Edited By Pardeep,Updated: 23 Mar, 2019 08:20 AM
1989 के चुनाव के दौरान देश में एक बार फिर गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन तो हो गया लेकिन इसके प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह कुर्सी पर ज्यादा समय नहीं टिक पाए। भारतीय जनता पार्टी द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार गिर गई। राजीव...
नई दिल्ली/जालंधर(नरेश कुमार): 1989 के चुनाव के दौरान देश में एक बार फिर गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन तो हो गया लेकिन इसके प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह कुर्सी पर ज्यादा समय नहीं टिक पाए। भारतीय जनता पार्टी द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार गिर गई। राजीव गांधी ने उस दौरान जनता दल में फूट करवाई और प्रधानमंत्री पद के लिए पहले से महत्वाकांक्षी रहे चंद्रशेखर के जरिए 60 लोकसभा सदस्य तोड़कर जनता दल (यू) का गठन करवा दिया। इस पार्टी को कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने 211 सदस्यों का समर्थन दिया और केंद्र में चंद्रशेखर 11वें प्रधानमंत्री के रूप में गद्दी पर बैठे।
चंद्रशेखर भी 10 नवम्बर 1990 से 21 जून 1991 तक ही देश के प्रधानमंत्री रह पाए और बाद में कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद उनकी सरकार भी गिर गई। केंद्र में चंद्रशेखर सरकार के गठन की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। भाजपा द्वारा वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस लिए जाने के 48 घंटे के भीतर चंद्रशेखर ने नई पार्टी का गठन किया। इस पार्टी के प्रमुख को तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने सरकार बनाने के लिए निमंत्रित किया तो चंद्रशेखर ने कांग्रेस के प्रधान राजीव गांधी को फोन करके समर्थन मांगा। कांग्रेस इसके लिए पहले से ही तैयार थी और पार्टी के नेताओं ने पहले ही वी.पी. सिंह को छोड़कर जनता दल को समर्थन देने का ऐलान किया हुआ था। कांग्रेस के इसी संकेत को समझते हुए चंद्रशेखर ने जनता दल में फूट डलवाई।
हालांकि उस दौरान भी एक दिक्कत थी कि पार्टी के एक तिहाई सदस्यों को तोडऩा जरूरी था। यदि ऐसा न होता तो सांसदों पर एंटी डिफैक्शन लॉ की कार्रवाई होती और उनकी सदस्यता रद्द हो सकती थी। इसके अलावा कांग्रेस और उसके सहयोगियों के पास 211 सांसद थे और इस लिहाज से संसद में बहुमत के लिए 60 सदस्यों को तोडऩा जरूरी था। इसी बीच राजीव गांधी ने चंद्रशेखर के समर्थित माने जाते चिमन भाई पटेल से भाजपा द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद कांग्रेस की गुजरात इकाई को उनकी गद्दी बचाने के लिए भी निर्देश दिए। यह भी चंद्र शेखर के लिए एक राजनीतिक संकेत था। 7 नवम्बर को सदन में बहुमत साबित किया जाना था। उससे पहले 2 नवम्बर को गुजरात के मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार के साथ एक मीटिंग हुई और बैठक के बाद इन दोनों नेताओं ने दिल्ली आकर जनता दल को तोडऩे में अहम भूमिका निभाई।