केजरीवाल सरकार को दिल्ली HC की फटकार, गर्भवती महिलाओं की कोविड-19 जांच को लेकर मांगा जवाब

Edited By vasudha,Updated: 09 Jul, 2020 04:49 PM

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प्रसव या जरूरी इलाज के लिए अस्पताल जाने वाली हर गर्भवती महिला को कोविड-19 की जांच कराने की जरूरत है या नहीं, इस बारे पर स्थिति स्पष्ट नहीं होने पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने वीरवार को आप सरकार की खिंचाई की। अदालत ने कहा कि एक सही मुद्दे को नौकरशाही के...

नेशनलन डेस्क: प्रसव या जरूरी इलाज के लिए अस्पताल जाने वाली हर गर्भवती महिला को कोविड-19 की जांच कराने की जरूरत है या नहीं, इस बारे पर स्थिति स्पष्ट नहीं होने पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने वीरवार को आप सरकार की खिंचाई की। अदालत ने कहा कि एक सही मुद्दे को नौकरशाही के जाल में उलझा दिया गया है। उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर जांच जरूरी है तो कम से कम समय में नमूना लेकर नतीजा बताना चाहिए। 

 

दिल्ली सरकार को दिए कई अवसर: अदालत
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने कहा कि जनहित याचिका दायर होने के बाद से दिल्ली सरकार को गर्भवती महिलाओं की तेजी से जांच करने और नतीजे देने के लिए चार-पांच मौके दिए गए लेकिन इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं की गयी। पीठ ने कहा कि एक जरूरी मानवीय समस्या को नौकरशाही में उलझा दिया गया। यह पूरी तरह से अक्षम्य है। स्पष्टता के लिए हमें कितना इंतजार करना होगा। याचिका दायर होने के बाद से मुद्दे के समाधान के लिए चार-पांच अवसर दिए गए।

 

गर्भवती महिला नहीं कर सकती 48 घंटे तक इंतजार 
अदालत ने कहा कि लगता है कि संबंधित अधिकारी ‘भ्रमित' हैं और यह नहीं समझ पा रहे कि गर्भवती महिला प्रसव के 48 घंटे पहले अस्पताल नहीं जाती। अदालत ने कहा कि जब एक गर्भवती महिला प्रसव या सर्जरी के लिए जाती है, तो वह नतीजे के लिए 48 घंटे तक इंतजार नहीं कर सकती। कई बार अंतिम समय में अस्पताल जाना पड़ता है। आपके (दिल्ली सरकार) सचिवों को यह समझना चाहिए कि गर्भवती महिला प्रसव के 48 घंटे पहले अस्पताल नहीं जाती। पीठ ने कहा कि आपकी स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक नतीजा आने तक उन्हें परिवार के किसी सदस्यों के बिना अलग-थलग रखा जाएगा। हम किस समाज में रह रहे हैं।

 

अदालत ने उठाए कई सवाल 
अदालत ने दिल्ली सरकार के पांच जुलाई के आदेश के आलोक में यह टिप्पणी की, जिसमें अस्पतालों को ज्यादा जोखिम वाले मरीजों की जांच करने और तुरंत इसकी रिपोर्ट देने को कहा गया था। अदालत ने कहा कि पांच जुलाई के आदेश के मुताबिक सरकार ने कहा है कि उम्रदराज लोग और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे ज्यादा जोखिम वाले लोगों के गैर कोविड उपचार के लिए अस्पताल पहुंचने पर भर्ती से पहले उनकी रैपिड एंटीजन जांच होगी। इस आदेश में गर्भवती महिला की श्रेणी को शामिल नहीं किया गया लेकिन दिल्ली सरकार की स्थिति रिपोर्ट में कहा गया कि उनको भी शामिल किया गया है। पीठ ने इसका उल्लेख किया और कहा कि दोनों में अंतर है। संक्रमण के बिना लक्षण वाली किसी गर्भवती महिला की एंटीजन जांच वाले पहलू पर भी अदालत ने सवाल किया। 

 

दिल्ली सरकार को दिए जल्द कदम उठानेे के निर्देश
पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार के पूर्व के परामर्श में कहा गया था कि सभी गर्भवती महिलाओं को भर्ती से पहले जांच करानी पड़ेगी। जबकि, अदालत में सरकार ने कहा कि बिना लक्षण वाली गर्भवती महिलाओं के लिए भर्ती से पहले जांच कराने की बाध्यता नहीं है। अदालत ने दिल्ली सरकार को विसंगतियों को दूर करने का निर्देश दिया। अस्पताल में भर्ती होने से पहले बिना लक्षण वाली गर्भवती महिलाओं को जांच कराने की जरूरत है या नहीं, इस पर स्थिति स्पष्ट करने को भी कहा गया। अगर जरूरत है तो दिल्ली सरकार यह सुनश्चित करेगी कि कम से कम समय में नमूना लेकर नतीजे दिए जाएं। इन टिप्पणियों और निर्देशों के साथ अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 15 जुलाई की तारीख निर्धारित की है। पीठ ने कहा था कि कोविड-19 की जांच के लिए गर्भवती महिला के अनुरोध पर तुरंत कदम उठाया जाए और जल्द नतीजे दिए जाएं। 

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