Edited By Monika Jamwal,Updated: 23 Mar, 2019 05:21 PM
27 अक्तूबर 1947 को भारत में विलय से करीब दो दशक तक जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र मजाक बना रहा।
जम्मू (बलराम सैनी) : 27 अक्तूबर 1947 को भारत में विलय से करीब दो दशक तक जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र मजाक बना रहा। वर्ष 1952 में पहले लोकसभा चुनाव के साथ जहां लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना हो गई थी, वहीं जम्मू-कश्मीर से लोकसभा एवं राज्यसभा सदस्य मनोनीत होते रहे। इसके अलावा विधानसभा के लिए भी ज्यादातर सदस्य निर्विरोध चुन लिए जाते थे। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि वैसे तो वर्ष 1967 में लोकसभा चुनाव करवाए गए थे, लेकिन वर्ष 1972 में निर्वाचन आयोग की देखरेख में जब पहली बार चुनाव हुए, तब जाकर लोगों ने सही मायने में मताधिकार का प्रयोग किया था। आलम यह था कि जून 1951 में जब जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के लिए चुनाव हुए तो कुल 75 सदस्यों में से 71 निर्विरोध चुन लिए गए और जिन्द्राह एवं अखनूर हलकों में 4 सदस्यों के लिए जो चुनाव हुआ था, उसमें भी नाटकीय ढंग से सत्तारूढ़ नैशनल कांफ्रैंस के ही नेता चुन लिए गए।
ऐसा नहीं है कि इन चुनावों में विपक्ष की तरफ से उम्मीदवार खड़े नहीं किए गए थे, लेकिन जब विपक्षी प्रजा परिषद के 59 सदस्यों में से बिना तर्क कारण बनाकर 42 सदस्यों के नामांकन पत्र रद्द कर दिए गए तो प्रजा परिषद नेतृत्व ने चुनाव बहिष्कार की घोषणा कर दी, जिससे सत्तारूढ़ नैशनल कांफ्रैंस का रास्ता साफ हो गया। इसी प्रकार वर्ष 1957 के विधानसभा चुनावों में 75 में से 39 सदस्य निर्विरोध चुने गए। हालांकि इन चुनावों में पंडित प्रेमनाथ डोगरा समेत प्रजा परिषद के भी 6 सदस्य निर्वाचित हुए थे। वर्ष 1962 के विधानसभा चुनाव में 75 में से 34 और 1967 के विधानसभा चुनाव में 75 में से 22 सदस्य निर्विरोध चुन लिए गए।
फिर 1972 में जब निर्वाचन आयोग द्वारा विधानसभा चुनाव करवाए गए तो नैशनल कांफ्रैंस एवं कांग्रेस के अलावा प्रजा परिषद, जमायत-ए-इस्लामी एवं निर्दलीय उम्मीदवार भी विधानसभा पहुंचे थे। आज अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रैंस के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी 1972 के चुनाव में पहली बार विधायक निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे थे।
पहली तीन लोकसभा के लिए कौन हुए मनोनीत
वर्ष 1952 की पहली लोकसभा में जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन शेख मोहम्मद अब्दुल्ला सरकार द्वारा ख्वाजा गुलाम कादिर भट, पंडित श्यो नारायण फोतेदार, चौधरी मोहम्मद शफी, लक्ष्मण सिंह चाडक़, मौलाना मोहम्मद सईद मसौदी एवं मोहम्मद अकबर सोफी को लोकसभा सदस्य के तौर पर मनोनीत किया गया। 1957 में दूसरी लोकसभा में मौलाना अब्दुर रहमान, ठाकुर लाला दास/इंद्रजीत मल्होत्रा, कृष्णा मेहता, ए.एम. तारिक/अब्दुर राशिद बक्शी को लोकसभा सदस्य मनोनीत किया गया और ये सभी सांसद कांग्रेस पार्टी से संबंधित थे। 1962 में तीसरी लोकसभा के लिए इंद्रजीत मल्होत्रा, शामलाल सर्राफ, सईद नाजिर हुसैन सामनामी, गोपाल दत्त मेंगी, अब्दुल घानी गोनी एवं अब्दुर राशिद बक्शी को सांसद के तौर पर मनोनीत किया गया। विशेष बात यह थी कि उस समय आज के जम्मू-पुंछ, कठुआ-ऊधमपुर-डोडा, श्रीनगर-बडग़ाम, बारामूला-कुपवाड़ा, अनंतनाग-पुलवामा एवं लद्दाख संसदीय क्षेत्रों के बजाय जम्मू, कठुआ, किश्तवाड़, श्रीनगर एवं बारामूला क्षेत्र हुआ करते थे।