डेथ सर्किट: आंखों में आंसू...जेब खाली...बेटे का शव ले जाएं तो कैसे?

Edited By Anil dev,Updated: 10 Dec, 2019 11:03 AM

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रानी झांसी रोड पर जान गंवाने वाले मजदूरों के परिवार और रिश्तेदारों का सोमवार सुबह होते ही एनएनजेपी अस्पताल की मोर्चरी के बाहर तांता लगने लगा। नम आंखें बता रही थीं कि परिजन कितने बेबस और व्याकुल हैं। लेकिन यहां पर भी उन्हें अपनों के शवों को ले जाने...

नई दिल्ली: रानी झांसी रोड पर जान गंवाने वाले मजदूरों के परिवार और रिश्तेदारों का सोमवार सुबह होते ही एनएनजेपी अस्पताल की मोर्चरी के बाहर तांता लगने लगा। नम आंखें बता रही थीं कि परिजन कितने बेबस और व्याकुल हैं। लेकिन यहां पर भी उन्हें अपनों के शवों को ले जाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। वह प्रदर्शन कर सरकार से मांग कर रहे थे कि शवों को एंबुलेंस के जरिए भेजा जाए। अगर ट्रेन से भेजा गया तो उनको शक है कि शवों को स्टेशन पर रखकर कहा जाएगा कि शवों को अपनी जिम्मेदारी और अपने वाहनों से ले जाओ। कोई भी परिवार ऐसा नहीं है, जो शवों को अपने किराए के वाहनों से घर ले जा सके। 

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पिता का भी चेहरा नहीं देखा था...
बिहार के समस्तीपुर निवासी मोहम्मद साजिद भी इस अग्निकांड में भेट चढ़ गया। परिवार में पत्नी व तीन बच्चे हैं। इसके रिश्तेदार वाजिद अली ने बताया कि अभी जल्द ही गांव से लौटा था और 6 महीने से इस फैक्ट्री में काम कर रहा था। वह परिवार का इकलौता कमाने वाला था। इसके परिवार में पत्नी शहनाज परवीन, दो बेटियां हैं। उसके रिश्तेदार ने बताया कि अभी तीन महीने पहले बेटी गुलनाज पैदा हुई थी जिसने अपने पिता का चेहरा भी नहीं देखा था। उसी गांव के रहने वाले मोहम्मद वाजिद (17) भी हादसे का शिकार हो गया। उसके परिवार में माता-पिता हैं। चार महीने पहले ही गांव से लौटा था। घर की आर्थिक स्थित खराब होने की वजह से कम उम्र में ही रोजगार की तलाश में दिल्ली चला आया। नौकरी मिलने पर परिजन खुश थे लेकिन कहां पता था कि जो बेटा दिल्ली कमाने गया है, दूसरों की लापरवाहीे की वजह से मौत के मुंह में चला जाएगा।

 

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तू आ जा यहां नौकरी की बात कर ली है...
हरीपुर बिहार, मुरादाबाद, मध्यपुरा, बुध नगड़ा बिहार के रहने वाले ऐसे कई युवक एलएनजेपी अस्पताल की मोर्चरी पर खड़े थे। जिनका कहना था कि हादसे में मारे गए उनके अपने दोस्त व रिश्तेदारों को उन्होंने खुद ही फोन कर दिल्ली बुलाया था। उनको कहा था कि घर की आर्थिक तंगी को दूर करना है, तो वह चिंता नहीं करें। उन्होंने अपने मालिकों से बात कर ली है। फैक्ट्री में ही रहना है और महीने के आठ से दस हजार रुपए मिल जाएंगे। खाने-पीने की भी कोई दिक्कत नहीं होगी। हमारे भरोसे पर ही परिवार वालों ने उनको यहां पर भेजा था। उनको और हमको भी नहीं पता था कि जिनको वह फैक्ट्री में काम पर लगवा रहे हैं। वह कुछ महीने बाद साथ नहीं होंगे। अब उनको भी लग रहा है कि जब वह अपने गांव जाएंगे तो उनके परिवार वालों को क्या जवाब देगें, उनसे किस तरह से चेहरा मिला पाएंगे।


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पिता के शव को देखने नानी के साथ आया
इस हादसे में किसी बुजुर्ग ने अपना बेटा तो किसी ने अपने पिता को खोया। ऐसा ही एक अनाथ मुरादाबाद निवासी अली अहमद (12) पिता के अंतिम दर्शन के लिए अपनी नानी के साथ बेबस नजर आया। वह अपनी नानी की गोद से चिपटा हुआ एक कोने में बैठा था। अपने पिता के शव के पोस्टमार्टम होने का इंतजार कर रहा था।  उसने बताया कि पिता उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे। अब उसका एक मात्र ध्येय इंजीनियर बन अपने पिता का सपना साकार करना है। इसलिए वो काफी मेहनत किया करते थे। पिता ने कहा था कि तू बस पढ़ और बड़ा आदमी बनकर परिवार का नाम रोशन करना। 


