दिल्ली अग्नि कांड: काश...आवाज लगने पर मानी होती मेरी बात

Edited By Anil dev,Updated: 10 Dec, 2019 10:38 AM

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सौ मीटर की दूरी पर एक बड़ा गेट और उस पर टकटकी लगाए सैंकड़ों परिजन। कभी वो जोर-जोर से रोने लगते, तो कभी उनकी पथराई आंखें लगातार गेट की ओर आशा से निहारतीं कि शायद अंदर से अभी उनके बेटे या भाई का शव बाहर आएगा।

नई दिल्ली: सौ मीटर की दूरी पर एक बड़ा गेट और उस पर टकटकी लगाए सैंकड़ों परिजन। कभी वो जोर-जोर से रोने लगते, तो कभी उनकी पथराई आंखें लगातार गेट की ओर आशा से निहारतीं कि शायद अंदर से अभी उनके बेटे या भाई का शव बाहर आएगा। यह नजारा मौलाना आजाद शवगृह का था, जहां सदर बाजार अग्निकांड के मृतकों के शव रखे गए थे। जैसे ही एंबुलेंस निकलती थी तो अपने परिजनों के शवों को लेने आए लोगों को लगता था कि अगला नंबर शायद उनका ही होगा। बार-बार गेट की तरफ जाकर वो पुलिसवालों से पूछते कि कितने लोगों के शवों को यहां से एंबुलेंस से निकाला जा चुका है या फिर भइया यह बता दो कि हमारे भाई का शव कब मिलेगा। वहीं इन सबके बीच पुलिस-प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रही। जहां वे एक ओर परिजनों से संपर्क करने का प्रयास करते दिखे तो वहीं लोगों की मदद के साथ ही ढाढस बढ़ाते भी दिखाई दिए। 


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मालूम हो कि सदर बाजार अग्निकांड में मारे गए 34 लोगों के शवों को लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल लाया गया था, जहां से फिर उन्हें मौलाना आजाद शवगृह पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। जिन मृतकों के रिश्तेदार दिल्ली या फिर राजधानी के नजदीकी शहरों में रहते थे वो देर रात और तड़के सुबह ही शवगृह के सामने जुटने लगे थे। धीरे-धीरे सुबह करीब 10 बजे तक वहां लोगों की संख्या बढऩे लगी। पुलिस द्वारा परिजनों को फॉर्म बांटे जाने लगे ताकि वो अपने मृतक की डिटेल भरकर दे सकें। जिससे आगे की कार्रवाई पूरी की जा सके। अपने बच्चों के शवों को लेने आए बुजुर्गों की संख्या भी काफी थी। जैसे ही दोपहर करीब 1 बजे के बाद परिजनों को मृतकों के शवों को सौंपा जाने लगा तो घंटों चुपचाप बैठे लोगों की उत्सुकता जग गई। वो बार-बार गेट पर खड़े गार्ड से पूछते कि अब अगली बारी किसकी है। देर शाम ठंड बढ़ती गई, लेकिन अपनों के शवों को लेने के लिए लोग इंतजार करते रहे। 


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 काश...आवाज लगने पर मानी होती मेरी बात
मोहम्मद वाजिद शवगृह के सामने खड़े होकर अपने भाई के लिए फूट-फूटकर रो रहा था। उसने आग के जिस मंजर को आंखों से देखा था वो उसे भूल नहीं पा रहा था। वो बार-बार कह रहा था कि काश मेरे भाई मोहम्मद वजीर व मोहम्मद साजिद मेरी बात सुनकर खिड़की से कूद गए होते तो वो भी आज जिंदा होते। मेरे लाख कहने के बाद भी उन्होंने मेरी बात को मजाक में लिया और मुंह पर चद्दर डालकर सो गए। अब मैं घरवालों को क्या जवाब दूंगा।


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बेटे की बात हो गई सच
बाप की गरीबी और मां की 4 महीनें पहले हुई दुर्घटना में मौत ने 19 वर्षीय मोहम्मद हुसैन को दिल्ली आने के लिए मजबूर कर दिया था। उनके पिता ने बताया कि दो महीनों से मुझसे बात भी नहीं की थी। शनिवार रात बहन से फोन पर बात करते हुए कहा था कि काश मैं अपनी अम्मी के पास चला जाता और देखिए वो अम्मी के पास चला गया। 

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पुलिसकर्मी फॉर्म भरने के लिए लगाते रहे आवाजें
मौलाना आजाद शवगृह में कुल 34 मृतकों को पोस्टमार्टम के लिए लाया गया था। शवों को रिश्तेदारों के सुपुर्द करने के लिए एक फॉर्म भरवाया जा रहा था, जिसके बाद ही उन्हें शव दिए जा रहे थे, लेकिन सोमवार को शाम 5 बजे तक सिर्फ 17 फॉर्म को ही भरा गया था। इस दौरान किसी भी परिजन को शव लेने में परेशानी न हो व कानूनी प्रक्रिया पूरी हो जाए, इसके लिए पुलिसकर्मियों द्वारा लगातार फॉर्म भरने के लिए आवाजें लगाई जा रही थीं। 

