दिल्ली: शख्स के आखिरी शब्द, चाचा आग लग गई है, मैं मरना नहीं चाहता, बचा लो

Edited By Anil dev,Updated: 09 Dec, 2019 11:09 AM

delhi mohammad khalid factory flyover

जैसे ही हादसे की सूचना चपेट में आए लोगों के परिजनों व जानकारों को पता चली। वे सभी अपनों का हालचाल जानने के लिए लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल व अन्य अस्पताल पहुंचे। आखों में आंसू थे और चेहरे पर एक डर था। अस्पताल में खुद को वे अकेला महसूस कर रहे थे।

वेस्ट दिल्ली: जैसे ही हादसे की सूचना चपेट में आए लोगों के परिजनों व जानकारों को पता चली। वे सभी अपनों का हालचाल जानने के लिए लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल व अन्य अस्पताल पहुंचे। आखों में आंसू थे और चेहरे पर एक डर था। अस्पताल में खुद को वे अकेला महसूस कर रहे थे। कोई उनको यह बताने वाला नहीं था कि उनका अपना जिंदा भी है या फिर मर गया है। उन्हें अपनों के भी फोन आ रहे थे। जिनको वह यह बताने की हिम्मत नहीं कर रहे थे कि उनका अपना जिंदा भी है या नहीं।

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चाचा आग लग गई है, मैं मरना नहीं चाहता, बचा लो 
वेल्कम एरिया में रहने वाले मोहम्मद इल्यास ने बताया कि उसका भतीजा मुशर्रफ (26) बिजनौर का रहने वाला था। वह परिवार में इकलौता बेटा था। जिसपर अपने परिवार का पालन पोषण करने की जिम्मेदारी थी। वह फिलिमिस्तान इलाके में स्थित फैक्टरी में प्लास्टिक से बनने वाले सामान की पैकिंग किया करता था। रविवार सुबह सुबह करीब 5 बजकर 10 मिनट पर मुशर्रफ ने उनको फोन कर बताया कि फैक्ट्री में भीषण आग लग गई है। वह काफी ज्यादा घबराया हुआ था। वह रोते-रोते बोल रहा था कि चारों तरफ धुआं ही धुआं है। चाचा मुझे बचा लो मैं मरना नहीं चाहता हूं। जब उसको कहा कि बेटा तुम खिड़की या फिर छत पर जाकर नीचे कूद जाओ। उससे जान बच जाएगी। मुशर्रफ ने कहा कि नीचे काफी बिजली के तार हैं और वह काफी ऊंचाई पर है। मुझे काफी डर लग रहा है। बस आकर किसी तरह से मुझे बचा लो चाचा। उसके बाद अचानक फोन बंद हो गया। कई बार फोन पर संपर्क करने की कोशिश की थी, लेकिन फोन नहीं मिला। जब वह लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल आए। यहां पर डॉक्टर ने उनकी बात सूनकर कुछ मृतकों के फोटो दिखाए थे। जिसमें एक फोटो मुर्शरफ का था, जो नहीं के बराबर जला हुआ था। उसकी दम घुटने से मौत हुई थी।

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साला-ससुर जिंदा हैं या मर गए, कोई तो बता दे
खानपुर के रहने वाले ताज अहमद ने बताया कि हादसे की चपेट में उनके ससुर जसिमुद्दिन और साला फैजल आए हैं। दोनों फैक्ट्री में करीब दस साल से काम कर रहे हैं। फैक्ट्री में जैकेट बना करती है। कुछ समय पहले ही उन्होंने उसे भी जैकेट जन्म दिन पर गिफ्ट की थी। रविवार सुबह वह परिवार के साथ घर पर था। सुबह छह बजे बिहार के सहरसा जिला में रहने वाले रिश्तेदार ने फोन पर हादसे के बारे में बताया। टीवी खोलकर देखा तो हादसे की जानकारी मिली। दोनों के मोबाइल फोन पर उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई। दोनों से संपर्क नहीं हो पाया। जब वह फैक्ट्री जाकर लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल आया। यहां पर उसको दोनों के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। डॉक्टरों और पुलिस वालों ने उसकी कोई सहायता नहीं की। उसे नहीं पता दोनों जिंदा हंै या फिर मर गए हैं। जसिमुद्दीन हर रविवार को घर पर आया करते थे। पिछले हफ्ते भी उन्होंने फोन कर अपनी बेटी को बताया था कि 15 दिसम्बर को फैक्ट्री बंद हो जाएगी। वह मालिक जुबैर से हिसाब कर घर आ जाएगा। फैक्ट्री जून महीने में खुलेगी। हादसे के बारे में जब उसने जुबैर को सुबह  फोन कर मामले की जानकारी लेने की कोशिश की। जुबैर ने पहले बताया कि सब ठीक है, लेकिन बाद में उसने फोन स्वीच ऑफ कर लिया। 



