खुशखबरी : अपनों को छोड़ डैपुटेशन वालों की नहीं होगी खिदमत

Edited By ,Updated: 16 Nov, 2016 12:50 PM

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पदोन्नति के इंतजार में बैठे यू.टी. कैडर टीचरों के लिए खुशखबरी है। अब शहर के टीचरों को छोड़कर बाहर के टीचरों को बुलाकर उनकी खिदमत खत्म हो जाएगी।

चंडीगढ़(आशीष) : पदोन्नति के इंतजार में बैठे यू.टी. कैडर टीचरों के लिए खुशखबरी है। अब शहर के टीचरों को छोड़कर बाहर के टीचरों को बुलाकर उनकी खिदमत खत्म हो जाएगी। यू.टी. कैडर अध्यापकों के हितों को लेकर सांसद किरण खेर ने कड़ा रुख अपनाते हुए साफ किया है कि शहर वालों को छोड़कर बाहर वालों को नहीं बुलाया जाएगा और यदि बुलाया भी जाता है तो पहले यू.टी. कैडर अध्यापकों को पूरा लाभ दिलाया जाएगा, उसके बाद ही आगे की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी। यह रुख सांसद खेर ने ज्वाइंट एक्शन कमेटी की मांग के बाद अपनाया है, जिसमें जे.ए.सी. ने मांग की थी कि यू.टी. के टीचरों को प्रोमोशन नहीं दी जा रही है, प्रिंसिपल और हैडमास्टर को डैपुटेशन पर बुलाकर कार्य कराया जा रहा है। 

 

700 अध्यापकों को मिलेगा लाभ :

यू.टी. कैडर वालों की पैरवी करने के फैसले के बाद सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे करीब 700 अध्यापकों को लाभ मिलेगा। सरकारी स्कूलों में आखिरी बार प्रोमोशन वर्ष 2014 में हुई थी, जिसमें 186 टीचरों को प्रोमोट करके पी.जी.टी. बनाया था। उससे पहले वर्ष 2004 में प्रोमोशन हुई थी। 

 

जूनियर होने के बाद भी 12 प्रिंसीपल कर रहे हैं कार्य :
डैपुटेशन पर जो सीधी नियुक्ति होती है उससे कई जूनियर अध्यापक जिनके पास काम करने का तजुर्बा भी कम है और उनकी योग्यता भी कम है, लेकिन उसके बाद भी वह वरिष्ठ पदों पर काम कर रहे हैं और शहर के अध्यापक जोकि एक ही पद पर बिना प्रोमोशन के काम करते रहते हैं उन्हें सेवानिवृत्ति तक मिल जाती है। 

 

एडवाइजर को लिखा पत्र :
मंगलवार को सांसद किरण खेर ने एडवाइजर परिमल राय को पत्र लिखकर मांग की कि डैपुटेशन पर टीचरों को बुलाकर नियुक्त करने के बजाय यू.टी. के टीचरों को प्रोमोट किया जाए। उन्होंने कहा कि शहर के कई स्कूलों में ऐसे अध्यापक, प्रिंसीपल और हैडमास्टर कार्यरत हैं जोकि डैपुटेशन का ही रूल तोड़ चुके हैं। डैपुटेशन पर जो भी आता है वह कम से कम तीन और ज्यादा से ज्यादा पांच साल तक शहर में काम कर सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है। इसके अलावा एक बार डैपुटेशन पर आने वाले अध्यापक को प्रोमोशन नहीं मिल सकती है, लेकिन शहर के स्कूलों में कई अध्यापक हैं जोकि टी.जी.टी. आए थे और शहर में रहकर ही पी.जी.टी. हुए और फिर प्रिंसीपल तक बन गए। ऐसे में सबसे ज्यादा नुकसान शहर के टीचरों को होता है। 

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