Edited By ,Updated: 10 Feb, 2016 11:18 PM
कर्ज फंसने की वजह से सरकारी क्षेत्र के 3 मुख्य बैंकों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है।
बेंगलूर: कर्ज फंसने की वजह से सरकारी क्षेत्र के 3 मुख्य बैंकों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है। सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया सी.बी.आई. देना बैंक और इलाहाबाद बैंक को गत दिवस दिसम्बर के अंत के बाद के ट्रैंड्स में भारी नुक्सान हुआ है। वहीं पंजाब नैशनल बैंक पी.एन.बी. बेहद करीबी अंतर से रैड लिस्ट में शामिल होने से बच गया। कर्ज के बढ़ते बोझ के चलते सरकारी बैंकों की स्थिति खराब हो गई है। कर्ज की वापसी न हो पाने की वजह से बैंकों की आर्थिक स्थिति खस्ता हो गई है।
आंकड़ों में मुख्य निजी बैंक आई.सी.आई.सी.आई. का प्रदर्शन भी खराब दिखा जबकि भारतीय रिजर्व बैंक के क्लीन ड्राइव के चलते सरकारी बैंक भी बुरी मार झेल रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि बैंकों को एक और तिमाही में मुश्किल झेलनी पड़ सकती है, उनके लाभ में कमी आ सकती है। रिजर्व बैंक ने ऐसे बैंकों को 2 तिमाही का अवसर दिया है।
बैंकों के करीब 8 लाख करोड़ रुपए फंसे
कर्ज फंसे होने के साथ ही आर्थिक मंदी के माहौल ने भी बैंकों की हालत खस्ता कर दी है। एक अनुमान के मुताबिक बैंकों के करीब 8 लाख करोड़ रुपए फंसे हुए हैं। पहले की तरह बैंकों के पास अब डिफाल्ट्स को छिपाने का विकल्प नहीं है। नए नियमों के मुताबिक बैंकों को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स एन.पी.ए. में चले गए ऋण से हुए नुक्सान की भरपाई के लिए अलग से फंड की व्यवस्था रखनी होगी।
किसी ऋण की किस्त के 90 दिनों तक अदायगी न किए जाने पर उसे एन.पी.ए. में डाल दिया जाता है। इस नीति के चलते दिसम्बर, 2015 को समाप्त तिमाही में पी.एन.बी., देना बैंक और सी.बी.आई. का एन.पी.ए. 49 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
सर्जरी अभी खत्म नहीं हुई है। कुछ है जिसे पूरी तरह साफ करने के लिए काफी कुछ साफ करना होगा। इस सर्जरी के दर्द से अभी सभी को गुजरना होगा। ऊषा अनंतसुब्रह्मण्यन, मैनेजिंग डायरैक्टर और सी.ई.ओ. पी.एन.बी.