Election diary: वो नारे जिन्होंने चलता कीं सरकारें

Edited By Anil dev,Updated: 14 Mar, 2019 01:40 PM

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देश में जब भी चुनाव आते हैं नारों का महत्व हमेशा उजागर होता रहा है। चुनाव चाहे लोकसभा के हों, विधानसभा, या फिर पंचायत के ही क्यों न हों, बिना नारों के कम से कम भारत में चुनाव का कोई मतलब ही नहीं है।

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): देश में जब भी चुनाव आते हैं नारों का महत्व हमेशा उजागर होता रहा है। चुनाव चाहे लोकसभा के हों, विधानसभा, या फिर पंचायत के ही क्यों न हों, बिना नारों के कम से कम भारत में चुनाव का कोई मतलब ही नहीं है। ये नारे प्रचार वाहनों के लाउड स्पीकरों से लेकर घरों की दीवारों तक हर जगह लिखे रहते हैं जो वोटर के मानस को प्रभावित जरूर करते हैं। दिलचस्प ढंग से अधिकांश दल यह नारा भी लगाते हैं कि नारे को न नाम को, वोट हमारे काम को लेकिन हकीकत तो यही है कि यह बात भी भी नारा लगाकर ही कही जाती है। आज हम आपको आजादी के बाद से अब तक के प्रमुख चुनावी नारों का स्मरण करवाएंगे। आजादी के बाद ही यह नारा लगा था कि खरा रुपया चांदी का, राज महत्मा गांधी का। 

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दुर्भाग्य से गांधी जी पहले चुनाव तक हमारे बीच नहीं रह पाए और उनकी हत्या हो गई। उसके बाद कांग्रेस के चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी के खिलाफ जनसंघ ने नारा दिया था देखो दीये का खेल, जली झोंपड़ी,भागे बैल जनसंघ का चुनाव चिन्ह तब दीया बाती था।  कांग्रेस ने जवाबी हमला बोला, नारा था इस दीये में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं। लेकिन चुनावी नारों की असली धमाल इंदिरा गांधी के शासनकाल में शुरू हुई। 1971 में कांग्रेस ने नारा दिया गरीबी हटाओ, इंदिरा लाओ अगले चुनाव में यह नारा विपक्ष ने यूं बदल दिया-इंदिरा हटाओ, देश बचाओ। 1975  की एमरजेंसी ने तो कई चुनावी नारों को जन्म दिया। उस दौर में एक नारा बड़ा  मशहूर हुआ था- जमीन गई चकबंदी में, मर्द गए नसबंदी में नसबंदी के तीन दलाल- इंदिरा, संजय, बंसीलाल। 

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कांग्रेस के खिलाफ उस चुनाव में नारों की बाढ़ आ गई थी। संजय की मम्मी,बड़ी निक्कमी बेटा कार बनाता है , मम्मी बेकार बनाती है। इन्हीं नारों की बदौलत विपक्ष ने आपातकाल की टीस को खूब कुरेदा और नतीजा यह हुआ कि इंदिरा गांधी और कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गए। बाद में अगले ही साल जब इंदिरा ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से उपचुनाव लड़ा तो समूचा विपक्ष वहां भी इंदिरा गांधी को हराने में जुट गया।  उस समय कांग्रेस के नेता देवराज उर्स ने यह नारा दिया था -चिकमंगलूर भई चिकमंगलूर,एक शेरनी, सौ लंगूर यह नारा बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया, और इसी नारे पर चढ़कर इंदिरा ने संसद में वापसी कर ली।  बाद में 1980 आते-आते जनसंघ बीजेपी में बदल गया और दीया-बाती कमल के फूल में। 

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उधर कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय बछड़ा भी हाथ बन गया। लेकिन उस चुनाव का सबसे दिलचस्प नारा दिया था वामपंथियों ने - चलेगा मजदूर उड़ेगी धूल, न बचेगा हाथ न रहेगा फूल लेकिन अंतत श्रीकांत वर्मा के लिखे नारे - न जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर ने बाजी मारी। अगला चुनाव आते आते इंदिरा गांधी की भी ह्त्या हो चुकी थी। कामरेडों ने नारा दिया -लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा हिंदुस्तान लेकिन भारी पड़ा कांग्रेस का नारा जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा जी का नाम रहेगा इंदिरा की हत्या से स्तब्ध राष्ट्र ने तब कांग्रेस को अकूत बहुमत दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे प्रखर वक्ता भी चुनाव हार गए और बीजेपी दो सीट पर आ गए थी। राजीव गांधी 40 साल की उम्र में चार सौ से अधिक सीटें लेकर सत्ता पर काबिज हुए थे। लेकिन अगले ही चुनाव में 1989 कांग्रेस सत्ताच्युत हुई और वीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। 

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उस दौर का चर्चित नारा था राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है ये दीगर बात है कि 1990 में मंडल आयोग आंदोलन ने वीपी सिंह की तकदीर को बतौर पीएम ग्रहण लगा दिया। उनके लिए तब नारा लगा था गोली मारो मंडल को, इस राजा को कमंडल दो उसके बाद के चुनाव का सबसे चर्चित नारा बीजेपी ने दिया था सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे फिर बीजेपी का नया नारा आया अटल, आडवाणी कमल निशान मांग रहा हिंदुस्तान। उसी चुनाव में यह भी आया सबको देखा बारी-बारी , अबकी बारी, अटल बिहारी फिर उसके बाद के चुनाव में कोई ऐसा नारा नहीं आया जो हर किसी की जुबां पर रहा हो। लेकिन 2014 में अच्छे दिन आने वाले हैं नारे ने कमाल दिखाया और मोदी लहर ने पहली बार बीजेपी की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार बनवाई। अबके कांग्रेस ने नारा दिया है चौकीदार ही चोर है उधर फिलहाल बीजेपी का नारा है फिर एकबार, मोदी सरकार

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क्षेत्रीय दल भी पीछे नहीं
नारों की सियासत में क्षेत्रीय दल भी पीछे नहीं हैं।  किसी जमाने में बिहार में ऊंची जातियों के खिलाफ लालू प्रसाद यादव का नारा भूरा बाल साफ करो जबतक रहेगा समोसे में आलू, तब रहेगा बिहार में लालू और ऊपर आसमान, नीचे पासवान खासे चर्चित रहे थे उधर सपा के खिलाफ बसपा ने नारा दिया था, चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर बसपा ने ही एक समय यूपी में नारा दिया था तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार हालांकि बाद में जब पार्टी की गत्त बिगड़ी तो बसपा ने कथित सोशल इंजीनियरिंग के दौर में नारा बदल कर यूं कर दिया हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु, महेश है पंडित शंख बजायेगा,हाथी बढ़ता जाएगा जब सपा और बसपा ने मिलकर बीजेपी को हराया था उस चुनाव में नारा था मिले मुलायम और कांशीराम, हवा में उड़ेगा जय श्री राम उधर ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में मां माटी और मानुस का नारा दिया जिसे हाथों-हाथ लिया गया। इसी तरह राजस्थान के दो नारे भी मशहूर हैं। मरुभूमि का एक सिंह, भैरों सिंह, भैरों सिंह जबकि कांग्रेस का चर्चित नारा था, गहलोत नहीं आंधी है, राजस्थान का गांधी है पंजाब में पिछले चुनाव का बड़ा नारा था कैप्टन ने सौं चक्की, हर घर इक नौकरी पक्की एमपी में कांग्रेस का नारा था कर्जा माफ, बिजली हाफ,करो कांग्रेस साफ।  

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