Edited By Seema Sharma,Updated: 23 Feb, 2020 04:39 PM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिव्यांग व्यक्ति के व्यावसायिक हौसले को सलाम करते हुए कहा कि कुछ लोग कठिनाइयों के बावजूद हार नहीं मानते हैं। मोदी ने रविवार को अपने ‘मन की बात'' कार्यक्रम में कहा कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के हमीरपुर गांव में रहने...
नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिव्यांग व्यक्ति के व्यावसायिक हौसले को सलाम करते हुए कहा कि कुछ लोग कठिनाइयों के बावजूद हार नहीं मानते हैं। मोदी ने रविवार को अपने ‘मन की बात' कार्यक्रम में कहा कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के हमीरपुर गांव में रहने वाले सलमान जन्म से ही दिव्यांग हैं। उनके पैर उन्हें साथ नहीं देते हैं। इस कठिनाई के बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और खुद ही अपना काम शुरू करने का फैसला किया। साथ ही यह भी निश्चय किया कि, अब वो अपने जैसे दिव्यांग साथियों की मदद भी करेंगे। सलमान ने अपने ही गांव में चप्पल और डिटरजेंट बनाने का काम शुरू कर दिया। देखते-ही-देखते, उनके साथ 30 दिव्यांग साथी जुड़ गए।
सलमान को खुद चलने में दिक्कत थी लेकिन उन्होंने दूसरों का चलना आसान करने वाली चप्पल बनाने का फैसला किया। खास बात ये है कि सलमान ने, साथी दिव्यांगजनों को खुद ही प्रशिक्षण दिया। अब ये सब मिलकर उत्पादन और विपणन करते हैं। अपनी मेहनत से इन लोगों ने, ना केवल अपने लिए रोजगार सुनिश्चित किया बल्कि अपनी कम्पनी को भी लाभ में पहुंचा दिया। अब ये लोग मिलकर, दिनभर में, डेढ़-सौ जोड़ी चप्पलें तैयार कर लेते हैं। इतना ही नहीं, सलमान ने इस साल 100 और दिव्यांगो को रोजगार देने का संकल्प भी लिया है।
- ऐसी ही संकल्प शक्ति, गुजरात के, कच्छ इलाके में, अजरक गांव के लोगों ने भी दिखाई है। साल 2001 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद सभी लोग गांव छोड़ रहे थे, तभी, इस्माइल खत्री नाम के शख्स ने, गांव में ही रहकर, ‘अजरक प्रिंट' की अपनी पारंपरिक कला को सहेजने का फैसला लिया। देखते-ही-देखते प्रकृति के रंगों से बनी ‘अजरक कला' हर किसी को लुभाने लगी और ये पूरा गांव, हस्तशिल्प की अपनी पारंपरिक विधा से जुड़ गया। गांव वालों ने, न केवल सैकड़ों वर्ष पुरानी अपनी इस कला को सहेजा, बल्कि उसे, आधुनिक फैशन के साथ भी जोड़ दिया। अब बड़े-बड़े डिजाइनर, बड़े-बड़े संस्थान, ‘अजरक प्रिंट' का इस्तेमाल करने लगे हैं।
बेटियां पुरानी बंदिशें तोड़ रही
पीएम मोदी ने माउंट अकोनकागुआ फतह करने के लिए 12 साल की काम्या कार्तिकेयन की उपलब्धियों पर गर्व करते हुए कहा कि बेटियां पुरानी बंदिशों को तोड़कर नई ऊंचाइयां प्राप्त कर रही है। मोदी ने कहा कि हमारी बेटियों की उद्यमशीलता, उनका साहस, हर किसी के लिए गर्व की बात है। अपने आस पास हमें अनेकों ऐसे उदाहरण मिलते हैं। जिनसे पता चलता है कि बेटियां किस तरह पुरानी बंदिशों को तोड़ रही हैं और नई ऊंचाई छू रही हैं। काम्या ने सिर्फ 12 साल की उम्र में ही माउंट अकोनकागुआ को फ़तह करने का कारनामा कर दिखाया है। ये दक्षिण अमेरिका में एंडीज पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है, जो लगभग 7000 मीटर ऊंची है। हर भारतीय को ये बात छू जायेगी कि जब इस महीने की शुरुआत में काम्या ने चोटी को फतह किया और सबसे पहले, वहाँ, हमारा तिरंगा फहराया। देश को गौरवान्वित करने वाली काम्या, एक नए मिशन पर है, जिसका नाम है ‘मिशन साहस'। इसके तहत वो सभी महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फतह करने में जुटी है।
भागीरथी से लोग प्रेरणा लें
मोदी ने 105 वर्ष की उम्र में भागीरथी अम्मा के अध्ययन की ललक से लोगों को प्रेरणा लेने का अनुरोध करते हुए रविवार को कहा कि हमारे भीतर के विद्यार्थी को कभी मरना नहीं चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि अगर हम जीवन में प्रगति करना चाहते हैं, विकास करना चाहते हैं, कुछ कर गुजरना चाहते हैं, तो पहली शर्त यही होती है कि हमारे भीतर का विद्यार्थी कभी मरना नहीं चाहिए। 105 वर्ष की भागीरथी अम्मा, हमें यही प्रेरणा देती है। भागीरथी अम्मा केरल के कोल्लम में रहती है। बचपन में ही उन्होंने अपनी मां को खो दिया। छोटी उम्र में शादी के बाद पति को भी खो दिया। लेकिन भागीरथी अम्मा ने अपना हौसला नहीं खोया, अपना ज़ज्बा नहीं खोया। दस साल से कम उम्र में उन्हें अपना स्कूल छोड़ना पड़ा था। 105 साल की उम्र में उन्होंने फिर स्कूल शुरू किया। पढाई शुरू की। इतनी उम्र होने के बावजूद भागीरथी अम्मा ने लेवल -4 की परीक्षा दी और बड़ी बेसब्री से परिणाम का इंतजार करने लगी। उन्होंने परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। इतना ही नहीं, गणित में तो शत-प्रतिशत अंक हासिल किए। अम्मा अब और आगे पढ़ना चाहती हैं। आगे की परीक्षाएं देना चाहती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ज़ाहिर है, भागीरथी अम्मा जैसे लोग, इस देश की ताकत हैं। प्रेरणा की एक बहुत बड़ी स्रोत हैं। मैं आज विशेष-रूप से भागीरथी अम्मा को प्रणाम करता हूं।