Edited By Monika Jamwal,Updated: 08 Oct, 2020 02:04 PM
हिम्मत-ए-मर्दा तो मद्द-ए खुदा। जी हां बिल्कुल सही और यह बात सच कर दिखाई एक ऐेसे होनहार युवा ने जिसने अपनी पवरिश में एक अनाथालय में पाई।
डोडा: हिम्मत-ए-मर्दा तो मद्द-ए खुदा। जी हां बिल्कुल सही और यह बात सच कर दिखाई एक ऐेसे होनहार युवा ने जिसने अपनी पवरिश में एक अनाथालय में पाई। डोडा के रहने वाले गाजी अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर प्रशासनिक सेवा परीक्षा में अपनी कड़ी मेहनत से 46वां रैंक हासिल किया। गजी महज दो वर्ष का था जब उसके पिता इस दुनिया स ेचल बसे। उसकी परवरिश कश्मीर में एक अनाथालय में हुई। उसने अपनी पोस्ट ग्रेजूएशन की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी से की।
वह कहता है, "मैं अपनी सफलता का सारा श्रेय अपनी मां को देना चाहता हूं। उन्होंने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया। वह खुद पढ़ी लिखी नहीं है पर शिक्षा और मेहनत का अर्थ जानती है। " हमने बहुत उतार-चढ़ाव देखें और मेरी सफलता का सारा श्रेय मेरी मां को जाता है। परिवार की माली हालत अच्छी नहीं होने के कारण गाजी को बचपन मेंही कश्मीर के एक अनाथालय में भेज दिया गया था।
गजी बचपन से ही मेहनती रहा। उसने पूरी स्टेट में दसवीं की परीक्षा में दसवां स्थान हासिल किया था। उसने एएमयू का टेस्ट भी किया। वह कहता है, अनाथालय में रहना एक अलग तरह का अनुभव है। मैं हमेशा से कड़ी मेहनत करता था ताकि इस स्थिति से बाहर आ सकुं। मैं सुबह जल्दी उठता था। एक कप चाय और एक रोटी खाता था लंच तक। मैं अनाथालय में पिंजरे के तोतेकी तरह था। कालेज में मैने काफी सीखा।
इंटरनेट के सही तरीके से मिली सफलता
जम्मू कश्मीर प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की सफलता का श्रेय गाजी ने भले ही अपनी मां को दिया पर उनकी मेहनत ही यह सब काम कर पाई। वह कहता है कि एनसीआरटी की किताबें और इंटरनेट का सही प्रयोग ही इस काम को संभव कर पाया। वह कहता है कि मैने एनसीआरटी की किताबों पर भरोसा रखा और सिविल परीक्षा की किताबें भी पढ़ी। वो कहता है कि मैं बच्चों को टयूशन पढ़ाता था। इससे मैने एक तीर से तीन निशान किये। खर्चा निकाला, बच्चों को शिक्षादी और अपने सब्जेक्ट से रिलेटड अपनी सारी शंकाए भी दूर की।