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मेरी बहन की जिंदगी बर्बाद हो गई...
हमरे जीजा तो अब नहीं रहे...उनके पीछे 4 बच्चे हैं। इस आग में उनके भाई भी खत्म हो गए हैं। मेरी बहन की जिंदगी बर्बाद हो गई है। अब कहीं मुआवजे की राशि जो उनके जीने का सहारा है वो भी न छीन जाए, इसीलिए अपने जीजा के शव को लेने आए हैं। सब लोग बता रहे हैं कि जिसका फॉर्म पर साइन होगा उसी को मुआवजे का पैसा दिया जाएगा, कहीं मेरे बहन के साथ धोखा न हो जाए इसी का डर हमें लग रहा है। हम चाहते हैं कि जीजा के शव को हमहीं लेकर अररिया बिहार जाएं। अररिया से आए शोएब सिद्दिकी ने बताया कि उनके जीजा मोहम्मद अय्यूब व उनके छोटे भाई मोहम्मद सैजाद की मौत अग्निकांड के दौरान हो चुकी है। जहां उन्हें घर तक शव ले जाने का डर सता रहा था, वहीं सबसे बड़ा डर उनके मन में मुआवजे की राशि को लेकर था कि वो उनकी बहन को मिलेगी या नहीं। शोएब ने बताया कि अभी तक अय्यूब के परिवार से कोई नहीं आया है, इसलिए मैं लगातार गुहार लगा रहा हूं कि शव मुझे दे दिया जाए, लेकिन यहां कहा जा रहा है कि सिर्फ ब्लड रिलेशन वाले को ही शव सौंपा जाएगा। अब जीजा तो चल बसे, लेकिन मुआवजा ही परिवार के जीने का सहारा है इसलिए मैं चाहता हूं कि वो मेरी बहन को ही मिले। उन्होंने बताया कि अय्यूब के चार बच्चे हैं दो लड़का व दो लड़की और सभी बच्चे 10 साल से छोटे हैं। 

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एंबुलेंस देखते ही मच जाती है भगदड़
नई दिल्ली, 9 दिसम्बर (अनामिका सिंह/चांदनी कुमारी) : सौ मीटर की दूरी पर एक बड़ा गेट और उस पर टकटकी लगाए सैंकड़ों परिजन। कभी वो जोर-जोर से रोने लगते, तो कभी उनकी पथराई आंखें लगातार गेट की ओर आशा से निहारतीं कि शायद अंदर से अभी उनके बेटे या भाई का शव बाहर आएगा। यह नजारा मौलाना आजाद शवगृह का था, जहां सदर बाजार अग्निकांड के मृतकों के शव रखे गए थे। जैसे ही एंबुलेंस निकलती थी तो अपने परिजनों के शवों को लेने आए लोगों को लगता था कि अगला नंबर शायद उनका ही होगा। बार-बार गेट की तरफ जाकर वो पुलिसवालों से पूछते कि कितने लोगों के शवों को यहां से एंबुलेंस से निकाला जा चुका है या फिर भइया यह बता दो कि हमारे भाई का शव कब मिलेगा। वहीं इन सबके बीच पुलिस-प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रही। जहां वे एक ओर परिजनों से संपर्क करने का प्रयास करते दिखे तो वहीं लोगों की मदद के साथ ही ढाढस बढ़ाते भी दिखाई दिए। 

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मालूम हो कि सदर बाजार अग्निकांड में मारे गए 34 लोगों के शवों को लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल लाया गया था, जहां से फिर उन्हें मौलाना आजाद शवगृह पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। जिन मृतकों के रिश्तेदार दिल्ली या फिर राजधानी के नजदीकी शहरों में रहते थे वो देर रात और तड़के सुबह ही शवगृह के सामने जुटने लगे थे। धीरे-धीरे सुबह करीब 10 बजे तक वहां लोगों की संख्या बढऩे लगी। पुलिस द्वारा परिजनों को फॉर्म बांटे जाने लगे ताकि वो अपने मृतक की डिटेल भरकर दे सकें। जिससे आगे की कार्रवाई पूरी की जा सके। अपने बच्चों के शवों को लेने आए बुजुर्गों की संख्या भी काफी थी। जैसे ही दोपहर करीब 1 बजे के बाद परिजनों को मृतकों के शवों को सौंपा जाने लगा तो घंटों चुपचाप बैठे लोगों की उत्सुकता जग गई। वो बार-बार गेट पर खड़े गार्ड से पूछते कि अब अगली बारी किसकी है। देर शाम ठंड बढ़ती गई, लेकिन अपनों के शवों को लेने के लिए लोग इंतजार करते रहे। 

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