Edited By Anil dev,Updated: 08 Aug, 2018 10:26 AM
डीएमके चीफ मुथुवेल करुणानिधि अब हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन, उनकी लाइफ बेहद उतार-चढ़ाव और संघर्षों से भरी है। साउथ इंडिया की करीब 50 फिल्मों की कहानियां और संवाद लिखने वाले करुणानिधि की पहचान एक ऐसे सियासतदान की थी, जिसने अपनी लेखनी से तमिलनाडु की...
नई दिल्ली: डीएमके चीफ मुथुवेल करुणानिधि अब हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन, उनकी लाइफ बेहद उतार-चढ़ाव और संघर्षों से भरी है। साउथ इंडिया की करीब 50 फिल्मों की कहानियां और संवाद लिखने वाले करुणानिधि की पहचान एक ऐसे सियासतदान की थी, जिसने अपनी लेखनी से तमिलनाडु की तकदीर लिखी। एक नजर करुणानिधि से जुड़े 10 रोचक किस्सों पर : -
- करुणानिधि बेहद तेज तर्रार, मुखर व्यक्तित्व के थे। उन्होंने जब द्रविड़ राज्य की कमान संभाली तो उन्होंने कई दशक तक सिनेमा पर अपने साथी रहे एमजी रामचंद्रन और जे जयललिता को सियासत में पछाड़ दिया। उनके भीतर कला और राजनीति का बेजोड़ समागम था।
-उन्होंने अपनी पहली फिल्म राजकुमारी से लोकप्रियता हासिल की। उनके द्वारा लिखी गई पटकथाओं में राजकुमारी, अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलावरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम, मनोहरा आदि शामिल हैं।
-करुणानिधि का राजनीति असर सिर्फ उनके राज्य तक ही सीमित नहीं था। उनकी ताकत की धमक राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में सत्ता के गलियारों तक थी और इसी के बल पर उन्होंने कभी कांग्रेस के साथ तो कभी भाजपा के साथ गठबंधन करके उसे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।
-उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1938 में तिरूवरूर में हिंदी विरोधी प्रदर्शन के साथ शुरू हुई। तब वह सिर्फ 14 साल के थे। इसके बाद सफलता के सोपान चढ़ते हुए उन्होंने 5 बार राज्य की बागडोर संभाली।
-ईवी रामसामी ‘पेरियार’ और द्रमुक संस्थापक सी एन अन्नादुरई की समानाधिकारवादी विचारधारा से प्रभावित करुणानिधि द्रविड़ आंदोलन के सबसे विश्वसनीय चेहरा बन गए। इस आंदोलन का उद्देश्य दबे कुचले वर्ग और महिलाओं को समान अधिकार दिलाना था। साथ ही यह आंदोलन ब्राह्मणवाद पर भी चोट करता था।
-फरवरी 1969 में अन्नादुरई के निधन के बाद वी आर नेदुनचेझिएन को मात देकर करुणानिधि पहली बार मुख्यमंत्री बने। उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में एम जी रामचंद्रन ने अहम भूमिका निभाई थी। वर्षों बाद हालांकि दोनों अलग हो गए और एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की।
-करुणानिधि 1957 से 6 दशक तक लगातार विधायक रहे। इस सफर की शुरुआत कुलीतलाई विधानसभा सीट पर जीत के साथ शुरू हुई तथा 2016 में तिरूवरूर सीट से जीतने तक जारी रही। सत्ता संभालने के बाद ही करुणानिधि जुलाई 1969 में द्रमुक के अध्यक्ष बने और अंतिम सांस लेने तक वह इस पद पर बने रहे।
-इसके बाद करुणानिधि 1971, 1989, 1996 और 2006 में मुख्यमंत्री बने। उन्हें सबसे बड़ा राजनीतिक झटका उस वक्त लगा जब 1972 में एमजीआर ने उनके खिलाफ विद्रोह करते हुए उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और उनसे पार्टी फंड का लेखा जोखा मांगा। इसके बाद उस साल एमजीआर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की और आज तक राज्य की राजनीति इन्हीं दो दलों के इर्द गिर्द ही घूम रही है।
-एमजीआर के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक को राज्य विधानसभा चुनावों में 1977, 1980 और 1985 में जीत मिली। एमजीआर का निधन 1987 में हुआ और तब तक वह मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान करुणानिधि को धैर्य के साथ विपक्ष में बैठना पड़ा। इसके बाद 1989 में उन्होंने सत्ता में वापसी की। राजनीति में न तो स्थाई दोस्त होते हैं और न ही दुश्मन, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए करुणानिधि ने कई बार कांग्रेस को समर्थन दिया।
- केंद्र की यूपीए सरकार में द्रमुक के अनेक मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने भाजपा की अगुवाई वाले राजग को भी समर्थन दिया और अटल बिहारी वाजपेई कैबिनेट में भी उनके कई मंत्री थे।