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 इनूल और अब्बास थे ससुर दामाद
इस हादसे में जान गंवाने वाले 60 साल के इनूूल बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले थे। वह अपने दामाद अब्बास (33 वर्ष) के साथ मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। लेकिन उन्हें कहां पता था रविवार की रात उनके लिए वो आखिरी होगी। परिजनों ने बताया कि इनूल की पांच बेटियां हैं। 15 दिन पहले अपनी छोटी बेटी से मिलने पर कहा था कि अब शरीर जबाव देने लगा है, मजदूरी नहीं हो पाती परंतु दामाद के सहयोग से वह काम कर पा रहे थे, लेकिन इस हादसे में दामाद और ससुर ने आखिरी सांस एक साथ ली।

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अपने आएंगे तो होगा पोस्टमार्टम
मृतकों के जानकार व रिश्तेदारों ने बताया कि मरने वाले उनके जानकार थे। साथ ही काम किया करते थे, लेकिन अब शवों का पोस्टमार्टम करने के लिए डॉक्टर उनके अपने परिजनों के बारे में पूछ रहे हैं। उनके आने के बाद ही पोस्टमार्टम होगा। अब उनको लगता है कि काफी ऐसे परिवार वाले हैं, जिनको दिल्ली आने में तीन दिन भी लग सकते हैं। रविवार को हादसे के बारे में परिवार वालों को पता तो उन्होंने दिल्ली में जानकारों को अपनों की खबर लेने के लिए फैक्टरी भेजा था। वे भी रविवार देर रात तक धक्के खाते रहे। उनको कुछ पता नहीं चला कि उनका अपना जिंदा है या मर गया है। सोमवार को डॉक्टरों से मिलने के बाद काफी शवों और घायलों की पहचान हो पाई है, लेकिन अभी भी काफी शव ऐसे हैं जिनकी पहचान होना बाकी है। 
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एक एंबुलेंस में दो से तीन शवों को भेजने की कोशिश
 मृतकों के कुछ रिश्तेदारों और जानकारों ने बताया कि अधिकारी यहां से किसी भी तरह से शवों के पोस्टमार्टम कराने के बाद उनको भेजना चाहते हैं। इसलिए वह जले हुए शवों को एक के ऊपर एक रखकर बिहार व अन्य जगह पर भेज रहे हैं। मृतकों के परिजन भी मजबूर हैं, क्योंकि उनके पास शवों को घर ले जाने के लिए पैसे तक नहीं हैं। उनका कहना है कि झुलसे हुए शवों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाएगा तो शव तीन दिन में रास्ते के बीच चिपक भी जाएंगे। यहीं नहीं एक शव को बॉक्स में जबकि दूसरे शव को बॉक्स के ऊपर ऐसे ही रख दिया गया है। जिससे शव के गिरने का चांस हमेशा बना रहेगा। अधिकारी शवों को भेजने में मजाक सा कर रहे हैं।

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डेढ़ महीने की बच्ची को देखना चाहता था अफसाद...
बिहार के गांव नोहाटा का रहने वाला अफसाद पिछले डेढ़ महीने से काफी खुश था। उसके बेटी पैदा हुई थी। दोस्त नौशाद ने बताया कि पिछले ही हफ्ते अफसाद ने बताया था कि ट्रैन का टिकट हो गया है, सोमवार की शाम को ट्रेन से गांव चला जाएगा। दिल्ली से उसके घर तक का रास्ता 1230 किलोमीटर का है। अगर ट्रेन से जाता है तो तीन दिन और उसके शवों को एंबुलेंस से ले जाया जाता है तो 18 घंटे में पहुंचा जा सकता है।  

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उधार लेकर दिल्ली आने की कोशिश 
बिहार के शोएब, मुरादाबाद के रहमत और तबरेज खान ने बताया कि हादसे में जिनकी मौत हुई है। वह उनके जानकार थे, लेकिन उनके परिवार वालों के आने के बाद ही पोस्टमार्टम के बाद सौंपा जाएगा। इससे लगता है कि परिवार वालों को आने में दो दिन और भी लग सकते हैं। बिहार हरीपुर, समस्तीपुर आदी के रहने वाले परिवार कुछ ऐसे हैं, जिनके पास दिल्ली आने के लिए पैसे तक नहीं हैं। अब वह किसी से ब्याज या उधार पर पैसे लेकर दिल्ली आने की कोशिश कर रहे हैं। उनको यही चिंता है कि उनके आने के बाद उनके अपनों के शवों को घर तक ले जाने के लिए एंबुलेंस की सुविधा मिल जाए। 

कैसे ले जाएंगे दो भाइयों के शवों को
मोहम्मद तरबेज ने बताया कि उसके दो जानकार मो. याकूब और मा.े जाहिर की हादसे में मौत हो चुकी है। जबकि भांजा गंभीर रूप से झुलस गया है। तीनों मधेपुरा बिहार के रहने वाले हैं। करीब छह महीने पहले ही तीनों किसी जानकार के कहने पर दिल्ली कमाने के लिए आए थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है। उसे खुद समझ नहीं आ रहा है कि उनके परिवार वाले किस तरह से दिल्ली आ पाएंगे। डॉक्टर और पुलिस वालों को मामले की जानकारी दी है, लेकिन उन्होंने भी कानूनी बातें बताकर अपनी मजबूरी बताई है। वह कोशिश कर रहा है कि उनके परिवार वाले जल्द से जल्द दिल्ली आ जाएं। 

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