Election Diary: यादों के झरोखे से चुनाव चिन्हों की कहानी, कब-कब किसके पास था क्या Symbol

Edited By Anil dev,Updated: 15 Mar, 2019 12:10 PM

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चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष कोई है तो वो है चुनाव चिन्ह, जिसके दमपर ही पार्टी/प्रत्याशी को वोट मिलते हैं। बिना चिन्ह के किसी का चुनाव संभव ही नहीं है। ऐसे में आज पंजाब केसरी आपको उन चुनाव चिन्हों की याद दिलाने की कोशिश कराएगा जिन्होंने देश की...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष कोई है तो वो है चुनाव चिन्ह, जिसके दमपर ही पार्टी/प्रत्याशी को वोट मिलते हैं। बिना चिन्ह के किसी का चुनाव संभव ही नहीं है। ऐसे में आज पंजाब केसरी आपको उन चुनाव चिन्हों की याद दिलाने की कोशिश कराएगा जिन्होंने देश की सत्ता में खास मुकाम पाया। साल 1885 में कांग्रेस की स्थापना के बाद कांग्रेस ने तिरंगे को ही ध्वज और चिन्ह मानने का फैसला किया। 

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यह फैसला एनी बेसेंट की अध्यक्षता वाली थियोसोफिकल सोसाइटी ने किया था जिसमें कांग्रेस के संस्थापक ए ओ ह्यूम भी थे। लेकिन आजादी के बाद तिरंगा राष्टीय ध्वज बन गया और कांग्रेस को नए प्रतीक की जरूरत महसूस हुई। पहले चुनाव यानी 1952 में कांग्रेस ने बैलों की जोड़ी को अपना चुनाव चिन्ह बनाया। उधर जनसंघ को दीपक चुनाव चिन्ह मिला। तीसरा प्रमुख चुनाव चिन्ह झोंपड़ी था जो सोशलिस्ट पार्टी का था।  कई चुनाव इन्हीं चिन्हों पर इन पार्टियों ने लड़े। साल 1971 में कांग्रेस दोफाड़ हो गई। मोरारजी देसाई ने संगठन कांग्रेस बनाई और इंदिरा के नेतृत्व में कांग्रेस आर बनी।  

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चुनाव चिन्ह को लेकर दोनों भिड़े तो निर्वाचन आयोग ने चुनाव चिन्ह सीज कर दिया। अब दोनों को नए चुनाव चिन्ह मिले। इंदिरा गाँधी को गाय-बछड़ा तो मोरारजी देसाई की संगठन कांग्रेस को चरखा। 1977 आते आते ये चुनाव चिन्ह फिर बदल गए। मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह एक हुए। साथ में अन्य दल आये तो जनसंघ जनता पार्टी बन गया। उसे नया चुनाव चिन्ह मिला  हलधर । उधर आपातकाल के बाद विपक्ष ने सरे आम इंदिरा गांधी और संजय गांधी को गाय-बछड़ा कहना शुरू कर दिया। ऐसे में इंदिरा ने एकबार फिर समिति बनाकर नए चिन्ह की खोज शुर करवा दी।

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इंदिरा गांधी इतनी परेशान थीं कि उन्होंने नए चुनाव चिन्ह के लिए अपने आध्यात्मिक गुरु चंद्रास्वामी से मदद मांगी। उपलब्ध विवरणों के अनुसार चंद्रास्वामी ने बिना कुछ बोले आशीर्वाद की मुद्रा  में हाथ उठाया।  इंदिरा ने हाथ की इसी मुद्रा को चुनाव चिन्ह बनाए का फैसला किया और इसका मौका उन्हें तब मिला जब कांग्रेस एकबार फिर 1979  में दोफाड़ हुई। अब इंदिरा ने हाथ चिन्ह के लिए अप्लाई कर दिया। इस तरह कांग्रेस को हाथ का चुनाव चिन्ह मिला। अगले ही चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस की जबरदस्त जीत हुई। तब हाथ की चर्चा भी वाजिब थी।  उधर जनता पार्टी भी बिखरी। बीजेपी का गठन हुआ 1980 में और अटल बिहारी वाजपेयी के आदेश के बाद यह तय हुआ कि अब चुनाव निशान कमल का फूल होगा। और तबसे दोनों पार्टियां इन्हीं चिन्हों पर चुनाव लड़ रही हैं। 

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जब चला वीपी सिंह का चक्र
कांग्रेस के नेता विश्व नाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स तोप घोटाले के आरोप लगाते हुए संसद से त्यागपत्र दिया। यह 1987 के वर्षांत की बात है। उधर कभी इंदिरा के तीसरे पुत्र कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन के भी राजीव से सम्बन्ध बिगड़े। अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद सीट छोड़ दी जिसपर वीपी सिंह दोबारा आजाद जीत कर आए। वीपी सिंह की इस जीत ने एक और गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री  की नींव रखी। उनको आगे कर कई दलों ने  जनता दल बनाकर चुनाव लड़ा। जनतादल का चुनाव चिन्ह चक्र था जिसने ऐसा चक्र घुमाया कि राजीव की सरकार चली गई और वीपी सिंह प्रधान मंत्री बने। वीपी गए तो चंद्रशेखर आये जिन्होंने समाजवादी जनता पार्टी बनाकर हलधर का चिन्ह हासिल किया।

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क्षेत्रीय पार्टियां और उनके चुनाव चिन्ह
इसी बीच चंद्रशेखर से मुलायम सिंह नाराज हो गए।  समाजवादी जनता पार्टी भी टूट गयी और उत्तर प्रदेश में नया दल अस्तित्व में आया।  मुलायम ने समाजवादी पार्टी का गठन किया और उसे चुनाव चिन्ह मिला साइकिल। हालांकि पिछले चुनाव में मुलायम और अखिलेश के बीच इसे लेकर भी काफी खींचातानी हुई थी। दिलचस्प ढंग से तेलगू देशम पार्टी को भी साइकिल चुनाव चिन्ह मिला है। दोनों में झंडे के रंग का फर्क है। एसपी की साइकिल हरे रंग और टीडीपी की पीले रंग पर मौजूद है। उधर जातिगत राजनीति को नए आयाम देते हुए उत्तर प्रदेश में ही बहुजन समाजपार्टी का गठन हुआ। कांशी राम के नेतृत्व में बनाई बसपा को चुनाव चिन्ह मिला हाथी। उधर चारा घोटाले के बाद जब लालू जनतादल में दिक्क्त में आये तो उन्होंने राष्ट्रीय  जनता दल बना लिया।  उनके दल को लालटेन चुनाव चिन्ह मिला। 

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उसके बाद ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस आई जिसका चुनाव चिन्ह दो फूल और तृण है। उधर द्रविड़ मुनेत्र कडग़म टूटी तो अम्मा यानी जयललिता ने एआईएडीएमके बनाई जिसे दो पत्तियां चुनाव चिन्ह मिला।  हालांकि जयललिता की मौत के बाद अब इसपर भी विवाद है। इसी तरह दूसरी बनी पार्टी डीएमके को पर्वतों के बीच उगता सूरज चिन्ह मिला है। इसी तरह कांग्रेस से छिटके शरद पवार की एनसीपी के पास घड़ी चुनाव चिन्ह है। माकपा  के पास हंसिया हथौड़ा तो भाकपा  के पास गेंहूं की बाली और हंसिया है। बीजद के पास शंख चुनाव चिन्ह है। शिवसेना भी बरसों से तीर कमान पर चुनाव लड़ रही है। 

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