गिरते रुपए से महंगा हो सकता है इलाज

Edited By Anil dev,Updated: 10 Sep, 2018 11:15 AM

dollar euro usa pawan chowdhury

डॉलर के मुकाबले कमजोर होता रुपया भारत में बीमार लोगों का मैडीकल बिल बढ़ा सकता है। डॉलर और यूरो के मुकाबले रुपए की कमजोरी और इन्फ्लेशन की वजह से काॢडयक स्टेंट्स, ऑर्थोपैडिक इम्प्लैन्ट, हार्ट वॉल्व और कैथटर जैसी मैडीकल डिवाइसेज की कीमतें बढ़ सकती हैं।

मुम्बई(एजैंसी): डॉलर के मुकाबले कमजोर होता रुपया भारत में बीमार लोगों का मैडीकल बिल बढ़ा सकता है। डॉलर और यूरो के मुकाबले रुपए की कमजोरी और इन्फ्लेशन की वजह से काॢडयक स्टेंट्स, ऑर्थोपैडिक इम्प्लैन्ट, हार्ट वॉल्व और कैथटर जैसी मैडीकल डिवाइसेज की कीमतें बढ़ सकती हैं। जनवरी से अगस्त के बीच रुपया डॉलर के मुकाबले करीब 10.7 फ ीसदी गिर चुका है और यूरो की तुलना में 7.6 फ ीसदी कमजोर हो चुका है। इसके अलावा इन्फ्लेशन की वजह से भी ऑप्रेटिंग कॉस्ट 5.6 फ ीसदी बढ़ चुकी है। अधिकतर मैडीकल डिवाइसेज का आयात महंगा हो चुका है और यदि इन्हें मरीजों तक पहुंचाया जाता है तो उनका मैडीकल बिल बढ़ जाएगा। 

आयात दर में हुई है वृद्धि
इंडस्ट्री से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि आयात दर में वृद्धि हुई है, लेकिन अभी कंपनियां इसका वहन कर रही हैं। भारत 80 फ ीसदी मैडीकल डिवाइसेज अमरीका से आयात करता है। कार्डियक स्टेंट्स और अन्य उपकरणों की कीमत सरकार ने तय कर दी है, इसलिए कंपनियां स्वीकृति के बिना एम.आर.पी. नहीं बढ़ा सकती हैं। मैडीकल डिवाइसेज इंडस्ट्री ने नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एन.पी.पी.ए.) से 10 फीसदी कीमत बढ़ाने की मांग की है। कीमतों में एक साल में इतनी वृद्धि स्वीकृत भी है। हालांकि, सरकार अभी कीमतों में बदलाव की अनुमति देने की पक्षधर नहीं है। मैडीकल टैक्नोलॉजी एसोसिएशन ऑफ  इंडिया के चेयरमैन पवन चौधरी ने कहा, ‘‘हम वित्त और स्वास्थ्य मंत्रालय से कस्टम ड्यूटी में छूट की अपील करेंगे ताकि कीमतों में वृद्धि (कंपनियों के लिए) समायोजित हो सके।’’ अभी इन डिवाइसेज पर 8.28 फीसदी कस्टम ड्यूटी है। 

एफ.पी.आई. का मूड भी बिगड़ा सितंबर में बाजार से निकाले 5649 करोड़ रुपए
गिरते रुपए ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों  (एफ.पी.आई.) का मूड भी बिगाड़ दिया है। उन्होंने पिछले 5 कारोबारी सत्रों में पूंजी बाजार से 5649 करोड़ रुपए की निकासी की है जबकि इससे पहले 2 महीनों में उन्होंने लगातार निवेश किया था। एफ.पी.आई. की निकासी की अहम वजह डॉलर के मुकाबले रुपए का रिकॉर्ड निचले स्तर तक चले जाना और कच्चे तेल की कीमतों का बढऩा है। डिपॉजिटरी के शुरूआती आंकड़ों के अनुसार 3 से 7 सितम्बर के बीच एफ.पी.आई. ने शेयर बाजार से 1021 करोड़ रुपए और ऋण बाजार से 4628 करोड़ रुपए की निकासी की। इस प्रकार कुल निकासी 5649 करोड़ रुपए की रही जबकि अगस्त में एफ.पी.आई. ने 2300 करोड़ रुपए का निवेश किया था। इससे पहले अप्रैल से जून के बीच विदेशी निवेशकों ने 61,000 करोड़ रुपए की निकासी की थी। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार ताजा निकासी का अहम कारण रुपए की कीमत में गिरावट और कच्चे तेल की कीमतों का बढऩा है। इसके अलावा एफ.पी.आई. निवेश को लेकर बाजार नियामक सेबी के दिशा-निर्देशों से भी बाजार में ङ्क्षचता का माहौल है और कमजोर वैश्विक बाजारों ने भी इस पर असर डाला है।


 

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