के नाम पर खानापूर्ति की गई है। खास बात यह है कि राजधानी में आग लगने की बड़ी घटनाएं होने के बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों और अस्पताल संचालकों की नींद नहीं टूट रही है। ऐसे में एम्स की तरह ही दिल्ली के दूसरे अस्पतालों में भी आग लगी तो बुझाना मुश्किल हो जाएगा।

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ये अस्पताल नहीं हैं सुरक्षित...
दिल्ली फायर विभाग के अनुसार लोक नायक अस्पताल, जीबी पंत अस्पताल, रोहिणी स्थित बाबा साहब आंबेडकर अस्पताल और मोती बाग के डॉ. बीआर सुर होम्योपैथी अस्पताल आग से पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। इनकी इमारत के निर्माण में खामी और अन्य कई कारणों से इन अस्पतालों को दमकल विभाग ने अभी तक अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं दिया है। लोक नायक और जीबी पंत अस्पताल में दमकल की गाडिय़ों के पहुंचने के लिए रास्ता भी नहीं है। हालांकि आग से बचाव के लिए वहां अग्निशमन यंत्र जरूर लगाए गए हैं। यही हालत डॉ. बीआर सुर होम्योपैथी अस्पताल की भी है, जबकि बाबा साहब आंबेडकर अस्पताल में भवन के सभी खंडो में अलग-अलग अग्निरोधक व्यवस्था (कंपार्टमेंटेशन) नहीं कराया गया है। 

 

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