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आग लग गई है हमको बचा लो...
हादसे की चपेट में आए इमरान और उसके छोटे भाई इकराम मूलरूप से मुरादाबाद के रहने वाले हैं। इमरान के 3 जबकि इकराम के 2 बच्चे हैं ये 5 भाई हैं दोनों ने करीब 15 साल पहले किराए पर फैक्ट्री ली थी। जिसके यहां पर दो दर्जन से ज्यादा लड़के काम करते हैं। फैक्ट्री में लैपटॉप का बैग आदी बनाने का काम होता था। रिश्तेदार शरफराज ने बताया कि सुबह छह बजे इमरान ने फोन किया था। वह डरा हुआ और रो रहा था। उसने बताया कि फैक्ट्री में आग लग गई है। मुझे बचा लो, मैं मरना नहीं चाहता हँू। यहां सब खत्म होता जा रहा है, मेरे बच्चों को संभाल लेना। शरफराज ने बताया कि मैंने उसको बोला था कि शांत होकर बाहर निकलने का रास्ता देखो। इस पर उसने कहा था कि यहां पर धुआं भरा हुआ है, दम घुट रहा है। उसके बाद अचानक फोन बंद हो गया। जब वह फैक्ट्री पहुंचे। बताया गया कि पांच को अस्पताल में सभी को भर्ती कराया गया है। एलएनजेपी अस्पताल आए तो यहां पर किसी ने उनकी दोनों को तलाशने में सहायता नहीं की। जबकि मुरादाबाद घर  से दोनों के बारे में जानने के लिए फोन आ रहे हैं। जिनको वह असलियत नहीं बता पा रहे हैं।  

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अपनी बीवी से चीखकर बोला....बचूंगा नहीं
‘मैं नहीं बचूंगा...कुछ भी करके मुझे बचालो’ यह दर्दनाक चीख एक पति की है जिसने आग से उठने वाला धुआं देखते ही घबराकर अपनी बीवी को फोन किया था। वो लगातार अपनी बीवी से बचाने की गुहार लगाता रहा। उसने बताया कि तेजी से आग तीसरी मंजिल से चौथी मंजिल तक पहुंच चुकी है और मेरी बचने की संभावना लगभग न के बराबर है। यह बताते हुए सिसक-सिसक कर जाकिर हुसैन रोने लगा। उसने बताया कि आग लगने का पता जैसे ही उसके बड़े भाई शाकिर हुसैन को लगा तो उसने अपनी बीवी को फोन कर घटना की जानकारी दी थी। भाई जाकिर परेशान था और अपने भाई के हालात जानने की कोशिश कर रहा था लेकिन खबर लिखे जाने तक उसे अपने भाई शाकिर की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई थी। 

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मधुबनी, बिहार के मलमल गांव का रहने वाले शाकिर हुसैन पिछले चार सालों से सदर बाजार में काम कर रहा था। उसके परिवार में गर्भवती बीवी, 3 बच्चों, मां-बाप सहित आठ भाई-बहन हैं। परिवार की आमदनी का मुख्य स्रोत शाकिर ही भेजा करता था। जाकिर का भाई शाकिर अकसर उसे बताता था कि जिस फैक्ट्री में वो काम करता है वहीं 10 मजदूरों के सोने की भी व्यवस्था की गई थी। जहां वो लोग टोपी बनाने का काम करते थे। रोते हुए जाकिर ने बताया कि भाई ने जब अपनी गर्भवती पत्नी को फोन पर घटना की जानकारी दी तो हमने उनसे पूछा कि भाई क्या कह रहे थे। बात बताते-बताते जहां भाभी बेहोश हो गई, वहीं बात सुनते ही मां भी सदमे से बेहोशी की हालत में पड़ी हुई है। उन्हें इस  घटना की जानकारी गांव से फोन पर छोटे भाई ने दी।

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मेरे चार भाइयों को खा गई आग...
पानीपत से आया हूं, सुबह से अपने भाइयों को (इमरान, रिजवान, इकराम, जिशान) इधर-उधर ढूंढ रहा हूं। मेरे चार भाई यहां लेडीज बैग बनाने का काम करते थे, जिन्हें आग खा गई है। हमारा तो पूरा परिवार उजड़ गया, न जाने किसकी बद्दूआ परिवार को लग गई है। यह बोलते-बोलते सलमान के आंखों से आसूंओं की धारा बहने लगी। 
 

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शवों को है अपनों के पहचानने का इंतजार
एलएनजेपी अस्पताल में 34 युवकों के शवों को लाया गया। जहां आधा दर्जन से ज्यादा युवकों का उपचार चल रहा है। यहां पर शवों को कुछ ही परिजनों ने आकर पहचाना। दो दर्जन से ज्यादा लोगों की दम घुटने से मौत हुई है। सभी शवों के चेहरे देखकर पहचान की जा सकती है। शाम तक कुछ ही लोग याहां आए, जिन्होंने अपनों को पहचाना था। 


तीन भतीजों को ढूंढ़ता रहा परिवार 
पीड़ित परिवार के एक सदस्य ने बताया कि उसके तीन भतीजे नहीं मिल रहे हैं। वह फैक्ट्री पहुंचे और अपनों को ढूंढ रहे थे। जब फैक्ट्री में काम करने वाले नहीं दिखाई दिए तो उन्होंने रोना शुरू कर दिया। उनके तीन भतीजे यहां काम करते थे लेकिन उनकी कोई खबर नहीं है। 

 

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