Edited By Parminder Kaur,Updated: 12 Oct, 2024 12:47 PM
आज पूरे देश में दशहरे का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दौरान कई शहरों में रावण के विशाल पुतले जलाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा गांव भी है, जहां दशहरे पर मातम का माहौल होता है? इस गांव में...
नेशनल डेस्क. आज पूरे देश में दशहरे का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दौरान कई शहरों में रावण के विशाल पुतले जलाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा गांव भी है, जहां दशहरे पर मातम का माहौल होता है? इस गांव में दशहरे के दिन किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलता, न ही रावण दहन होता है और न ही कोई मेला लगता है। आखिर ऐसा क्यों है? चलिए जानते हैं...
166 साल पुरानी कहानी
आप सोच सकते हैं कि क्या इस गांव के लोग रावण से कोई सहानुभूति रखते हैं? लेकिन ऐसा नहीं है। 166 साल पहले तक यहां भी दशहरा धूमधाम से मनाया जाता था। लेकिन उस समय ऐसा क्या हुआ, जिसने गांव वालों को दशहरा मनाना बंद करने पर मजबूर कर दिया? इस गांव की आबादी लगभग 18 हजार है और दशहरे के दिन कोई भी यहां खुश नहीं होता।
9 लोगों को दी गई थी फांसी
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के गगोल गांव की यह कहानी दशहरे के दिन की है। यह गांव मेरठ शहर से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर स्थित है और यहां की आबादी लगभग 18 हजार है। दशहरे पर गांव के लोग चाहे वे बच्चे हों या बुजुर्ग, सभी दुखी हो जाते हैं। इसका कारण है 9 लोगों की मौत, जो 166 साल पहले इसी दिन हुई थी।
1857 की क्रांति से जुड़ी घटना
आपने 1857 की क्रांति के बारे में सुना होगा, जो अंग्रेजी शासन को चुनौती देने वाली पहली बड़ी क्रांति थी। इस क्रांति के दौरान रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब और बेगम हजरत महल जैसे कई नेताओं ने अंग्रेजों का सामना किया। इस क्रांति की शुरुआत मेरठ से ही हुई थी। गगोल गांव के 9 लोगों को दशहरे के दिन ही अंग्रेजों ने फांसी दी थी। यह घटना गांव के लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ गई।
गांव में आज भी मौजूद है वो पीपल का पेड़
जिस पीपल के पेड़ पर 9 लोगों को फांसी दी गई थी, वह पेड़ आज भी गांव में मौजूद है। इस पेड़ को देखकर गांव के लोगों के जख्म ताजा हो जाते हैं। गगोल का हर बच्चा इस दर्दनाक घटना से वाकिफ है। यही वजह है कि दशहरे पर इस गांव में खुशी की बजाय मातम मनाया जाता है।