क्या सिरे चढ़ पाएगा राफेल लड़ाकू जेट विमानों का सौदा

Edited By ,Updated: 02 Jun, 2016 05:13 PM

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लंबे समय ये लटक रहे राफेल लड़ाकू जेट विमानों के सौदा के सिरे चढ़ने की उम्मीद बन रही है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर अंतर-सरकारी

लंबे समय ये लटक रहे राफेल लड़ाकू जेट विमानों के सौदा के सिरे चढ़ने की उम्मीद बन रही है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर अंतर-सरकारी सुरक्षा फोरम शांगरी-ला डायलॉग में हिस्सा लेने के लिए सिंगापुर गए हुए हैं। इस मौके पर वे अपने फ्रांसीसी समकक्ष से मुलाकात करेंगे। फ्रांस और भारत 36 राफेल लड़ाकू जेट सौदे को अंतिम रूप देना चाहते हैं। किसी न किसी कारण इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। गौर करने की बात है कि भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की कमी है। अगर जल्द ही इसे पूरा नहीं किया तो उसके लिए ऑपरेशनल जिम्मेदारी निभाना कठिन हो जाएगा।

शांगरी-ला डायलॉग की हर साल मेजबानी एक स्वतंत्र थिंकटैंक इंटरनैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेटेजिक स्टडीज करता है। माना जा रहा है कि फ्रांस के रक्षा मंत्री जीस येव्वीस ली ड्रायन से पर्रिकर मुलाकात होगी तब राफेल से मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। पर्रिकर कह चुके हैं कि सरकार को उम्मीद है कि जल्द इस बहुप्रचारित राफेल सौदे को अंतिम रूप दिया जाएगा। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी फ्रांस यात्रा के दौरान 36 लड़ाकू जेट की खरीद की घोषणा की थी। पिछले साल अप्रैल में भी मोदी ने यही घोषणा की थी। उनका कहना था कि सरकार से सरकार के बीच अनुबंध के तहत जेट खरीदे जाएंगे। साफ है कि किसी बिचौलिए की जरुरत नहीं पड़ेगी।  

वर्ष 2007 यानि करीब नौ साल से भारत फ्रांस के लड़ाकू विमान खरीदने के प्रयास कर रहा है। किसी न किसी कारण से यह सौदा अटकता ही रहा है। इस नए सौदे में फ्रांस करीब 65 हजार करोड़ चाहता था, लेकिन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर सौदे की कीमत कम कराने में सफल हो ही गए। करीब 59 हजार करोड़ में 36 लड़ाकू विमानों का सौदा लगभग हो चुका है। 

अब तक इस सौदे पर हस्ताक्षर न होने पर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर कह चुके हैं कि वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट में राफेल करार का ध्यान रखा गया है जिसके लिए ‘पर्याप्त धन’ अलग रखा गया है। फिर भी वह चाहते हैं कि जितने पैसे बच सकते हैं उन्हें बचाने दें। रक्षा मंत्री समझते हैं कि  भारतीय वायुसेना को विमानों की जरूरत है। अब तक यह मामला कीमत पर ही अटका हुआ था।

फ्रांसीसी रक्षामंत्री ज्यां-वेस ली ड्रायन भी स्वीकार कर चुके हैं कि दोनों ही पक्षों के लोगों के बीच बहुत-से मुद्दों पर एक मत नहीं बन पाया। इस सौदे की कुल कीमत 60,000 करोड़ रुपए (लगभग 10 अरब अमेरिकी डॉलर) के आसपास रहने की संभावना है, जिसमें फ्लाई-अवे कंडीशन में 36 लड़ाकू विमान, उनमें लगाई जाने वाली हथियार प्रणाली और सपोर्ट मेन्टेनेन्स पैकेज शामिल है। भारत ने अब तक यह फैसला नहीं किया है कि उसे इन विमानों के लिए अगले पांच से 10 सालों में जिन अतिरिक्त कल-पुर्ज़ों की ज़रूरत पड़ सकती है, उनके लिए वह अभी से भुगतान करना चाहता है या नहीं।भारत को तय करना है कि उसे राफेल लड़ाकू विमानों के साथ कुल कितनी और किस-किस प्रकार की हथियार प्रणाली की ज़रूरत है। यह सौदे की कुल कीमत का काफी महत्वपूर्ण हिस्सा तय करेंगी।

दोनों पक्षों में जुर्माने की उस रकम पर भी अंतिम फैसला नहीं हो पाया है, जो खराब प्रदर्शन की स्थिति में फ्रांसीसी लड़ाकू विमान निर्माता को भरना होगा। यहां खराब प्रदर्शन का अर्थ है कि उड़ान भरने ज़रूरत वाले कुल मौकों में से 90 फीसदी या उनसे ज़्यादा में राफेल उपलब्ध नहीं रहे। यह मुद्दा भारतीय वायुसेना के लिए पहले भी चिंता का विषय रहा है। ऐसे में मौजूदा रूस-निर्मित सुखोई 30 एमकेआई लड़ाकू जेट की उपलब्धता दर 60 प्रतिशत से भी कम है। इसका अर्थ यह हुआ कि हर बार ज़रूरत के वक्त भारतीय वायुसेना के पास ज़रूरत पूरी करने लायक सुखोई उपलब्ध नहीं होते।

एक बात और, भारतीय नियमों के अनुसार 300 करोड़ रुपए से ज़्यादा के रक्षा सौदों को तब तक मंजूरी नहीं मिल सकती, जब तक दूसरा पक्ष सौदे की कम से कम 30 फीसदी राशि जितनी रकम का निवेश भारत में ही निर्माण क्षेत्र में नहीं करे। बताया जाता है कि फ्रांस इस शर्त का भविष्य में पालन करने के लिए सिद्धांत रूप से सहमत हो गया है। यह नियम फिलहाल ठंडे बस्ते में हैं।

गंभीर बात यह है कि आधुनिक पश्चिमी लड़ाकू विमानों को समय पर जुटाना बहुत जरूरी है। भारतीय वायुसेना और चीन व पाकिस्तान की वायुसेनाओं की क्षमताओं के बीच बहुत बड़ी खाई पैदा हो जाएगी। मान लेते हैं कि इस सौदे पर दस्तखत हो भी जाएं एक साल बाद ही ये विमान भारत पहुंचने शुरू होंगे। विमान निर्माता डासॉल्ट इस समय फ्रांसीसी एयरफोर्स और मिस्र और कतर के लिए अत्याधुनिक विमान बना रहा है, उनके भारत से पहले सौदों पर हस्ताक्षर हो चुके हैं।

कहने को फ्रांस भारत को जल्द से जल्द ये विमान देने के लिए तैयार तो है, मगर स्पष्ट नहीं हो पाया कि विपत्ति आने पर क्या फ्रांस अपने विमानों की डिलीवरी को टालेगा, या फिर भारत को अपनी सेना के पास पहले से मौजूद लड़ाकू विमानों में से कुछ दे देगा, जब तक उसके यानि भारत विमान तैयार नहीं हो जाते।

 

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