इलेक्शन डायरी:  ...जब इंदिरा ने बंद किया राजे-रजवाड़ों के प्रिवीपर्स

Edited By Pardeep,Updated: 16 Apr, 2019 10:18 AM

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देश की आजादी के बाद विकास के लिहाज से वैसे तो कई बड़े फैसले किए गए लेकिन आजादी से पहले अपनी शर्तों पर भारत का हिस्सा बनने वाले राजे-रजवाड़ों को हर साल सरकारी खजाने से मिलने वाली प्रिवीपर्स को खत्म करने का फैसला एक बड़ा फैसला था। इंदिरा गांधी ने...

इलेक्शन डेस्क(नरेश कुमार): देश की आजादी के बाद विकास के लिहाज से वैसे तो कई बड़े फैसले किए गए लेकिन आजादी से पहले अपनी शर्तों पर भारत का हिस्सा बनने वाले राजे-रजवाड़ों को हर साल सरकारी खजाने से मिलने वाली प्रिवीपर्स को खत्म करने का फैसला एक बड़ा फैसला था। इंदिरा गांधी ने संविधान में 26वें संशोधन के जरिए इस फैसले को लागू किया और राजे-रजवाड़ों को हर महीने देश के खजाने से मिलने वाली राशि को एक झटके में बंद कर दिया गया। 
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हालांकि यह फैसला काफी हद तक राजनीतिक भी था क्योंकि 1967 के आम चुनावों के दौरान कई राजे-रजवाड़ों ने अपनी पार्टी का गठन कर लिया था और इनके साथ कांग्रेस के कई बागी भी शामिल हो गए थे। इसी के चलते इंदिरा गांधी ने इन राजे-रजवाड़ों को समाप्त करने का संकल्प लिया। कांग्रेस के कई नेता इंदिरा गांधी के इस कदम के खिलाफ थे और राजे-रजवाड़ों को प्रिवीपर्स देने का प्रस्ताव राज्यसभा में पास नहीं हो पाया था। इसके बाद जब 1971 के चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी को जबरदस्त सफलता मिली। 
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इंदिरा गांधी ने सत्ता में आते ही 31 जुलाई 1971 को संविधान में 26वां संशोधन करते हुए धारा 363 के साथ 363-ए जोड़ दी और इस संविधान संशोधन के जरिए आजादी के बाद से राजे-रजवाड़ों को सरकारी खजाने से दी जा रही आर्थिक हिस्सेदारी बंद कर दी। यह आर्थिक हिस्सेदारी उस समय शुरू की गई थी जब पूर्व उपप्रधानमंत्री वल्लभ भाई पटेल ने इन रियासतों का भारत में विलय करवाया था। इस विलय के एवज में राजे-रजवाड़ों को उनके राजस्व की 8.5 प्रतिशत राशि भारत सरकार की तरफ से देने का वायदा किया था।       

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