भारत में कोई नियम नहीं मानता ऐसे अग्निकांड आम

Edited By Anil dev,Updated: 09 Dec, 2019 10:39 AM

delhi the gazian fire new york times

दिल्ली अग्निकांड को विदेशी मीडिया ने प्रमुखता से जगह दी। रविवार सुबह हुआ यह हादसा कुछ ही घंटों के बाद दुनिया की तमाम मीडिया साइटों और न्यूज चैनलों पर छाया था। विदेशी मीडिया में इस बात पर ज्यादा जोर रहा कि भारत में ऐसे अग्निकांड बार-बार होते हैं और...

नई दिल्ली: दिल्ली अग्निकांड को विदेशी मीडिया ने प्रमुखता से जगह दी। रविवार सुबह हुआ यह हादसा कुछ ही घंटों के बाद दुनिया की तमाम मीडिया साइटों और न्यूज चैनलों पर छाया था। विदेशी मीडिया में इस बात पर ज्यादा जोर रहा कि भारत में ऐसे अग्निकांड बार-बार होते हैं और वहां बिल्डिंग नियमों का पालन नहीं किया जाता। 

 

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भारत में ऐसे हादसे 
आम बात : गार्जियन

‘द गार्जियन’ की वेबसाइट पर  ‘दिल्ली फायर : एट लीस्ट 43 डेड इन ‘होरिफिक’ फेक्ट्री ब्लेज’ शीर्षक से इस खबर को प्रमुखता से लिया गया है। खबर में दो फोटो भी हैं, जिनमें तंग गलियों में तारों के जाल के बीच फंसी फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी दिख रही है। अखबार लिखता है कि भारत में आग लगने के हादसे बड़े सामान्य हैं। वहां आमतौर पर बिल्डर और निवासी बिल्डिंग लॉ और सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करते। खबर में 1997 के उपहार कांड का जिक्र है तथा इसी साल फरवरी में दिल्ली में छह मंजिला होटल में लगी आग का जिक्र भी किया गया है। इसमें नियमों के खिलाफ होटल की छत पर किचन था। आग में 17 लोग मारे गए थे। खबर में प्रधानमंत्री मोदी के ट्वीट जिसमें अग्नीकांड को ‘बहुत ही भयानक ’ कहा गया है के अलावा सीएम अरविंद केजरीवाल और भाजपा सांसद मनोज तिवारी के बयानों का भी जिक्र है। 

 

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दिल्ली के इतिहास का दूसरा बड़ा अग्निकांड : न्यूयॉर्क टाइम्स
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की वेबसाइट पर यह खबर ‘एट लीस्ट 43 डेड इन न्यू दिल्ली बिल्डिंग फायर’ शीर्षक से प्रमुखता से ली गई है। इसे जून 1997 के उपहार अग्निकांड के बाद दिल्ली के इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा अग्निकांड बताया गया है। अखबार लिखता है कि भारत में आग लगने के हादसे नियमित अंतराल पर होते रहते हैं। इनकी वजह मुख्यत: गलत इलेक्ट्रिकल वायरिंग और बिल्डिंग नियमों का पालन नहीं करना होता है।

 

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डेढ़ सौ रुपए रोज पर काम करते थे मरने वाले : वाशिंगटन पोस्ट
वाशिंगटन पोस्ट ने दिल्ली अग्निकांड की घटना को न सिर्फ प्रमुखता से लिया है, बल्कि कामगारों की स्थिति पर एक साइड स्टोरी भी ‘न्यू दिल्ली फायर विक्टिम्स लिवड एंड वक्र्ड इन अनसेफ स्पेसिज’ शीर्षक से ली है। अखबार लिखता है कि अधिकतर मरने वाले मुस्लिम प्रवासी हैं जो पूर्वी बिहार से आए हुए थे। 150 रुपए रोज की मामूली दिहाड़ी पर उनसे काम करवाया जा रहा था। जब आग लगी तब सभी कामगार लम्बी ड्यूटी करने के बाद सोये हुए थे। घटना स्थल तंग गली में था जहां रिक्शा, बाइक और लटकते तारों के जाल की वजह से फायरब्रिगेड कर्मियों को पहुंचने में दिक्कत आई।
 

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लोहे के दरवाजे और खिड़कियां 
बंद थीं : सीएनएन

सीएनएन ने भी दिल्ली अग्निकांड की खबर को प्रमुखता से चलाया। खबर में कहा गया है कि कोई बाहर नहीं निकल सकता था। लोहे का दरवाजा और खिडि़कियां बंद थीं। सब मजदूर सोये थे। कुछ जलकर मरे जबकि कुछ दम घुटने से। 
 

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सौ मीटर की दूरी से बुझाई 
आग : अलजजीरा 

अलजजीरा ने भी दिल्ली की इस खबर को प्रमुखता से लिया है। अग्निकांड का पूरा विवरण है। इस बात का खासतौर पर जिक्र किया है कि फायरब्रिगेड की गाडिय़ां तंग गली में बिजली के तारों और छोटे वाहनों की वजह से घटनास्थल तक नहीं पहुंच सकीं। सौ मीटर की दूरी से ही फायरकर्मी आग बुझाने में जुटे रहे। 

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